त्रिगर्त राज्य ने दूसरी शताब्दी में अपनी मुद्राएं चलाईं
त्रिगर्त राज्य ने ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में अपनी मुद्राएं भी चलाईं, जिससे पता चलता है कि उस समय यह एक स्वतंत्र जनपद था। मुद्राओं पर त्रिगर्त जनपद देश ब्राह्मी लिपि में लिखा मिलता है। दूसरी ओर की लिपि खरोष्ठी है। ये मुद्राएं चौकोर हैं…
हिमाचल के प्राचीन जनपद
विष्णु पुराण में इसका उल्लेख औदुंबरों और कुलूतों के साथ किया गया है। राजतरंगिणी में इसे कश्मीर के नजदीक बताया गया। पाणिनी ने त्रिगर्त नामक छह संघ राज्यों का उल्लेख किया है। कोंडोरपथ, दांडकि, क्रोष्टकि, जालमनि, ब्राह्मगुप्त, जानकि, जिन्हें उसने त्रिगर्त षष्ठ कहा है। यहां के लोग वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। त्रिगर्त राज्य ने ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में अपनी मुद्राएं भी चलाईं, जिससे पता चलता है कि उस समय यह एक स्वतंत्र जनपद था। मुद्राओं पर त्रिगर्त जनपद देश ब्राह्मी लिपि में लिखा मिलता है। दूसरी ओर की लिपि खरोष्ठी है। ये मुद्राएं चौकोर हैं।
औदुंबर गण ः पाणिनी के गण पाठ में उल्लिखित अन्य राजन्य समूह में औदुंबर का नाम भी लिया जाता है। उसने इसे जलंधर के निकटवर्ती कहा है। महाभारत में औदुंबरों का नाम भी शामिल है, जिन्हें उत्तर के निवासी बताया गया है। विष्णु पुराण में त्रिगर्त अथवा कुणींद जाति के साथ इनका उल्लेख किया हुआ है, परंतु वृहत्संहिता में उन्हें मध्य देश के निवासी बताया गया है। चंद्रवर्ती में औदुंबरों का वर्णन मद्रों के साथ आया है। औदुंबर देश कहीं रावी और व्यास नदियों की ऊपरी दूनों में रहा होगा, जिसकी पुष्टि बौद्ध ग्रंथों तथा वहां पर मिली औदुंबर मुद्राओं से होती है। पठानकोट व नूरपुर आदि भाग भी औदुंबर देश में ही शामिल थे। ये प्राचीन शलव जाति की छह श्रेणियों में से एक थे। मद्र भी शालव जाति में से थे। औदुंबर अपने को ऋग्वेद के तीसरे सूक्त के रचयिता विश्वामित्र के वंशज मानते थे। पतंजलि ने औदुंबरावती नदी का उल्लेख किया है, जो ऊपर लिखित दूनों के बीच की कोई छोटी नदी होनी चाहिए। इसी के तट पर औदुंबरों की राजधानी रही होगी। संभवतः यह नदी वही हो सकती है, जो गुरदासपुर के पास ब्यास में मिलती है। औदुंबरों की राजधानी और अगलपुर को बौद्ध धर्म के गढ़ बताया गया है। राजन्यादिगण में औदुंबर देश के क्षत्रियों को औदुंबरक कहा गया है। औदुंबरों ने अपने समृद्ध काल में मुद्राएं भी चलाईं। पठानकोट, ज्वालामुखी, हमीरपुर आदि स्थानों पर इस गणराज्य की कुछेक मुद्राएं मिली हैं। ये मुद्राएं तीन प्रकार की हैं। पहली प्रकार की मुद्रा तांबे की चौकोर है, जो सबसे पहले इस गण ने तैयार करवाई थी। ये मुद्राएं सर्वथा भारतीय ढंग की हैं क्योंकि बाद की मुद्राओं पर पहलव और कुषाण का प्रभाव टपकता है। इन मुद्राओं पर ब्राह्मी तथा खरोष्ठि दोनों लिपियों में राजा के नाम के साथ-साथ गण(औदुंबर) का नाम भी मिलता है। लिपि से अनुमान लगाया जा सकता है कि ये मुद्राएं प्रथम शताब्दी से पहले की हैं।
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