तीन तलाक खत्म

By: Aug 23rd, 2017 12:08 am

सुप्रीम कोर्ट ने बताया असंवैधानिक, छह माह में कानून बनाए सरकार

newsनई दिल्ली— उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिमों में एक बार में तीन बार तलाक बोलकर दिए जाने वाले तलाक की प्रथा अमान्य, अवैध और असंवैधानिक है। शीर्ष अदालत ने 3-2 के अनुपात में सुनाए गए फैसले में इस तीन तलाक को कुरान के मूल तत्त्व के खिलाफ बताया। पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने अपने 395 पन्नों के आदेश में कहा कि 3-2 के बहुमत के जरिए दर्ज किए गए विभिन्न मतों को देखते हुए ‘तलाक-ए-बिद्दत’ तीन तलाक को दरकिनार किया जाता है। प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर जहां तीन तलाक की प्रथा पर छह माह के लिए रोक लगाकर सरकार को इस संबंध में नया कानून लेकर आने के लिए कहने के पक्ष में थे, वहीं जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस यूयू ललित ने इस प्रथा को संविधान का उल्लंघन करार दिया। बहुमत वाले इस फैसले में कहा गया कि तीन तलाक समेत हर वह प्रथा अस्वीकार्य है, जो कुरान के मूल तत्त्व के खिलाफ है। तीन न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि तीन तलाक के जरिए तलाक देने की प्रथा स्पष्ट तौर पर स्वेच्छाचारी है। यह संविधान का उल्लंघन है और इसे हटाया जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश खेहर और जस्टिस नजीर के अल्पमत वाले फैसले में तीन तलाक की प्रथा पर छह माह की रोक की बात की गई। इसके साथ ही राजनीतिक दलों से कहा गया कि वे अपने मतभेदों को दरकिनार करके एक कानून लाने में केंद्र की मदद करें। अल्पमत के फैसले के न्यायाधीशों ने कहा कि यदि केंद्र छह माह के भीतर कानून लेकर नहीं आता तो तीन तलाक पर उसका आदेश जारी रहेगा। प्रधान न्यायाधीश और जस्टिस नजीर ने अपने अल्पमत वाले फैसले में यह उम्मीद जताई कि केंद्र का कानून मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून से जुड़ी चिंताओं को ध्यान में रखेगा। पीठ में मौजूद जज अलग-अलग धर्मों के थे। इनमें सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम धर्म के जज थे। पीठ ने कुल सात याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें मुस्लिम महिलाओं द्वारा समुदाय में व्याप्त ‘तीन तलाक’ की प्रथा को चुनौती देने वाली पांच अलग याचिकाएं भी शामिल थीं। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि मुस्लिमों में शादी को तोड़ने के लिए तीन तलाक की प्रथा सबसे बुरी है और यह वांछित तरीका नहीं है। हालांकि कुछ ऐसे पक्ष भी हैं, जो इसे वैध बताते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद पूरे देश में मुस्लिम महिलाएं आजादी का जश्न मनाती नजर आईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उच्चतम न्यायालय के तीन तलाक पर दिए गए फैसले को ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा कि इससे मुस्लिम महिलाओं को समानता का अधिकार मिलेगा और यह महिला सशक्तिकरण के लिए एक मजबूत कदम सिद्ध होगा। कांग्रेस ने भी तीन तलाक को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले को तर्कपूर्ण, न्यायसंगत तथा प्रगतिशील बताते हुए इसका स्वागत किया है और कहा है कि यह मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की जीत और इस मामले को लेकर राजनीति करने वालों की हार है। उधर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक साथ तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) 10 सितंबर को भोपाल में अपनी अहम बैठक करने जा रहा है। एआईएमपीएलबी की वर्किंग कमेटी के सदस्य जफरयाब जिलानी ने बताया कि उस दिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आगे के कदमों के बारे में चर्चा की जाएगी। बता दें कि जिलानी वरिष्ठ वकील भी हैं। जिलानी ने कहा कि भोपाल की बैठक के एजेंडे में बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई भी शामिल है। बैठक में न्यायालय के निर्णय और शरीयत में संतुलन बनाए रखते हुए तीन तलाक के संबंध में महत्त्वपूर्ण फैसला लिया जा सकता है। दूसरी ओर, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का निर्णय साफ है। इसमें कोई भ्रम नहीं है। न्यायालय ने तीन तलाक को पूरी तरह पाबंद कर दिया है। इससे महिलाओं का हक उन्हें मिलेगा।

नया कानून नहीं लाएगी सरकार

newsनई दिल्ली – एक साथ तीन तलाक के खिलाफ केंद्र सरकार ने नया कानून न बनाने के संकेत देते हुए कहा कि इसके लिए घरेलू हिंसा से निपटने वाले मौजूदा कानून ही पर्याप्त हैं। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार इस मसले पर संगठित तरीके से विचार करेगी। यह पूछे जाने पर कि एक साथ तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला किस प्रकार से लागू होगा और क्या इस फैसले को लागू कराने के लिए किसी नई व्यवस्था की जरूरत है, मंत्री ने कहा कि यदि कोई पति एक साथ तीन तलाक देता है तो उसे वैध नहीं माना जाएगा। शादी के प्रति उसकी जिम्मेदारियां बनी रहेंगी। इसके अलावा पत्नी भी उसकी पुलिस में शिकायत करने और घरेलू हिंसा के तहत शिकायत दर्ज करने को स्वतंत्र होगी।

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