पुराणों की महिमा

By: Sep 16th, 2017 12:05 am

गतांक से आगे…

नारद पुराण- छठा पुराण है नारद पुराण। इसमें 25000 श्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मंत्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गई है। दूसरे भाग में संगीत के सात सुरों, सप्तक के मद्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानों और स्वरमंडल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिए उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पांच स्वर ही होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था।

मार्कंडेय पुराण- सातवां पुराण है मार्कंडेय पुराण। अन्य पुराणों की अपेक्षा मार्कंडेय पुराण सबसे लघु है। इसमें मात्र 9000 श्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कंडेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अलावा भगवती दुर्गा तथा श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई कथाएं भी इस पुराण में संकलित हैं।

अग्नि पुराण- आठवां पुराण है अग्नि पुराण। इसमें 383 अध्याय तथा 15000 श्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष भी कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथाएं संकलित हैं। इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप हैं जिन में धनुर्वेद, गंधर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गंधर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप वेद भी कहा जाता है।

भविष्य पुराण- नौवां पुराण है भविष्य पुराण। इसमें 129 अध्याय तथा 28000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्त्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर ऋषियों के वार्तालाप है। इसी पुराण में सांपों की पहचान, विष तथा विषदंश संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी भी दी गई हैं।  इस पुराण में पुराने राजवंशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले नंद वंश, मौर्य वंशों, मुगल वंश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतांत भी दिया गया है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गई है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण- दसवां पुराण है ब्रह्मवैवर्त पुराण। इसमें 18000 श्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुलसी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा श्री कृष्ण की महिमा का बखान है। इसके अलावा इन से जुड़ी हुई कथाएं भी संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद संबंधी ज्ञान भी संकलित है।

लिंग पुराण- ग्यारहवां पुराण है लिंग पुराण। इसमें 11000 श्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगोलिक काल में युगए कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अंबरीष की कथा भी इसी पुराण में मिलती है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के संबंध में भी उल्लेख किया गया है।

वराह पुराण- बारहवां पुराण है वराह पुराण। इसमें 217 स्कंध तथा 10000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता माहात्म्य का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जो भौगोलिक और खगोलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वे तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञानिकों को पंद्रहवीं शताब्दी के बाद ही पता लग सके।

स्कंद पुराण- तेरहवां पुराण है स्कंद पुराण।  इसमें 81000 श्लोक और छह खंड हैं। इसमें 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में सह्याद्रि पर्वत श्रंखला तथा कन्याकुमारी मंदिर का उल्लेख भी किया गया है।


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