क्यों नाम पड़ा एकदंत

By: Sep 3rd, 2017 12:10 am

बच्चों के मन में हमेशा कई ऐसे सवाल उठते हैं जिनको जानने के लिए वह दादा- दादी के पास जाकर अपने सवालों के जवाब पूछते हैं। तो ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हम आपको बताते हैं…

भारतीय हिंदू परंपरा के अनुसार श्रीगणेश को पंच देवताओं के बीच सबसे प्रथम महत्त्व दिया जाता है। गणपति के 108 नामों में एक नाम है ‘एकदंत’। हम सब यह तो जानते हैं कि उन्हें एकदंत कहा जाता है पर क्या आप यह जानते हैं कि उन्हें उनका यह नाम कैसे मिला। तो आइए आज हम आपको बताएंगे गणपति का ‘एकदंत’ नाम कैसे पड़ा। हमारी पौराणिक कथाओं के अनुसार इस नाम से जुड़ी दो कहानियां हैं, जिनमें से एक कहानी है महाभारत की। कहा जाता है की दुनिया का सबसे लंबा महाकाव्य लिखना किसी भी साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं थी, इसलिए ऋषि व्यास ने श्रीगणेश को यह कार्य करने का आग्रह किया। गणेशजी ने उनकी बात को आदर देकर इस कार्य को पूरा करने  का निश्चय किया परंतु उनकी एक शर्त थी कि ऋषि व्यास उन्हें बिना रुके पूरी महाभारत सुनाएंगे। व्यास जी ने भगवान की इस शर्त को स्वीकार किया और उन्हें महाभारत सुनाना शुरू कर दिया। महाभारत के लिखने की शुरुआत के कुछ दिनों बाद श्रीगणेश द्वारा लिखने के लिए इस्तेमाल की गई लेखनी टूट गई। वह लिखना बंद नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने अपने दांत को तोड़ कर फिर से लिखना शुरू कर दिया। तब से उन्हें ‘एकदंत’ कहा जाने लगा। इस कहानी से यह भी प्रतीत होता है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार का बलिदान हमेशा कम ही होता है। दूसरी कहानी में बताया गया है कि एक बार जब महादेव सो रहे थे, उसी दौरान परशुराम वहां आए।

गणपति अपने पिता की नींद को खराब नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने परशुराम को अंदर जाने से मना कर दिया, जिस पर भगवान परशुराम बेहद नाराज हुए। उन्होंने अनेक बार अंदर जाने का प्रयत्न किया परंतु गणेशजी ने उनकी हर कोशिश को नाकाम कर दिया। परशुराम गुस्से से आग बबूला हो गए थे। उनके और गणेशजी के बीच एक युद्ध छिड़ गया। युद्ध के दौरान परशुराम ने गणपति पर अपनी कुल्हाड़ी, जो उन्हें शिव भगवान से प्राप्त हुई थी, फेंक कर हमला किया। तभी गणपति अपने पिता की कुल्हाड़ी को पहचान गए और उसका अपमान न करना जरूरी समझा। गणपति ने अवरोधन किए बिना अपने सिर को झुका कर कुल्हाड़ी के प्रभाव को अपने दांत पर झेल लिया, जिससे उनका दांत टूट गया। इस कहानी से भगवान गणेश के अपने माता- पिता के प्रति आदर, सम्मान और श्रद्धा की भावना प्रतीत होती है।


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