आध्यात्मिक शक्तियों का भंडार है कैलाश पर्वत

By: Sep 16th, 2017 12:05 am

इसकी परिक्रमा का महत्त्व भी वर्णनयोग्य है। कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कैलाश परिक्रमा मार्ग 15500 से 19500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर से 45 किलोमीटर दूर तारचेन कैलाश परिक्रमा का आधार शिविर है। कैलाश की परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी तारचेन से शुरू होती है …

गतांक से आगे…

कैलाश पर्वत को ‘गणपर्वत और रजतगिरि’ भी कहते हैं। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। यह हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है जो चार धर्मों तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म का आध्यात्मिक केंद्र है।

कैलाश पर्वत की परिक्रमा

इसकी परिक्रमा का महत्त्व भी वर्णनयोग्य है। कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कैलाश परिक्रमा मार्ग 15500 से 19500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर से 45 किलोमीटर दूर तारचेन कैलाश परिक्रमा का आधार शिविर है। कैलाश की परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी तारचेन से शुरू होती है और सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है। घोड़े और याक पर चढ़कर ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके कठिन रास्ते से होते हुए यात्री डेरापुफ पहुंचते हैं। वहां ठीक सामने कैलाश के दर्शन होते हैं। यहां से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है, मानो भगवान शिव स्वयं बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को ‘हिमरत्न’ भी कहा जाता है। इतनी ठंडी जगह पर भी हैं गरम पानी के झरने ड्रोल्मापास तथा मानसरोवर तट पर खुले आसमान के नीचे ही शिवशक्ति का पूजन भजन करते हैं। यहां कहीं-कहीं बौद्ध मठ भी दिखते हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु साधनारत रहते हैं। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहां गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। कहा जाता है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था।

जहां देवी पार्वती ने किया था घोर तप

इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊंचे स्थान हैं। ड्रोल्मा से नीचे बर्फ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी है। यहां एक किलोमीटर परिधि वाली पन्ने के रंग जैसी हरी आभा वाली झील, गौरीकुंड है। यह कुंड हमेशा बर्फ से ढका रहता है, मगर तीर्थयात्री बर्फ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते। साढे सात किलोमीटर परिधि तथा 80 फुट गहराई वाली इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।

गंगा का स्थान

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं।

मानसरोवर की महिमा

यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुई थी। इसी कारण इसे ‘मानस मानसरोवर’ कहते हैं। दरअसल, मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्क) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है – मन का सरोवर। मान्यता है कि ब्रह्ममुहूर्त (प्रातःकाल 3-5 बजे) में देवतागण यहां स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है।

राक्षस ताल (रक्षातल)

राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है। प्रचलित है कि राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोड़ती है।


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