प्रदेश में दूसरे साल भी सेब की कम पैदावार
शिमला — हिमाचल प्रदेश में लगातार दूसरे वर्ष भी सेब की फसल कम आंकी जा रही है। इसका अंदाजा इससे बखूबी लगाया जा सकता है कि राज्य के कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब सीजन सिमट चुका है। राज्य के मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में भी सेब सीजन आधे में आने को है। मगर अभी भी विभिन्न फल मंडियों में सेब सीजन उतनी रफ्तार नहीं पकड़ पाया है। जितनी पूर्व सेब सीजन के दौरान अगस्त माह में होता था। मौजूदा सेब सीजन के दौरान अब तक विभिन्न फल मंडियों में 13 लाख के करीब सेब बॉक्स पहुंच चुके है, जबकि बीते वर्ष में इस दौरान 14 लाख से अधिक सेब बॉक्स मार्केट में पहुंच चुके थे। ऐसे में इस वर्ष भी लगातार दूसरी बार राज्य में सेब का उत्पादन कम होने का अनुमान लगाया जा रहा है। हिमाचल में बीते वर्ष भी सेब का उत्पादन कम हुआ है। वर्ष 2016 के दौरान राज्य में अढ़ाई करोड़ से कम सेब बॉक्स हुए थे। वही इस वर्ष भी विभाग द्वारा राज्य में अढ़ाई करोड़ से कम उत्पादन का अनुमान लगाया है। राज्य की फल मंडियों से बागबानों को फसल के अच्छे दाम मिल रहे है। हालांकि सेब सीजन की शुरुआत के दौरान फल मंडियों में बागबानों को सेब के दम दाम मिल रहे थे। मगर मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों से सेब मार्किट में पहुंचचते ही दामों में उछाल आया है। आगामी दिनों में सेब के दामों में और उछाल आने की उम्मीदें जताई जा रही है।
सेब का उत्पादन
वर्ष पेट्टियों की संख्या
2012 2,06,19,498
2013 3,69,36,172
2014 3,12,59,950
2015 3,88,57,300
2016 2,34,06,700
2017 2, 70 करोड़ अनुमानित
मौसम की मार पड़ रही भारी
हिमाचल प्रदेश में मौसम की मार बागबानों पर भारी पड़ने लगी है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान मौसम के कड़े तेवरों के चलते राज्य में सेब का उत्पादन घटने लगा है। इस वर्ष भी सेब के पौधों में फ्लावरिंग व सेटिंग के दौरान ठण्ड पड़ने से पौधों में अच्छी सेटिंग नहीं हो पाई, जबकि बाकी कसर ओलावृष्टि ने पूरी कर दी। ओलावृष्टि के चलते जिला, शिमला व मंडी में सेब की फसल को भारी नुक्सान हुआ है।
रॉयल 2300, स्पर बिक रहा 2800 में
फल मंडियों में बागवानों को अच्छे दाम मिल रहे है। मार्किट में रॉयल सेब 1800 से 2300 रुपए (प्रति बॉक्स) और स्पर सेब 2200 से 2800 के मध्य बिक रहा है। सेब सीजन की शुरूआत में स्पर सेब 3400 से 3500 रुपए भी बिका था।
सताने लगी चिंता
प्रदेश में हर वर्ष सेब की फसल पर मौसम की मार पड़ने से बागबान चिंतित हैं। हालांकि ओलावृष्टि से फसल को बचाने के लिए बागबान एंटी हेलगन और जालियों का प्रयोग कर रहे है। मगर फ्लावरिंग व सेटिंग के दौरान पड़ रही मौसम की मार बागबानों के लिए आफत बन गई है।
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