समुदाय की पलकों पर गद्दी नेता

By: Aug 10th, 2017 12:02 am

हिमाचल के मुख्यमंत्री का बयान राजनीति का गहरा अर्थ रखता है और भाजपा में गद्दी समुदाय के नेताओं को एकजुट होने का अवसर भी दे रहा है, पर क्या यह संभव है। कम से कम दूसरी पांत के नेताओं के हालिया बयान तो यही साबित करते हैं कि वरिष्ठ इस काबिल नहीं कि उनके ऊपर पूर्ण भरोसा किया जाए। कमोबेश कांग्रेस और भाजपा के वरिष्ठ गद्दी नेताओं को अपने समुदाय के भीतर ही कड़ी चुनौती मिल रही है, तो नए चेहरों की तलाश स्वाभाविक हो जाती है। जाहिर है ऊना में एक सवाल के जवाब में दिए गए तर्क गद्दी समुदाय को आहत कर गए और इस संदर्भ में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ भाजपा को जो मुद्दा मिला, उसमें सियासी नफा खारिज नहीं किया जा सकता। ऐसे में सरकार के वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी का रुतबा परखा जाएगा और सवाल उनके राजनीतिक नृत्य कौशल तक होगा। यह भी एक तथ्य है कि समुदाय ने अब तक के गद्दी मंत्रियों को एकछत्र साम्राज्य नहीं दिया, जबकि हर सरकार में प्रतिनिधित्व मिला है। धर्मशाला से पूर्व मंत्री किशन कपूर, भरमौर से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष तुलसी राम का सीधा विरोध गद्दी समुदाय ने किया है, तो अब भरमौरी पर भी प्रश्न चस्पां हैं। इतना ही नहीं, कुछ विधायक भी समुदाय की पलकों पर सवार नहीं हो सके, जिसके परिणामस्वरूप दूलो राम जैसे उभरते नेता भी हाशिए से बाहर हो गए। इस दौरान गद्दी समुदाय की बढ़ती राजनीतिक जागरूकता व एकता को युवा प्रतिभा के आलोक में समझना होगा। आगामी चुनाव की तैयारियों में जिस तरह परिदृश्य बदल रहा है, उसमें गद्दी समुदाय से कुछ प्रतिभाएं अवश्य ही राजनीतिक फलक बदल सकती हैं। इसके संकेत तमाम चर्चाओं और सोशल मीडिया में चल  रहे अभियान से मिलते हैं। सबसे बड़ा अखाड़ा भरमौर हलका ही बना हुआ है, जहां गद्दी समुदाय अपने नेतृत्व का चेहरा बदलना चाहता है और युवा पसंद के दर्पण में डा. जनक जैसे सफल न्यूरो सर्जन को भविष्य की छवि के रूप में देखा जा रहा है, तो त्रिलोक कपूर को भाजपा आलाकमान ने अपने अनुसूचित जनजाति मोर्चा का राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाकर बदलते समीकरण रेखांकित किए हैं। त्रिलोक कपूर का एक बड़े नेता के रूप में पदार्पण गद्दी समुदाय को भाजपा के नए कलेवर और तेवर में देख रहा है। कांगड़ा-चंबा संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की रूह को पकड़ते समीकरण अगर गद्दी समुदाय को एकत्रित करते हैं, तो यहां चौधरी मतदाताओं के संगम पर पूरी राजनीति को नहाना पड़ता है। बेशक गद्दी अब केवल भेड़-बकरी पालक नहीं सरकारी ओहदों में ऐसा शिक्षित समुदाय है, जो होटल, पर्यटन एवं ट्रैवल व्यवसाय में खासी पैठ रखता है। पिछले दशकों में इसे मिली सामाजिक सुरक्षा व आरक्षण के अधिकारों ने जो आत्मबल व सम्मान प्रदान किया है, उसके चलते यह समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर अपने वजूद की प्रतिस्पर्धा जान चुका है। प्रदेश के शैक्षणिक व प्रोफेशनल उत्थान में वर्तमान दशक गद्दियों के नाम अंकित प्रतीत होता है, क्योंकि समुदाय ने पहचान को कामयाबी से जोड़ा है। इनके बच्चे अब डाक्टर, इंजीनियर या प्रशासनिक अधिकारी नहीं, बल्कि राजधानी दिल्ली के कालेजों में प्राध्यापक तथा देश के अलग-अलग भागों में आईटी प्रोफेशनल के रूप में स्थापित हो रहे हैं। ऐसे में सामान्य गद्दी समुदाय के बजाय राजनीतिक अभिप्राय से जिन हलकों को मुख्यमंत्री का बयान सता रहा है, उसकी महत्त्वाकांक्षा सबसे अधिक भाजपा के करीब अपने कुनबे को देख रही है। यह भी एक प्रमाणित सत्य है कि गद्दी समुदाय और भाजपा के बीच नजदीकियां रही हैं और इसी राजनीतिक शक्ति के रूप में शांता कुमार को मिलता रहा समर्थन भी देखना होगा। हिमाचल के राजनीतिक लाभार्थियों में जातिगत व समुदाय के हिसाब से पार्टियां टिकट आबंटन करती रही हैं, इसलिए वर्ग विशेष की अहमियत बढ़ती रही है। गद्दी समुदाय भी इसी श्रेणी का राजनीतिक एहसास रहा है, लेकिन अब परिदृश्य को बदलने की महत्त्वाकांक्षा नए चेहरों में संभावनाएं टटोल रही है। ऐसे में वरिष्ठ गद्दी नेताओं को समुदाय के भीतर से मिल रही चुनौती का ठीक से विश्लेषण होता है, तो प्रदेश की राजनीति में युवा आकांक्षाओं का मिलन अवश्य होगा। यह संभव है कि मुख्यमंत्री के बयान के राजनीतिक अर्थों में गद्दी समुदाय कुछ ऐसे चेहरे ढूंढ ले जो एक तबके से कहीं आगे, हिमाचल के बदलते परिदृश्य में कामयाब सिद्ध हों।

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