प्रदेश की ‘आपदा’ में गायब ‘प्रबंधन’

By: Aug 17th, 2017 12:05 am

रविंद्र सिंह भड़वाल

लेखक, ‘दिव्य हिमाचल’ से संबद्ध हैं

रविंद्र सिंह भड़वालसवाल पूछा जा सकता है कि प्रदेश में आने वाली इन आपदाओं के बीच प्रबंधन है कहां ? कहने को तो राज्य में अपना एक अलग आपदा प्रबंधन बोर्ड है, मगर हल्की-फुल्की आपदा आने पर जिसके हाथ-पांव फूलने लगते हैं, उससे कोटरूपी जैसी भयावह त्रासदी में राहत की क्या उम्मीद की जाए…

पहाड़ी राज्य हिमाचल की भौगोलिक व प्राकृतिक संरचना बेहद जटिल है और उसी हिसाब से हर क्षेत्र व मौसम की चुनौतियां भी अलग हैं। कभी सर्दियों की हाड़ कंपाती ठंड और बर्फ से पहाड़ का जीवन जाम हो जाता है, तो कहीं गर्मियों में आगजनी के कारण करोड़ों के जंगल व अमूल्य जीव संपदा स्वाह हो जाते हैं। अब बेरहम बरसात में हिमाचल हर रोज एक नई परीक्षा से गुजर रहा है। आने वाले कल आपदा किस रूप में सामने खड़ी होगी, कहीं कोई खबर नहीं। कहीं दरकते पहाड़ों से हमारे विकास का जुलूस निकल रहा है, तो कहीं फटते बादल कहर बरपा रहे हैं। उरला के कोटरूपी में भी ऐसी ही आपदा आई और एक साथ कई जिंदगियां मलबे में दफन हो गईं। मौजूदा बरसात में अढ़ाई सौ से भी अधिक जानें अब तक जा चुकी हैं, तो इस बरसात के भयावह होते मंजर को समझना होगा। यहां सवाल यह पूछा जा सकता है कि प्रदेश में आने वाली इन आपदाओं के बीच प्रबंधन है कहां? कहने को तो राज्य में अपना एक अलग आपदा प्रबंधन बोर्ड है, मगर हल्की-फुल्की आपदा आने पर जिसके हाथ-पांव फूलने लगते हैं, उससे कोटरूपी जैसी भयावह त्रासदी में राहत की क्या उम्मीद की जाए? सरकार या इसका आपदा प्रबंधन बोर्ड अपनी क्षमता और कार्य के चाहे जो भी दावे कर लें, लेकिन हकीकत को देखें, तो यहां भी दावों का मलबा ही नजर आता है।

प्रदेश में आपदा से बचाव के लिए बोर्ड का न कोई नियोजन नजर आता है और न ही आपदा के दौरान नियंत्रण और समन्वय। मानसून के मौसम में आपदा और पहाड़ का तो पुराना रिश्ता रहा है, तो फिर अब तक हम इनसे निपटने के लिए एक अदद व्यवस्था क्यों खड़ी नहीं कर पाए? सच्चाई यह है कि विभिन्न खतरों से निपटने की तैयारी में हम आज भी बहुत पीछे हैं। बेशक सामुदायिक एवं निजी सहयोग किसी भी आपदा में कम नहीं रहा, लेकिन आपदा प्रबंधन बोर्ड को भी तो अपनी भूमिका समझनी होगी। प्रदेश में हर वर्ष आपदाएं किसी न किसी रूप में आती ही रहती हैं। उसके बावजूद हमने इनसे निपटने के लिए कोई प्रभावी तंत्र अब तक विकसित क्यों नहीं किया? क्यों दफ्तरों में बैठकर अधिकारी आंकड़ों का खेल खेल रहे हैं और रोजाना नुकसान की रिपोर्ट मांगी जा रही है? इस साल बर्फबारी के दौरान राजधानी शिमला में लगातार छह दिन तक बिजली बंद रही। तब भी आपदा प्रबंधन बोर्ड सवालों के घेरे में था। सरकारों ने न तो कभी आपदाओं को गंभीरता से लिया और न ही उनके प्रबंधन को। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आपदा प्रबंधन के लिए जो धनराशि आबंटित होती है, उसमें से करोड़ों रुपए तो ऐसे कार्यों पर डाइवर्ट कर दिए जाते हैं, जो आपदा प्रबंधन से संबंधित होते ही नहीं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पर आपदाओं से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए नीतियों, योजनाओं और आपदा प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश बनाने की जिम्मेदारी है। लेकिन मैदानी इलाकों से भिन्न पहाड़ी आपदाओं से निपटने के लिए इसने भी कभी अलग व व्यावहारिक योजना तैयार करने की जहमत नहीं उठाई।

हिमाचल प्रदेश भूकंप की दृष्टि से भी देश के संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल है। बार-बार संबंधित संस्थान प्रदेश में वैज्ञानिक एवं सुरक्षित निर्माण की हिदायत देते रहते हैं, लेकिन इन चेतावनियों की परवाह ही किसे है? इन खतरों के बीच जरूरी है कि कुछ सावधानियां बरती जाएं, ताकि नुकसान कम से कम हो। हैरानी तब होती है कि हम भूकंप सरीखी आपदाओं से डरते तो खूब हैं, लेकिन कभी प्रदेश में सुरक्षित निर्माण की जरूरत नहीं समझते। इसलिए खुदा न खास्ता कभी प्रदेश को भूकंप सरीखी त्रासदी झेलनी पड़ी, तो नालों से उठते विकास के स्तंभ कितने जख्म दे जाएंगे, अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थलों शिमला, मनाली व मकलोडगंज समेत कई अन्य स्थलों पर तो यह स्थिति और भी डरावनी है।

क्योंकि इन प्राकृतिक आपदाओं पर इनसान को कोई नियंत्रण नहीं है, इसलिए हमें अब इनसे निपटने की तैयारियों को ही नए सिरे से परिभाषित करना होगा। प्रभावी आपदा प्रबंधन की पहली शर्त है जागरूकता और प्रभावित क्षेत्र में तत्काल राहत एजेंसी की पहुंच। जागरूकता के अभाव में आपदा से भीषण तबाही तो होगी, राहत कार्य में भी दिक्कतें आएंगी। आपदा प्रबंधन में हर स्तर व विभाग में नियोजन, समुचित संचार व्यवस्था, ईमानदार और प्रभावी नेतृत्व, समन्वय आदि बेहद महत्त्वपूर्ण हैं।  केंद्र, राज्य एवं स्थानीय शासन के साथ-साथ विभिन्न विभागों, संस्थाओं व जन समुदाय को इसमें अपना योगदान देना होगा। संस्थागत संरचना, नीतियों, कानूनों और दिशा-निर्देशों के रूप में हमारे पास एक सहायक वातावरण मौजूद होना चाहिए। इसके लिए सरकार के केवल एक बोर्ड के भरोसे नहीं बैठा जा सकता। यह सभी विभागों और विकास सहभागियों का उत्तरदायित्व है। हमें प्रदेश की जलवायु, पहाड़ों की प्रकृति व मौसम के मिजाज को समझने के लिए अपने यहां शोध व अनुसंधान को विकसित करना होगा। आपदाओं से निपटने के लिए आधुनिक उपकरणों व मशीनों की खोज करनी होगी। हमें एक मजबूत अधोसंरचना का विकास करते हुए कुछ हेलिपेड भी विकसित करने होंगे, ताकि आपदा की स्थिति में राहत कार्य को त्वरित अंजाम दिया जा सके। सरकार और आपदा प्रबंधन बोर्ड को अब लापरवाही वाला रवैया छोड़कर, प्रदेश के सुरक्षित भविष्य के लिए एक स्पष्ट रोडमैप के साथ आगे बढ़ना होगा।

ई-मेल : luckybhadwal.dh@gmail.com

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