केंद्र सरकार के प्रतिज्ञा पत्र

By: Aug 30th, 2017 12:02 am

अब केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की घोषणाओं में समाहित प्रतिज्ञा को देखें, तो एक साथ कई नई एलपीजी एजेंसियां एवं पेट्रोल पंप दिखाई देंगे। यह चमत्कार कमोबेश हर केंद्रीय मंत्री हिमाचल की जमीन पर खड़ा होकर कर सकता है, लेकिन लहजे के इस दीदार में कहीं न कहीं चुनाव की घंटी भी बज रही है। इसमें दो राय नहीं कि हिमाचली जनमानस केंद्र की हर सौगात में अपने इष्ट की पहचान करता है, लेकिन सियासत के अखाड़े की मिट्टी को वरदान मानना किसी भी राज्य का स्वाभिमान नहीं। वैसे हिमाचल जैसे राज्य को राजनीति की छोटी सी मुट्ठी भी कैद कर सकती है, लेकिन स्वाभिमान के फौलाद को पिघालना इतना भी सरल नहीं कि राजनीतिक दुम सदा हिलती रहे। बहरहाल हिमाचली अस्तित्व के तराजू में हमेशा केंद्र का वजन रहा और यही आश्वासन हर केंद्रीय मंत्री दे रहा है। खास तौर पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के सामर्थ्य में हिमाचली अभिलाषा विजयी होना चाहती है और यहीं से शुरू होती है सियासी गोताखोरी व सेंधमारी। हमारे सामने एम्स और विभिन्न सड़क मार्गों पर बिछी सियासत का अर्थ समझना इसलिए भी मुश्किल है कि पिछले तीन साल की मोदी सरकार ने ऐसी परियोजनाओं का निरूपण नहीं किया, तो आज भी महत्त्वपूर्ण केंद्रीय मंत्रियों के कदम हिमाचल की ओर नहीं बढ़े। यही नहीं, पिछले एक-डेढ़ साल से हिमाचल की धरती पूरी तरह राजनीतिक तौर पर लाल है, तो क्या आम नागरिक इसमें शरीक होकर संयमित सोच कायम रख सकता है। ऐसे कई रास्ते हैं, जहां टकराव से चिन्हित माहौल ने विकास के पन्ने फाड़ दिए। ऐसे में हिमाचल जैसे राज्य के जीने की शर्त क्या केवल केंद्र सरकार के सियासी अनुयायी बनकर चलने में ही है। इसे हम विडंबना क्यों न मानें कि स्वां तटीकरण जैसी परियोजनाओं को इसलिए रोक दिया जाता है, ताकि ऊना की मिलकीयत में वर्तमान सांसद का एकाधिकार न टूटे। कमोबेश ट्रिप्पल आईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालय और एम्स की स्थापना में सांसद अनुराग ठाकुर ने गाहे-बगाहे अपने सरोकारों की सीमा के भीतर सियासत का सफर ही तो किया है। ऐसे में यह क्यों न समझा जाए कि अनुराग ठाकुर विकास और राजनीति को एक अवसर की तरह चलाना चाहते हैं। सवाल तो हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की तासीर में पूरे प्रदेश को समझने का उठ रहा है, क्योंकि भाजपा के न चाहते हुए भी मुख्यमंत्री पद के तमाम कयास, अभ्यास और एहसास यहीं से उठ रहे हैं। ऊपरी तौर पर भले ही यह संकेत देने की चेष्टा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह न कर रहे हों, लेकिन हिमाचल की विभाजित राजनीति में भाजपा के नेता अपनी-अपनी बोली लगा रहे हैं। दुर्भाग्यवश ऐसी बोलियों ने प्रदेश के अधिकारों पर डाका डालकर यहां की क्षमता को पंगु बना दिया। वास्तव में भाजपा के पास अगर मोदी सरकार के संरक्षण का अवसर है, तो विकास को राजनीतिक मुट्ठी में बंद करने के बजाय, हिमाचली आकाश को खोलने का प्रयत्न करना चाहिए था। बेशक कुछ केंद्रीय मंत्री आए और घोषणाओं का बिगुल फूंक कर चले गए, लेकिन हिमाचल बेताबी से प्रधानमंत्री, रेल, सड़क एवं परिवहन, उड्डयन, जल संसाधन, रक्षा एवं वित्त मंत्री जैसे ओहदों की बाट जोह रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रोहतांग टनल, औद्योगिक पैकेज और ग्रामीण सड़क योजना के तहत जो फूल बरसाए, उनकी खुशबू महसूस की जाती है। केंद्रीय मंत्री आकर यह तो बताएं कि स्वां तटीकरण के खाके में हिमाचल के बारे में वे क्या सोचते हैं। रक्षा मंत्री के तौर पर हिमाचल की कुर्बानियों पर केंद्र सरकार का क्या पैगाम है या जल संसाधनों के नजरिए से यह प्रदेश कैसे आत्मनिर्भर होगा। इसमें दो राय नहीं कि नितिन गडकरी जैसे केंद्रीय मंत्री के आगमन से हिमाचल उनका दीवाना हो जाता है, मगर रेल मंत्री ने आज तक यह नहीं बताया कि आखिर लेह रेल परियोजना है क्या। हिमाचल में रेल मंत्रालय अपने प्रस्तावों की जमीन पर कब खड़ा होगा, इस पर भी तो कोई हिमाचल आकर स्पष्टीकरण दे। प्रदेश की इच्छा शक्ति के स्रोत अगर बागबानी में हैं, तो राष्ट्रीय तरक्की की ऐसी समीक्षा कब हिमाचल में होगी। कब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय यहां आकर हिमाचल के कैद वजूद को थोड़ी बहुत राहत देगा। धर्मेंद्र प्रधान की घोषणाएं स्वागत योग्य हैं, लेकिन हिमाचल में बहते पेट्रोल ने वाहनों की बाढ़ ला दी है। पेट्रोलियम उत्पादों की मात्रात्मक शक्ति में, परिवहन विकल्पों की जरूरत को भी समझना होगा।

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