मां की गाथा

By: Sep 11th, 2017 12:02 am

(जग्गू नौरिया, जसौर, नगरोटा बगवां )

लिख पाऊं मैं तेरी गाथा, हुनर यह नहीं आता,

मां तू दया का सागर है, कोई न तेरे बराबर है।

जिह्वा से सबसे पहले, नवजात ‘मां’ ही कह पाता।

मां तू ममता की डोर है, असीमित तेरा छोर है।

लिखूं तुम पर कविता, पास मेरे वे अल्फाज नहीं,

दुनिया रंग बदलती, मां बदले उसका स्वभाव नहीं।

निगाह फेरता रहा समाज, तेरी निगाह पाक साफ,

तू तपस्या, तू है पूजा, ममता का असीम आभास।

तू गुणों का भंडार है, तुमसे सजता परिवार है,

मांगते सब रिश्ते लेखा, तेरा देना ही बेहिसाब है।

मां पर लिखना दुष्कर, जो लिखा बस मेरा ख्याल,

मां, तू साधना, तू ही भक्ति,

मेरे हर तप का तू ही आगाज है।


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