बच्च्यों की कुत्तों से होती है शादी

By: Sep 30th, 2017 12:05 am

झारखंड में भूत-प्रेत भगाने के लिए बच्चियों की शादी कुत्तों से कराई जाती है। भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर बच्चियों की शादी कुत्तों से करवाई जाती है। हालांकि यह शादी सांकेतिक होती है, पर होती है असली हिंदू तरीके और रीति-रिवाज से। लोगों को शादी में आने का निमंत्रण दिया जाता है। पंडित, हलवाई, सब बुक किए जाते हैं…

भारत एक विशाल देश है जिसमें एक से अनेक परंपराएं हैं। इनमें से कई विचित्र परंपराएं हैं जिन्हें सुन-देख कर लोग अकसर दंग रह जाते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में ये परंपराएं वर्षों से निभाई जा रही हैं। इन परंपराओं को निभाने के पीछे यह मान्यता है कि इससे परंपराएं निभाने वालों को कोई न कोई लाभ होता है। इसी कारण ये परंपराएं भारतीय समाज के कुछ हद तक आधुनिकीकरण के बावजूद मनाई जा रही हैं। हालांकि समाज के लिए हानिकारक कुछ परंपराओं पर सरकार की ओर से पाबंदियां भी लगाई गई हैं, इसके बावजूद कई ऐसी परंपराएं हैं जिन्हें निर्बाध रूप से आज भी निभाया जाता है। आस्था के इस अंक में हम आपको इस बार दो विचित्र परंपराओं से अवगत कराएंगे। पहली परंपरा का संबंध झारखंड से है। यहां भूत-प्रेत भगाने के लिए बच्चियों की शादी कुत्तों से कराई जाती है। इसे परंपरा न कहकर कुरीति कहा जाए तो ज्यादा उपयुक्त होगा। इसमें भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर बच्चियों की शादी कुत्तों से करवाई जाती है। हालांकि यह शादी सांकेतिक होती है, पर होती है असली हिंदू तरीके और रीति-रिवाज से। लोगों को शादी में आने का निमंत्रण दिया जाता है। पंडित, हलवाई, सब बुक किए जाते हैं। बाकायदा मंडप तैयार होता है और पूरे मंत्र-विधान से शादी संपन्न कराई जाती है। इस शादी में एक असली शादी जितना ही खर्चा होता है और इससे भी बड़ी बात यह है कि समाज एवं रिश्तेदार भी इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। शायद आपको एक बार तो यकीन ही नहीं होगा कि ऐसा भी हो सकता है, लेकिन यह बिलकुल सत्य है। हमारे देश में झारखंड राज्य के कई इलाकों में परंपरा के नाम पर ऐसी शादियां सदियों से कराई जा रही हैं।

भाई को मर जाने का श्राप देती हैं बहनें

दूसरी परंपरा का संबंध उत्तर भारत से है। कुछ उत्तर भारतीय समुदायों में भाई दूज मनाने की अनोखी प्रथा है। इसमें बहनें भाई दूज के दिन यम देवता की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान वे अपने भाइयों को कोसती हैं तथा उन्हें मर जाने तक का श्राप देती हैं। हालांकि वे श्राप देने के बाद अपनी जीभ पर कांटा चुभो कर इसका प्रायश्चित भी करती हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि यम द्वितीया (भाई दूज) पर भाइयों को गालियां व श्राप देने से उन्हें मृत्यु का भय नहीं रहता है।


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