मस्तभौज में बंदरों उत्पात, फसल बर्बाद

By: Aug 27th, 2017 12:05 am

हनुमान जी की सेना के रूप में आम जनमानस के लिए पूजनीय रहे बंदर ऐसे खुराफाती हुए कि किसानों को दाने-दाने के लाले पड़ गए हैं। कल तक गुड़-चना डालकर अपने आराध्य देव को खुश करने में लगे किसान आज बंदरों के आतंक से इस कद्र परेशान हैं कि घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से ही वे मुंह मोड़ने लगे हैं…

पांवटा साहिब  – उत्तराखंड सीमा से सटे मस्तभौज के कई गांवों में बंदरों ने हाहाकार मचा रखा है। इनमें पंचायत शरली मानपुर, गुद्दी, कांडो च्योग व जामना पंचायत के कई गांव शामिल हैं। लोगों को सुबह से लेकर शाम तक खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है। रखवाली में जरा सी चूक हो जाए,तो समझो खेत तबाह। इसके साथ-साथ मस्तभौज के गांव जामना, माशु, पभार, कांडो च्योग, ठाना, गुद्दी, शरली, रांगुआ आदि गांव में टमाटर की पैदावार बरसातों में की जाती है। मस्तभौज क्षेत्र से करोड़ों रुपए के टमाटर की उपज की जाती है, परंतु कई बार बंदरों के कारण किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ता है। उधर, सरकार द्वारा  कभी भी किसानों को मुआवजा प्रदान नहीं किया गया है। लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार में मंत्री मेनका गांधी ने वन्य प्राणी संरक्षण को लेकर आवाज तो बुलंद की है, लेकिन किसानों की खेती के संरक्षण के लिए कोई भी कदम सरकार नहीं उठा रही हैं।

खेती छोड़ने पर मजबूर

हेमंत कुमार का कहना है कि खेतों में फसलें सुरक्षित नहीं हैं और न ही बेमौसमी सब्जियां बंदरों से बचा पाते हैं।  भगाने पर बंदर काटने को दौड़ रहे हैं। आज स्थिति यह है कि अब लोग खेती छोड़ रहे हैं।

मैं नहीं बीजता अब मक्की

अक्षय कुमार का कहना है कि बंदरों के आतंक से परेशान होकर उन्होंने खेतों में मक्की व अन्य नकदी फसलों की बिजाई बंद कर दी है। यदि खेतों में कोई भी फसल की बिजाई करें तो बंदर पूरी फसल को उजाड़ देते हैं। अदरक की खेती के विकल्प के रूप में टमाटर को चुना था, लेकिन अब वह भी मुश्किल है।

अब तो घर में भी डर 

सतीश कुमार का कहना है कि मस्तभौज में बंदरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि अब लोग घरों में भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं।  कई लोगों व बच्चों को बंदर अब तक काटकर घायल कर चुके हैं। खेतों में फसल सुरक्षित नहीं है और न ही घरों में लोग।

खेती से कर ली तौबा

अंकुश का कहना है कि मस्तभौज के कई गांव में बंदरों के आतंक से किसान, दुकानदार व राहगीर परेशान हैं। आज स्थिति यह है कि क्षेत्र के कई किसानों ने अब खेती करना ही छोड़ दिया है।

टमाटर भी नहीं बच पाता

सचिन कुमार का कहना है कि बंदरों के आतंक से लोगों ने अब खेती करना बंद कर दिया है। उन्होंने कहा कि किसानों ने अदरक के विकल्प के रूप में टमाटर को चुना था, लेकिन बंदरों से वे भी नहीं बच पाते हैं।

पलायन को हैं मजबूर

बृजभूषण ठाकुर ने बताया कि बंदर जहां खेतों में फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। बंदरों के आतंक से न केवल लोग किसानी छोड़ रहे हैं, बल्कि लोग अब पलायन को विवश हो रहे हैं।

दुकानदार परेशान

मामराज ठाकुर का कहना है कि बंदरों के उत्पात से न तो दुकानों में व्यापारी सामान रख पा रहे हैं और न ही खेतों में अनाज सुरक्षित है। आज आलम यह है कि बंदर घरों में घुस रहे हैं।

बच्चों को देख टूट पड़ते हैं

काका राम का कहना है कि मस्तभौज में बंदरों के खौफ के कारण उन्होंने खेती कम कर दी है।  बच्चों,महिलाओं व बुजुर्गों को देखकर बंदर काटने को दौड़ पड़ते हैं।

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