बंदरों के आतंक से 54 बीघा जमीन बंजर

By: Aug 22nd, 2017 12:05 am

हनुमान जी की सेना के रूप में आम जनमानस के लिए पूजनीय रहे बंदर ऐसे खुराफाती हुए कि किसानों को दाने-दाने के लाले पड़ गए हैं। कल तक गुड़-चना डालकर अपने आराध्य देव को खुश करने में लगे किसान आज बंदरों के आतंक से इस कद्र परेशान हैं कि घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से ही वे मुंह मोड़ने लगे हैं…

शिमला  —  शिमला के साथ लगते ग्रामीण क्षेत्रों में बंदरों के आतंक के चलते किसान खेतीबाड़ी छोड़ने को मजबूर होने लगे हैं। शहर के साथ लगते, जिन ग्रामीण क्षेत्रों में दस साल पहले खेतों में मक्की व गेहूं की फसल लहलहराती थी आज उन क्षेत्रों में बंदरों के आतंक के चलते कई बीघा भूमि बंजर पड़ चुकी है। शिमला के समीप बढ़ई गांव (संकट मोचन के साथ) के ग्रामीण भी बंदरों के आतंक से परेशान हैं। बंदरों द्वारा हर सीजन में फसलों को नष्ट करने से परेशान बढ़ई के किसानों ने खेतीबाड़ी को कम कर दिया है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि बढ़ई में बंदरों के आतंक के चलते 54 बीघा के करीब कृषि योग्य भूमि बंजर पड़ चुकी है। किसानों ने मक्की व गेहूं की फसल उगाना बिलकुल कम कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि बंदरों से परेशान होकर अब किसान उसी भू-भाग में फसलें उगा रहे हैं ,जहां पर आसानी से फसल की निगरानी हो सके। इन क्षेत्रों में भी दिन भर बंदरों की निगरानी करनी पड़ती है। अगर कहीं भूले से निगरानी कम होती है, तो उत्पाती वानर चंद ही पलों में पूरी मेहनत पर पानी फेर देते हैं ,जिससे उन्हें भारी  नुकसान उठाना पड़ता है।

बंदरों के आतंक से छोड़ी खेतीबाड़ी

बढ़ई के जय श्री का कहना है कि बढ़ई में बंदरों के आतंक के चलते किसानों ने खेतीबाड़ी को कम कर दिया है, जिसके चलते गांव में 54 बीघा के करीब खेती योग्य जमीन बंजर पड़ चुकी है। किसान अब अपने घरों के समीप ही फसलें उगाने को मजबूर हैं जहां पर आसानी से निगरानी की जा सके।

दुकानों से खरीद रहे हर चीज

सरस्वती का कहना है कि शिमला के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बंदरों का आतंक है। किसानों ने खेती बाड़ी को कम कर दिया है। अब कम ही भू-भाग पर खेतीबाड़ी की जा रही है, जिससे पैदावार में भी गिरावट आई है। पहले किसान जहां अपने खेतों में हर तरह की फसल तैयार कर गुजारा चलाता था ,आज हर चीज दुकान से खरीदनी पड़ रही है।

दिनभर करनी पड़ती है फसलों की निगरानी

सुशील का कहना है कि बढ़ई में बंदरों के आतंक से ग्रामीणों ने मक्की व गेहूं की खेती को कम कर दिया है। ग्रामीण कुछ ही भू भाग पर खेती करते हैं, मगर खेतों में सारा दिन बैठकर निगरानी करनी पड़ती है। चूंकि चंद पल पर ध्यान हटने पर भी वानर पूरी फसल को चौपट कर देते हैं।

चंद मिनटों में मेहनत पर फेर देते हैं पानी

रीता देवी का कहना है शिमला व आसपास के क्षेत्रों में बंदरों का आतंक है। किसान दिन-रात मेहनत कर खेतों में फसल उगाता है, लेकिन बंदर चंद ही मिनटों में सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। अब तो फसल की निगरानी करना भी मुश्किल हो गया है। चूंकि शिमला के बंदर भगाने पर काटने को दौड़ते है।

अब दो-तीन खेतों पर हो रही खेती

ध्यान सिंह का कहना है कि पहले जहां वे 12 से 15 खेतों में खेती करते थे, लेकिन हर सीजन बंदरों के आतंक से परेशान होकर अब दो-तीन खेतों में ही खेती कर रहे हैं। इन खेतों में भी फसलों को बंदरों से बचाना चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। त्पाती वानर चंद ही पलों में पूरी मेहनत पर पानी फेर देते हैं।

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