आपदा से निपटने को हिमाचल में कोई प्लान नहीं

By: Aug 9th, 2017 12:01 am

न क्विक रिस्पांस टीम-न ही गांवों में बन पाईं कमेटियां, अब तक स्टेट डिजास्टर रिस्पांस बटालियन का भी नहीं हो पाया है गठन

शिमला —  पहाड़ी सूबे में भी प्राकृतिक आपदाएं कभी भी कहर बरपा जाती हैं, ऐसे में हर समय यहां सरकार को तैयार रहने की जरूरत है, लेकिन उस तरह से यहां कोई तैयारियां नहीं हैं। हर बार किसी न किसी आपदा के समय में यहां आपदा राहत कार्यों की पोल खुलकर रह जाती है, लेकिन इससे कोई सबक नहीं लिया जाता। इस साल बर्फबारी के दौरान राजधानी शिमला में लगातार छह दिन तक बिजली बंद रही। राजधानी में यह हाल था तो और जगह कैसा हो सकता है। इसके बाद भी यहां तय नहीं है कि आपदा प्रबंधन के तौर पर कोई तैयारी हुई हो। अब बरसात कहर बरपा रही है और राज्य का कोई हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां बरसात का कहर न बरप रहा हो। चाहे ऊंचाई वाले क्षेत्र हों या फिर मैदानी, हर जगह बरसात ने तांडव मचा रखा है और इसमें आपदा प्रबंधन कहीं नजर नहीं आ रहा। सूचना मिलने के बाद प्रशासन की वैसी तैयारी नहीं होती, जैसी होनी चाहिए, जबकि क्विक रिस्पांस टीमें हर जगह पर तैयार रहनी चाहिएं। राज्य सरकार को आपदा प्रबंधन के लिए सर्वप्रथम आपदा प्रबंधन प्लान चाहिए, जो कि हरेक जिला में बनने जरूरी हैं। इनमें पता चल सकता है कि कहां किस तरह की आपदा आ सकती है और उसके लिए क्या-कुछ तैयारियां होनी चाहिएं। इसके साथ ग्राम स्तर पर कमेटियों के गठन के लिए कहा गया था, जो कि हर समय तैयार रहें, परंतु कुछ गांवों को छोड़कर सभी गांवों में इस तरह की कमेटियां नहीं बन पाई हैं। प्रबंधन केवल पंचायतों पर निर्भर करता है, जबकि पंचायतें यह काम गंभीरता से नहीं लेती। ग्राम स्तर पर की कमेटियों की कमी आवश्यक रूप से खल रही है, तो वहीं जिलों में अलग से गठित होने वाली क्विक रिस्पांस टीमें तैयार नहीं हो सकी हैं। रिकांगपिओ से इसका काम शुरू किया गया था, लेकिन कुछेक नदी क्षेत्रों में ही इस पर अमल हो सका है। हर साल यहां एनडीआरएफ की टीमें बुलाई जाती हैं, जो कि इन दिनों नदी क्षेत्रों की रैकी कर रही हैं। हाल ही में सतलुज में एक नाव डूबने से बच गई, क्योंकि उस एरिया में एनडीआरएफ की टीम थी, लेकिन हर जगह ये लोग नहीं पहुंच सकते। ऐसे में प्रदेश में स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स के गठन की जरूरत है जिसकी मंजूरी नहीं मिल पा रही है। यहां एसडीआरएफ की बटालियन के गठन का मुद्दा पिछले चार-पांच साल से कागजों में ही घूम रहा है, जिसकी हिमाचल को सख्त जरूरत है। थलौट में हुए हादसे के बाद कई तरह की बातें हुईं, लेकिन आज भी नदी क्षेत्रों में हादसे हो रहे हैं। वहां परियोजनाओं के आसपास तो चेतावनी बोर्ड स्थापित हैं, परंतु शेष बड़े क्षेत्र में ऐसा कोई इंतजाम नहीं है, जिससे लोगों को रोका जा सके। नदियां उफान पर हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई कदम नहीं उठाए जा रहे, ऐसे में आपदा प्रबंधन की तैयारियों की पोल खुल रही है।

न मिलता पैसा और न ही हो पाती है भरपाई

हिमाचल को जो नुकसान होता है, उसके मुताबिक केंद्र से मुआवजा नहीं मिल पाता। ऐसे में जो कार्य किए जाने चाहिएं, वे नहीं हो पाते। राज्य सरकार संसाधनों से राहत मैनुअल के मुताबिक जिलाधीशों के माध्यम से राहत राशि देती है, जो कि नाकाफी है। विभागों को हुए नुकसान का भी पूरा पैसा नहीं मिल पाता, जिससे वे लोेग काम कर सकें। इस कारण से फील्ड में नुकसान की भरपाई भी नहीं हो पाती।

आंकड़ों का खेल खेल रहे अधिकारी

दफ्तरों में बैठकर अधिकारी केवल आंकड़ों का खेल खेल रहे हैं और रोजाना नुकसान की रिपोर्ट मांगी जा रही है। हालांकि मुख्यमंत्री ने भी इसकी बैठक के दौरान तैयारियों का जायजा लिया है, लेकिन कागजी बातें जो सरकार को बताई जाती हैं, वे धरातल पर कहीं नजर नहीं आतीं। भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील हिमाचल में साल भर मॉकड्रिलों के आयोजन के सिवाए कुछ नहीं हो रहा।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App