बंदरों ने बंजर कर दी सौ एकड़ जमीन

By: Aug 23rd, 2017 12:05 am

हनुमान जी की सेना के रूप में आम जनमानस के लिए पूजनीय रहे बंदर ऐसे खुराफाती हुए कि किसानों को दाने-दाने के लाले पड़ गए हैं। कल तक गुड़-चना डालकर अपने आराध्य देव को खुश करने में लगे किसान आज बंदरों के आतंक से इस कद्र परेशान हैं कि घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से ही मुंह मोड़ने लगे हैं…

सज्याओपिपलू — ग्राम पंचायत सज्याओपिपलू के किसानों ने बंदरों के आतंक से परेशान होकर खेती करना छोड़ दिया है। पंचायत में कई वर्षों से बंदरों का आतंक दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यही नहीं घरों में भी बंदर उन्हें चैन से नहीं रहने देते। स्थानीय लोगों का कहना है कि जो भी सरकार आती है वह उत्पादी बंदरों को पकड़ने के लिए नए-नए कानून पास करती है, लेकिन आज तक न तो इन बंदरों को पकड़ने के लिए सफल रही और न ही इनको मारने का समाधान नहीं किया गया है,  जिस कारण किसानों ने मक्की की फसल की खेती करना छोड़ दिया है। पंचायत के पांच करनोल, पिपली, सज्जायो, गलासण और बाहल गांव में बंदरों के आतंक से लोग परेशान हैं। इन गांवों में 100 एकड़ से अधिक भूमि पर मक्की फसल पैदा नहीं की जा रही है। पांच गांवों में 40 से अधिक परिवार पूरी तरह से खेती करना छोड़ चुके हैं।

छोड़ दिया मक्की बीजना

सज्याओपिपलू गांव के संजय कुमार (40) का कहना है कि बंदरों के आतंक से परेशान होकर पांच वर्ष पहले मक्की और सब्जी की बीजाई करना छोड़ दिया है। लगभग नौ बीघा जमीन से अब कुछ भी पैदा नहीं होता है। सारी की सारी जमीन बंजर होती नजर आ रही है।

अब मक्की नहीं, उगाते हैं घास

पिपली  के ग्रामीण बंशी लाल (52) कहना है कि आज से दस वर्ष पहले इनको मक्की की बंपर फसल होती थी। लेकिन अब इन उत्पादी बंदरों के आतंक से उन्होंने लगभग 20 बीघा जमीन में घास बीजना शुरू कर दिया है और कुछ बंजर छोड़ दी है।  उनका कहना है कि कभी-कभी तो मक्की के बीज के पैसे भी पूरे नहीं होते हैं, जबकि घास को भी सूअर बर्बाद कर रहे हैं।

अब बिजाई का खर्चा निकालना भी मुश्किल

बाहल गांव के अश्वनी कुमार (45) का कहना है कि लगभग आठ वर्ष से उन्होंने खेती करना छोड़ दिया है, क्योंकि बंदरों के आतंक से परेशान होकर लगभग 80 फीसदी फसल बर्बाद हो जाती थी और साथ में बंदरों की रखवाली पूरा दिन करनी पड़ती थी। जब फसल काटने का समय आता तो जितना खर्चा फसल के उपर होता था, उसके बराबर की फसल भी नहीं मिलती थी।

10 बीघा जमीन हो गई बंजर

कसोहन गांव के रामलाल (70) का कहना है कि लगभग 15 वर्ष से मक्की की फसल बीजना ही छोड़ दिया है।  उनकी लगभग दस बीघा जमीन अब बंजर पड़ी है।  उन्होंने कहा कि अगर मक्की की फसल की बीजाई की जाए तो कुछ हासिल नहीं होता है। इसलिए बंदरों के आतंक से परेशान होकर मक्की की फसल की बिजाई करना छोड़ दिया है।

कोई ठोस नीति बने तो बने बात

यशपाल शर्मा (60)की आठ बीघा जमीन भी बंजर पड़ी हुई है।  वे भी बंदरों और सूअरों से परेशान हैं।  उन्होंने भी मक्की की खेती करना छोड़ दिया है। खेतों के खेत खाली हैं। उनका कहना है कि सरकार को इन बंदरों को पकड़ने के लिए कोई ठोस नीति बनानी चाहिए, ताकि किसान खेती छोड़ने पर मजबूर न होना पड़े।

खेतों से लेकर घरों तक में बंदरों का आतंक

अश्वनी कुमार (51) का कहना है कि बंदरों के आतंक से दो वर्ष पहले मक्की की फसल बीजना छोड़ दिया है। उन्होंने बताया कि जब वे मक्की की खेती करते थे तो बंदर उनकी फसल को बर्बाद कर देते थे। इसलिए अब मक्की की खेती करना बंद कर दिया है। उन्होंने कहा कि यही नहीं घरों में भी बंदर उन्हें चैन से नहीं रहने देते।

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