कभी न देखें श्रीकृष्ण की पीठ

By: Aug 26th, 2017 12:05 am

कालयवन श्रीकृष्ण की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढ़ने लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है। उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है। भगवान की पीठ देखने के कारण जब उसका अधर्म बढ़ गया तो श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। इससे पहले उसके पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे…

आप मंदिर जाते हैं तो भगवान के दर्शन जरूर करते हैं, लेकिन शायद आपको यह नहीं पता कि मंदिर में भगवान की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए। अब आप सोच रहे होंगे कि भगवान की पीठ के दर्शन क्यों नहीं करने चाहिए? इसी सवाल को लेकर हम आपको एक रोचक कहानी बताते हैं। जब भी कृष्ण भगवान के मंदिर जाएं तो यह जरूर ध्यान रखें कि कृष्ण जी कि मूर्ति की पीठ के दर्शन न करें। दरअसल पीठ के दर्शन न करने के संबंध में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असुर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ पहुंचा। कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुंचकर ललकारने लगा। तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले। इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा। जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा। इस तरह भगवान रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे और श्रीकृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जब तक कि पुण्य का बल शेष रहता है। कालयवन श्रीकृष्ण की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढ़ने लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है। भगवान की पीठ देखने के कारण जब उसका अधर्म बढ़ गया तो श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। इस तरह उसके अत्याचारों से देवताओं तथा जनता को मुक्ति मिली। वास्तव में श्रीकृष्ण को यादव वंश से माना जाता है। आज के उत्तर प्रदेश में मथुरा, वृंदावन तथा वाराणसी में भी यादव समुदाय के लोग काफी संख्या में बसे हुए हैं। गुजरात के द्वारिका में भी इस वंश के लोग काफी बड़ी संख्या में बसे हुए हैं। वहां पर उत्तर प्रदेश से ही इस समुदाय के लोग गए थे। बताया जाता है कि जरासंध तथा उसके साथियों ने इस समुदाय के लोगों पर बड़े पैमाने पर अत्याचार किए थे। इन्हीं अत्याचारों से पीडि़त होकर इस समुदाय के कुछ लोग महाभारत काल में मथुरा-वृंदावन आदि छोड़कर द्वारिका में जा बसे थे। द्वारिका में आज जो यादव मिलते हैं, वे उन्हीं के वंशज माने जाते हैं। इस समुदाय के लोगों का दोनों क्षेत्रों के सर्वपक्षीय विकास में बहुमूल्य योगदान माना जाता है। इस समुदाय की संस्कृति दोनों क्षेत्रों में आज भी वैभवशाली मानी जाती है। यह भी एक तथ्य है कि श्रीकृष्ण विष्णु भगवान के अवतार थे। विष्णु भगवान बार-बार अवतार लेते रहे हैं। जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ा है, तब-तब धर्म की स्थापना तथा अधर्म के नाश के लिए उन्होंने अवतार लिए। अवतारवाद हिंदू धर्म की प्रमुख विशिष्टताओं में से एक है।

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