इसरो को झटका

By: Sep 1st, 2017 12:05 am

आईआरएनएसएस-1 एच की लांचिंग फेल

NEWSबंगलूर— इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन को गुरुवार को बड़ा झटका लगा। भारत के आठवें नेविगेशन सेटेलाइट आईआरएनएसएस-1 एच की लांचिंग फेल हो गई। 1425 किलोग्राम वजन के सेटेलाइट को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लांच पैड से पीएसएलवी-40 के जरिए छोड़ा गया था। इसरो चेयरमैन एएस किरन कुमार ने मिशन के फेल होने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सेटेलाइट हीट शील्ड से अलग नहीं हो पाया। एएस किरन कुमार ने कहा कि आंतरिक रूप से सेटेलाइट अलग हो गया, लेकिन यह हीट शील्ड में बंद होता है। चौथे चरण में सेटेलाइट को हीट शील्ड से अलग होना था। ऐसा होते ही यह ऑर्बिट में चला जाता। पहले तीन चरण में कोई समस्या नहीं आई। गौर हो कि इस मिशन में पहली बार सेटेलाइट की असेंबलिंग और टेस्टिंग में प्राइवेट सेक्टर भी सक्रिय रूप से शामिल किया गया था। इससे पहले प्राइवेट सेक्टर की भूमिका सिर्फ कल-पुर्जों की सप्लाई तक सीमित थी। आईआरएनएसएस-1 एच सेटेलाइट को बनाने में बंगलूर बेस्ड अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजिज की अगवाई में प्राइवेट कंपनियों का 25 प्रतिशत योगदान था। इसरो को 2013 में लांच हुए अपने पहले नेविगेशनल सेटेलाइट आईआरएनएसएस-1ए की तीन परमाणु घडि़यों के काम बंद कर देने के बाद आईआरएनएसएस-1 एच को लांच करने की जरूरत महसूस हुई थी। परमाणु घडि़यों को सही-सही लोकेशनल डाटा उपलब्ध कराने के लिए लगाया गया था और इन्हें यूरोपियन एयरोस्पेस निर्माता ऑस्ट्रियम से खरीदा गया था। अहमदाबाद बेस्ड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के डायरेक्टर तपन मिश्रा कहते हैं कि हमें सेटेलाइट की पोजीशन को जानने की जरूरत पड़ती है, ताकि हम धरती पर किसी वस्तु की पोजिशन का पता लगा सकें। किसी सेटेलाइट कीपोजीशन को जानने के लिए परमाणु घडि़यों का इस्तेमाल होता है। इसके जरिए हम आधे मीटर की एक्यूरेसी से किसी सेटेलाइट की पोजीशन का पता लगा सकते हैं। जब टाइम सिग्नल नहीं मिलता है तो सही पोजीशन जानने में समस्या आती है। इसरो ने इंडियन रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम के नौ सेटेलाइट के लिए 27 परमाणु घडि़यों को आयात किया था। इनमें से सात सेटेलाइट अपनी कक्षाओं में हैं।

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