जांच की कोख में अपराध

By: Aug 30th, 2017 12:02 am

अनिल सोनी

खंडित कानून व्यवस्था के सूरमा अगर पकड़े गए, तो निर्देशों की कालिख से पूरा पुलिस महकमा सना दिखाई देता है। जिस एसआईटी के सहारे कोटखाई प्रकरण पर मिट्टी डाली जा रही थी, उसका सारा किरदार सीबीआई की गिरफ्त में है। अंततः हिमाचल के वीभत्स अध्याय पर हम एक शर्मनाक मोड़ की गवाही में, पुलिस का अपमानित चरित्र देख रहे हैं। यहां परतें एक मासूम बेटी से हुए घिनौने कृत्य को, हिमाचल के चारित्रिक पतन की अति निर्लज्ज कहानी बना रही हैं। जांच की मछलियां अचानक सीबीआई की पकड़ में नहीं आईं, बल्कि एक पूरे घटनाक्रम के काले साये अब कोठरी में कैद हो रहे हैं। आईजी व डीएसपी स्तर के अधिकारियों समेत आठ पुलिस कर्मियों को अगर सीबीआई पकड़ रही है, तो अपराध की सांठगांठ का हुलिया सफेदपोशों की बस्ती तक पसर चुका है। कोटखाई प्रकरण में जुर्म की इत्तला पुलिस तक पहुंचने के बाद नासूर क्यों बन गई और क्यों जांच के जालिम हाथों में एक गवाह की मौत हो गई। जाहिर है हिमाचली बेटी के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या के अंजाम तक पहुंचा क्रूरतम घटनाक्रम, अपने प्रभाव की पृष्ठभूमि का इस्तेमाल करने में सक्षम रहा होगा या पहाड़ पर चमकती आर्थिकी से निकले गुनाह ने कोटखाई को सूली पर टांग दिया। जो भी हो सीबीआई की गिरफ्त में महकमा छटपटा रहा है, तो इनके आका की गर्दन भी नजदीक ही होगी। कानून-व्यवस्था को गुलाम बनाने की प्रवृत्ति में राजनीतिक शान जिस सत्ता को सुशासन से अलग देखती है, उसके खिलाफ कठघरा तैयार है। पुलिस के पैबंद अगर सीबीआई अलग कर पाई या यह कार्रवाई अगली सूचना की इकाई है, तो जांच के नग्न दृश्य में कई चेहरे अनावृत होंगे। पुलिस खुद अब एक थ्योरी है और जहां आईजी जहूर जैदी सरीखे व्यक्ति का होना, हिमाचल के भोलेपन को बेचने जैसा है। अपराध  से सौदेबाजी के प्रमाण आरोपी सूरज की लॉकअप में हुई मौत की शिनाख्त कर रहे हैं, तो गैंगरेप मर्डर के रहस्य में कितना पाप छिपा होगा। अभी अपराध की भागीदारी में पुलिस की छवि गिरी है, तो सरकार के रुतबे पर खड़े प्रश्न भी पूछे जाएंगे। कोटखाई थाने का लॉकअप चीखकर सीबीआई के कान में जो कह गया, उससे गुनाह की वजह बढ़ गई और हिमाचल पुलिस अपनी उधेड़बुन में प्रश्नांकित हो गई। यहां जनता के संघर्ष का बारूद है, जिस पर पुलिस महकमे के आला अफसर भी झुलस गए। यह एक मासूम बिटिया को इनसाफ दिलाने की डगर है, जिस पर कानून के प्रहरी बिक गए। यह ईमान की परीक्षा थी, लेकिन जांच के रंग बिगड़ गए। जाहिर है सीबीआई ने अभी जांच की चंद मछलियां पकड़ी हैं, जबकि गंदे तालाब की तो गाद तक न जाने कितने राज निकलेंगे। आश्चर्य यह कि पुलिस की अपराध शाखा से विशेष जांच दल का गठन, राज्य के विश्वास की कसौटी तय करने सरीखा था, लेकिन इसने तो अपराधी ही बढ़ा दिए। जांच की कोख में अपराध हुआ है, तो इस कृत्य से महकमे की ईमानदार परंपराओं को अवश्य ही ठेस पहुंची है। सीबीआई जांच की दिशा का आरंभिक निष्कर्ष निकालें, तो पुलिस ही गैंगरेप मर्डर के पटाक्षेप पर पर्दा डाल रही थी और अगर यह सत्य है, तो हिमाचल में माफिया की जड़ें भयावह हो चुकी हैं। यह अपराध किस-किस के पालने में पला और दोषियों को कौन बचाता रहा, यह केवल पुलिस के आठ लोगों की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है।

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