खाकी को चार चांद लगा चुकीं चंद्रा

By: Sep 3rd, 2017 12:15 am

newsबचपन में पिता का साया तीन वर्ष की आयु में उठ जाने के बाद परिवार के सदस्यों ने मेहनत व लगन से पढ़ाया लिखाया और अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया। आज जो भी मुकाम मैंने जीवन में हासिल किया है, वह सब मेरे परिवार, नानी और पति की देन है। पुलिस विभाग में रहते ढेरों उत्कृष्ट कार्य के लिए इनाम हासिल कर चुकी सेवानिवृत अधिकारी चंद्रा ठाकुर को हाल ही में चंद्रा ठाकुर को राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने भी सेवानिवृत्ति के बाद राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित किया है।

चंद्रा बचपन से पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी हमेशा अव्वल रहती थी। यही कारण था कि उन्होंने जो भी पाने की कोशिश की उसे पाने में कभी हिम्मत तक नहीं हारी। चंद्रा ठाकुर ने पुलिस विभाग तक पहुंचने के लिए जिस मेहनत से कार्य किए हैं, आज भी उन्हें उनके बेहतर कार्य में महिलाओं के साथ बेहतर व्यवहार के लिए पुलिस विभाग में याद किया जाता है। कुल्लू के गांव लंराकेलो की रहने वाली चंद्रा ठाकुर स्कूल में हमेशा एथलीट व अन्य खेलों में पहले स्थान पर रहती। 10वीं कक्षा तक उन्होंने 47 सर्टिफिकेट हासिल कर लिए। इसी बीच उनका सपना हुआ कि वह किसी कालेज में डीपी लग जाएंगी, लेकिन कहते हैं कि किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इस बीच उन्होंने जब रोजगार कार्यालय में अपना नाम दर्ज करवाया, तो चंद महीने के भीतर उन्हें इंटरब्यू कॉल आ गई। जो कि पुलिस में भर्ती के लिए था। तभी देश की प्रधानमंत्री की कमान महिला इंदिरा गांधी के हाथों में आ गईं। उन्होंने भी घोषणा की कि पुलिस विभाग में महिलाओं की भर्ती अधिक से अधिक की जाएगी। बस तभी इंटरव्यू कॉल आते ही चंद्रा  भी पुलिस विभाग में चली गईं।

जहां पर इंटरव्यू में बिना किसी की सिफारिश उन्होंने नौकरी पा ली। फिर क्या उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर देखा। देश के प्रति देश सेवा की भावना उन्हें उस मुकाम तक ले गई, जहां तक पहुंचने का सपना उन्होंने स्वयं भी कभी नहीं देखा। विभिन्न पदों पर तैनात रहते उन्होंने ऐसे- ऐसे कार्य किए कि उन्हें परमोशन मिलने में भी देरी नहीं लगी। यही नहीं, भुंतर एयरपोर्ट में सिक्योिरटी ब्रांच में रहते जब वह विदेशों से आने वाले विदेशियों को चरस के साथ धरने लगी तो चंद्रा ठाकुर का नाम इस तरह से धीरे-धीरे पुलिस विभाग में प्रसिद्ध होने लगा कि  उन्हें उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए डीजी डिस्क आवार्ड से भी सम्मानित किया गया। अपने कार्यकाल के दौरान चंद्रा ठाकुर ने गर्भवती होते हुए पुलिस की ड्यूटी से कभी छुट्टी तक नहीं ली। गर्भवती होते हुए भी जब भी उन्हें कहीं छापामारी के लिए अपनी टीम के साथ जाना पड़ता, वह तब भी चाहे दिन हो या रात हमेशा जातीं। यही नहीं, वह कभी किसी को यह तक एहसास नहीं होने देती कि उन्हें किसी तरह की कोई भी पीड़ा है। चंद्रा ठाकुर की मानें तो वह इस बात से खुश है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जो भी जिम्मेदारी उन्हें अधिकारियों ने सौंपे उन्होंने उसे बखूबी निभाया है। कभी उन्होंने किसी को शिकायत का मौका तक नहीं दिया। नारकोटिक्स के साथ मिलकर भी चंद्रा ने चरस की बड़ी-बड़ी खेप को पकड़ने में सफलता हासिल की है। चंद्रा कहती हैं कि सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें जो सम्मान राज्यपाल ने फिर से परिवार के सामने दिया है, वह उसे पाकर बेहद खुश हैं। यही नहीं, आज उन्हें एक बार फिर महसूस हुआ है कि वह आज भी वही चंद्रा ठाकुर हैं, जो कि पहले ड्यूटी के दौरान हुआ करती थीं। सेवानिवृत्त होने के बाद आज भी चंद्रा समाज के उत्थान में जुटी हुई हैं। महिलाओं के लिए  वह आज भी कार्य कर रही हैं, जहां पर वह हमेशा महिलाओं को न्याय दिलाने में भी हमेशा आगे रहती हैं। उनके बेहतर कार्य के लिए आज भी उन्हें सभी दूरभाष पर फोन कर किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य में सहयोग जरूर लिया जाता है। चंद्रा की दो बेटियां व एक बेटा है। छोटी बेटी जहां मीडिया जगत में कार्यरत है, वहीं बड़ी बेटी बीएड कालेज में प्रोफेसर हैं। बेटा अभी कालेज की पढ़ाई कर रहा है। चंद्रा के पति जोगिंद्र सिंह ठाकुर पर्यटन विभाग में कार्यरत हैं।

  -शालिनी राय भारद्वाज, कुल्लू

मुलाकात

newsअच्छे व कड़वे अनुभव भी हुए, पर खुश रही…

पुलिस विभाग की आपके जीवन पर क्या छाप पड़ी और जो बदले में लौटा पाईं?

राह में चाहे जितनी भी मुश्किलें हों, लेकिन कभी किसी को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हर मुश्किल से कैसे निपटना है। बदले में विभाग को  वही दे पाई जो भी विभाग की ओर से जिम्मदारी मिली। उस कार्य को मैंने हमेशा पूरा किया। कभी किसी को शिकायत का मौका तक नहीं आने दिया।

ऐसा समझा जाने लगा है कि पुलिस महकमे की कार्यशैली में मानवीय संवेदनाएं ताक पर रखी जाती हैं?

नहीं, ऐसा नहीं है। कई बार किसी के साथ कोई घटना या कोई बात विभाग के किसी व्यक्ति से हो जाए तो विभाग की छवि को अलग नजरिए से देखा जाता है। विभाग की नजर में सभी व्यक्ति समान हैं।

कम से कम कोटखाई कांड ने तो विभाग को पटकनी दे दी है। आज विभाग जहां खड़ा है वहां आप किसे दोष देना चाहेंगी?

यह मामला एक बिटिया से जुड़ा इस पर कहना काफी कठिन है, लेकिन अगर किसी ने कोताही बरती है, तो उसे सजा जरूर मिलनी चाहिए।

क्या पुलिस में रहते हुए आप कर्म को किस्मत से अलग कर पाईं?

नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मैंने जो कुछ भी पाया है वह अपने विभाग में रहते पाया है। किस्मत ही तो है जो मुझे पुलिस विभाग की ओर ले आई।

महिला पुलिस कर्मियों को साधारण जिम्मेदारी देकर  विभाग क्या साबित करना चहाता है?

विभाग पहले परखता जरूर है कि वह हर जिम्मेदारी को उठाने में सक्षम है या नहीं। वही एक कारण रहता है, लेकिन आज की महिला हर कार्य क्षेत्र में पुरुषों से आगे है और विभाग में रहते बेहतर कार्य कर रही हैं।

आपके जीवन के कठोर अनुभव और जब आप लिंगभेद की शिकार हुईं?

बचपन से लेकर आज तक कभी लिंगभेद की शिकार नहीं हुई। जीवन में कई कठोर अनुभव भी महसूस हुए। जब गर्भवती होते हुए भी कहीं पर दिन हो या रात, कभी भी छापामारी के लिए जाना पड़ता था, तब थोड़ा कठोर अनुभव जरूर महसूस किया।

क्या आप नहीं समझती कि कुछ महकमों में महिलाओं को माकूल तादाद और पूर्ण सामर्थ्य से काम करने का अवसर नहीं मिल रहा?

नहीं, ऐसा तो नहीं होना चाहिए। हमारे समय में ऐसा नहीं था, लेकिन आज महिलाएं हर क्षेत्र में सक्षम हैं। पर उन्हें कहीं न कहीं दरकिनार भी किया जाता है।

आपके जीवन को किन महिलाओं ने राह दिखाई, जिन्हेें आपने आदर्श माना?

मेरी मां और खासतौर पर मेरी नानी जो हर समय मुझे प्रोत्साहित करती। नानी ने जो मेरे लिए किया है, उसे मैं कभी नहीं भूल सकती।

पुलिस विभाग में आपको सबसे बड़ी खामी या मजबूरी क्या दिखाई देती है?

हंसते हुए… इस पर टिप्पणी नहीं कर सकती।

कुल्लू या प्रदेश के अन्य इलाकों में नशे के व्यापार पर अंकुश लगाने के अलावा युवा पीढ़ी को इसकी गिरफ्त से कैसे बचाएं?

बच्चों को नशे से दूर रखने में आज अभिभावकों का सबसे अहम रोल है। बच्चों को अगर घर से किसी तरह की कोई ढील न रहे तो बच्चा कभी इस राह की ओर नहीं जाएगा। बाकी जो इस मामले में बड़ी मछलियां संलिप्त हैं, उन्हें धरने की जरूरत है।

जिंदगी का कोई अनुभव या जब अपने जीवन पर फख्र होता है?

अनुभव बहुत से हैं। अच्छे भी कड़वे भी, पर हर दौर में खुश रही। रही फख्र की बात, तो पहले परिवार ने सहयोग किया और शादी के बाद दूसरे परिवार खासतौर पर पति ने। ऐसे में जीवन में कोई फर्क नहीं दिखा।

अपनी कोई एक खामी या कमजोरी मिटानी हो तो यह क्या है?

मैंने जो चुनौती ली उसे पूरा किया, कमजोर होती तो शायद अपनी किसी भी चुनौती में सफल रहने में कभी कामयाबी हासिल नहीं कर पाती।

खिलाड़ी रह चुकी चंद्रा ठाकुर का कोई सपना शेष बचा है?

कालेज में डीपी लगना चाहती थी, लेकिन किस्मत कहीं और ले गई। उसे पाकर भी काफी खुश थी।

जब कभी गुनगुनाती हैं, तो वह गीत या धुन क्या है?

गाने पहाड़ी व हिंदी सभी पंसद हैं, लेकिन जो हमेशा गुनगुनाती हूं ‘ हुस्न पहाड़ों का क्या कहना कि यहां 12 महीने मौसम जाड़ों का’।


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