बीवियों की पैरवी
पार्टी द्वारा टिकट के लिए तय किए गए मानकों और दावेदारों की बढ़ती कतार के बीच टिकट की जंग में खुद को पिसता देख पुराने धुरंधरों ने नया पैंतरा फेंक दिया है। फूल वालों की ओर से इन चुनावों में महिलाओं को भी ज्यादा टिकट देने की बात उठी तो नेताओं ने अपनी जगह टिकट के लिए अपनी बीवियों के नाम आलाकमान के समक्ष रख दिए। ऐसी दिक्कत उन स्थानों पर आ रही है, जहां बरसों से कुर्सी पर चिपके और टिकट को अपनी जागीर समझ चुके नेताओं ने सेकंड लाइन को पनपने ही नहीं दिया। पहले डर यह था कि नए नवेले कहीं समय के साथ टिकट के दावेदार न बन जाएं तो अब यह डर सता रहा है कि नियमों का चाबुक चलने से कहीं क्षेत्र की सत्ता अपने कब्जे सही न छिटक जाए। ऐसे में अब कोई राह न दिखी तो धर्मपत्नियों के नाम पर ही टिकट की मांग शुरू कर दी। ऐसे नेताओं का मानना है कि यदि पत्नी को टिकट मिल जाता है और जीत जाती है तो उनका रौब तो बरकरार रहेगा, पर नेता भूल रहे हैं कि अब नारी शक्ति का जमाना है और महिलाएं घर के साथ सत्ता संभालना भी खूब जानती हैं।
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