पूर्णता नहीं, प्रयास है महत्त्वपूर्ण

By: Sep 16th, 2017 12:05 am

अगर आपको अपने आस-पास के हर इनसान में बहुत सारी कमियां दिखती हैं, तो दरअसल आप ही पूरी तरह गलत हैं क्योंकि आपने जीवन की प्रकृति को नहीं समझा है। आप परफेक्शन की तलाश कर रहे हैं, लेकिन परफेक्शन का मतलब मृत्यु है। इनसान सिर्फ अपनी मृत्यु में ही परफेक्ट हो सकता है। जीवन में आप कोशिश कर रहे हैं या नहीं, आप ईमानदार हैं या नहीं, बस यही मायने रखता है…

याद रखना चाहिए कि अगर कोई बाहरी चीज हमें तकलीफ नहीं देती है, तो हम खुद एक-दूसरे को तकलीफ देना शुरू कर देते हैं। हम अपने परिवार, समाज, शहर या फिर देश के अंदर एक-दूसरे को कई तरीकों से परेशान करना शुरू कर देंगे। हम एक-दूसरे के बारे में गलत तरीके से राय कायम करने लगेंगे। बेशक अगर आप पर कोई ऐसी राय कायम करे, तो आपको अच्छा नहीं लगेगा। अगर आपको अपने आस-पास के हर इनसान में बहुत सारी कमियां दिखती हैं, तो दरअसल आप ही पूरी तरह गलत हैं क्योंकि आपने जीवन की प्रकृति को नहीं समझा है। आप परफेक्शन की तलाश कर रहे हैं, लेकिन परफेक्शन का मतलब मृत्यु है। इनसान सिर्फ अपनी मृत्यु में ही परफेक्ट हो सकता है। जीवन में आप कोशिश कर रहे हैं या नहीं, आप ईमानदार हैं या नहीं, बस यही मायने रखता है। जीवन के संदर्भ में परफेक्ट होने, न होने का सवाल कभी नहीं होता।

दूसरों की गलतियां ढूंढते मत फिरें

एक बार ऐसा हुआ कि एक महिला मांस की दुकान पर गई। वहां उसने दर्जनों मुर्गे लटकते हुए देखे। वह गई, एक मुर्गे का पैर उठाया, सूंघा। फिर दूसरा पैर उठाकर सूंघा। इसके बाद उसने पंख उठाकर सूंघा। इस तरह वह एक के बाद एक मुर्गे के साथ ऐसा करती रही। तभी कसाई उसके पास आया और उसके कंधे पर थपकी देकर बोला, ‘मैडम, क्या आप खुद ऐसे टेस्ट में पास हो सकती हैं?’ इसलिए आप सूंघते हुए मत घूमिए कि किसमें क्या बुराई है। सबमें थोड़ी-बहुत बदबू है। हर पेड़-पौधे की जड़ कहीं न कहीं कीचड़ में है। सवाल बस इसका है कि क्या उसमें खुशबूदार फूल आते हैं? अगर उसकी जड़ें साफ होंगी, तो उसमें कुछ भी अच्छा नहीं खिलेगा। जीवन की प्रकृति यही है। धरती पर हर चीज रूपांतरण की प्रक्रिया में है। क्या आप रूपांतरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं? सबसे बड़ा सवाल यही है। अगर आपके इस सवाल का जवाब हां हैं, तो और कोई चीज मायने नहीं रखती। अगर आप एक बंद तालाब हैं, हर दिन किसी न किसी चीज में उलझे रहते हैं और चालाकी से अपने उलझने की वजहें खोजते रहते हैं, तो आपका जीवन व्यर्थ है। कोई दूसरा जीव आपके मुकाबले अच्छी तरह से जिएगा। अगर आप किसी दूसरे जीव से बेहतर तरीके से नहीं जी सकते, तो आपको दुनिया में रहने का कोई हक नहीं है। क्योंकि हमारा जीवन बहुत खर्चीला है, हमें खाने, सोने, काम करने के लिए कितनी सारी व्यवस्थाएं करनी पड़ती हैं। जूतों से लेकर कपड़ों और घर तक, हमें कितना कुछ जुटाना पड़ता है। इतने खर्च के बाद आपको बाकी जीवों से कुछ बेहतर तो करना ही चाहिए।  इनसान ने बहुत सी बढि़या चीजें की हैं, मगर हर बढि़या चीज के साथ हमने कम से कम एक भयानक चीज जरूर की है। आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब है कि आप रोजाना अपनी भयानक चीजों को कम कर रहे हैं। एक भयानक विचार, एक भयानक भाव, एक भयानक शब्द, एक भयानक काम, हर दिन कम करते जाइए और एक-दो महीनों में आप बेहतर इनसान होंगे। इनसानों की सबसे भयानक चीज यह है कि वे अपने आप में कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहते हैं। उन्हें किसी दूसरे जीवन की पीड़ा और कष्ट से कोई लेना-देना नहीं होता। संवेदनशील न होना सबसे भयंकर अपराध है, क्योंकि अगर आप जीवन के प्रति संवेदनशील होते, तो जो करना आपके बस में है, उसे आप हर हाल में अच्छी तरह करते। जो आप नहीं कर सकते, वह नहीं होगा, बस इतनी बात है।

संवेदनशील बनना होगा

आप अपने साथ होने वाली चीजों के लिए बहुत संवेदनशील होते हैं, मगर दूसरों के साथ क्या होता है, इससे आपको कोई मतलब नहीं होता है। इस स्थिति में इनसान की सबसे बेहतर प्रकृति व्यक्त नहीं हो सकती। आपको संवेदनशील होना होगा। मैं जानता हूं कि दुनिया में संसाधनों के लिए, हर चीज के लिए प्रतियोगिता है और थोड़ा-बहुत टकराव होता ही रहेगा। मैं इन चीजों से बेखबर नहीं हूं, मगर आपको कम से कम अपने अंदर होने वाले टकराव को खत्म करना चाहिए। आपके विकास के लिए यह बहुत अहम है कि आप अपने आस-पास मौजूद हर जीवन के प्रति संवेदनशील बनें।

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

स्पष्टीकरण

संत रविदास जी उन संतों में गिने जाते हैं, जिन्होंने अपने जीवन-काल में पूरे समाज को सन्मार्ग दिखाया। आस्था के दो सितंबर के अंक में ‘खंडित होते महिमामंडित डेरे’ नामक लेख में संत महोदय का उल्लेख सकारात्मक रूप में किया गया है। लेखक का मनोरथ संत महोदय की छवि को नुकसान पहुंचाना कभी नहीं रहा। फिर भी अगर इससे भक्तों को कोई ठेस लगी है, तो हम क्षमा याचना करते हैं।

-फीचर डेस्क

 


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