सुनी सुनाई
गुप्ता जी सुबह-सुबह कहां चले सज-धज कर, शादी है कहीं? अरे नहीं चौधरी साहब हमारे पड़ोस में एक महोदय रहते हैं। रात को आए थे कोई रैली करने की बात कर रहे थे। रैली….! कैसी रैली गुप्ता जी क्या किसी राजनीतिक पार्टी से है। नहीं चौधरी साहब पार्टी-बार्टी तो पता नहीं, लेकिन खुद को समाजसेवी कहते हैं। अखबारों में भी कई बार फोटो छपी होती है। कह रहे थे कि जनता चाहती है कि मैं चुनाव लड़ूं। इसलिए आज रैली करेंगे, तो मैं वहां जा रहा हूं। पड़ोस की बात है, मना भी नहीं कर सकता। वरना मैं तो इन झमेलों में फंसता ही नहीं। गुप्ता जी वैसे चुनावों के समय ऐसे समाजसेवी काफी सक्रिय हो जाते हैं। इस बार तो कुछ ज्यादा ही हैं। कभी शादियों में शगुन देने पहुंच जाते हैं, कभी सिलाई मशीनें बांटते हैं, तो कभी किसी बीमार के घर पहुंच जाते हैं। मैंने भी सोशल मीडिया में कई बार देखा है। हां चौधरी साहब समाजसेवियों का मेला सा लगा हुआ है इस चुनावी सीजन में। देखते हैं कितने समाजसेवी इस मेले में गुम होते हैं।
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