बाबा या नर पिशाच
(डा. राजन मल्होत्रा, पालमपुर )
गुरमीत की लाख कोशिशों के बावजूद उसे अपने कृत्यों की सजा से मुक्ति नहीं मिल सकी। गुरमीत के तथाकथित चेलों ने भी अपने बाबा को बचाने के कानूनी-गैर कानूनी हर तरह के प्रयास किए, लेकिन अंततः सब व्यर्थ हुए। अब सलाखों के पीछे पड़ा गुरमीत अपने गुनाहों की सजा भुगत रहा है। खुद को बाबा कहलवाने वाला गुरमीत कितना कर आध्यात्मिक था, इसका भी अंदाजा उसकी रंगीन मिजाज जिंदगी से सहज ही लगाया जा सकता है। रंग-बिरंगे भड़कीले कपड़े पहनना, महंगी बाइकों-गाडि़यों की सवारी करना, देश-विदेश में बेढंगे स्टेज शो से उसकी हकीकत का आसानी से समझा जा सकता है। यह सब देखकर भी उनके कुछ अंधे भक्त उनकी भक्ति में लीन रहे और जब कानून आपराधिक मामलों में उसे सजा सुनाने ही वाला था, तो यही कथित भक्त उत्पात, हिंसा और अराजकता पर उतर आए। इस हिंसा में न जाने कितने ही लोगों की जान चली गई, बल्कि करोड़ों की संपत्ति दो-चार दिनों में स्वाह हो गई। यह सब बाबा की मौन सहमति से ही हुआ। ऐसे में समझ नहीं आता कि इसे बाबा कहें या नर पिशाच?
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