बंदरों ने बंजर कर दिए फसलों से हरे-भरे खेत
हनुमान जी की सेना के रूप में आम जनमानस के लिए पूजनीय रहे बंदर ऐसे खुराफाती हुए कि किसानों को दाने-दाने के लाले पड़ गए हैं। कल तक गुड़-चना डालकर अपने अराध्य देव को खुश करने में लगे किसान आज बंदरों के आतंक से इस कद्र परेशान हैं कि घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से ही वे मुंह मोड़ने लगे हैं…
भटेहड़ वासा — बंदरों व आवारा पशुओं की दिन प्रतिदिन बढ़ रही संख्या किसानों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है । सरकारों द्वारा चाहे बंदरों के आतंक से किसानों को छुटकारा दिलाने के लिए लाख कोशिशें की गई हो, लेकिन सब बेकार हैं। बंदरों के डर से लोगों का घरों से बाहर तक निकलना दुश्वार हो गया है। यहरं तक कि अभिभावक भी बच्चों को अकेले स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं। दिन-रात खेतों में मेहनत कर अंत में कुछ भी किसानों के हाथ नहीं लग रहा है। अब थक हारकर ग्रामीणों ने खेतों से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। आंखों के सामने धान, मक्की व गेहूं से लहलहाते खेत धीरे-धीरे बंजर होते जा रहे हैं। खेतों के अलावा बंदर लोगों के घरों में भी जमकर उत्पात मचा रहे हैं। फसल का आधा हिस्सा खुद खाकर किसान कुछ बेच भी लेते थे, लेकिन अब तो नौबत यहां तक आ गई है कि खुद के लिए राशन बाजार से खरीदना पड़ रहा है। अगर हालात ऐसे ही रहे तो हर तरफ बंदर ही बंदर दिखाई देंगे। सरकार द्वारा बंदरों की नसबंदी के लिए चलाई गई योजना भी हवा नजर आ रही है। थक हार कर किसानों ने खेती से मुंह मोड़ लिया है।
बंदरों के आतंक से छोड़ी खेतीबाड़ी
भटेड़ अब्बल के कैप्टन कुलदीप सिंह का कहना है की उनके पास 43 कनाल खेती योग्य जमीन है , लेकिन बंदरों के आतंक के चलते खेती करना छोड़ दी है । फसल तो दूर फल व सब्जियां लगाना भी दुश्वार हो गया है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि किसानों को जल्द बंदरों से छुटकारा दिलाया जाए।
डर के मारे घर से बाहर निकलना दुश्वार
ग्राम पंचायत भटेड़ बासा के पूर्व उपप्रधान कृष्ण कुमार का कहना है कि बंदरों के आतंक से फसल बीजना तो दूर, लोगों व बच्चों का घर से बाहर निकलना दुश्वार हो गया है। बंदरों के उत्पात के कारण अभिभावक अपने बच्चों को अकेले स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं। सरकार को चाहिए कि वह किसानों को बंदरों के आतंक से जल्द छुटकारा दिलाए।
बंदरों ने छिना किसानों का सुख-चैन
भटेड़ अब्बल के दलजीत सिंह का कहना है कि बंदरों के आतंक ने किसानों का सुखचैन छीन लिया है । साल भर खेतों में दिन-रात मेहनत करने के बाद अंत में बंदर सब कुछ तबाह कर देते हैं। ऐसे में किसानों की दिक्कतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। गेहूं-धान व मक्की से लहलहाते खेत धीरे-धीरे बंजर होते जा रहे हैं।
गेहूं-मक्की छोड़ सिर्फ उगा रहे घास
बासा के प्रदीप शर्मा का कहना है कि उन्होंने अपनी खेती योग्य सात कनाल भूमि पर खेती करना ही छोड़ दी है । गेहूं-मक्की व धान की फसल को छोड़कर पशुओं के लिए घास की पैदावार की जा रही है। अगर समय रहते किसानों को बंदरों से छुटकारा नहीं दिलाया गया तो सारे खेत बंजर नजर आएंगे।
बच्चों-महिलाओं का डर से चलना दुश्वार
ग्राम पंचायत भटेहड़ वासा के उपप्रधान सुमन सिंह का कहना कि बंदरों का इलाके में इतना खौफ है कि अभिभावक बच्चों को अकेला स्कूल नहीं भेज सकते। उन्होंने बताया कि जमीन हेते हुए भी खेती छोड़ने को मजबूर हो चुके हैं। थोड़ी-बहुत मक्की की बिजाई की है, जिस दिन में बंदर तो रात को जंगली जानवर चट कर रहे हैं।
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