सोलन अस्पताल की अनदेखी पड़ेगी भारी
पांच वर्ष बीते, न तो डाक्टरों की संख्या बढ़ी-न ही मरीजों को मिली सुविधाएं
सोलन – क्षेत्रीय अस्पताल सोलन की अनदेखी इस मर्तबा होने वाले विधानसभा चुनावों में नेताओं को महंगी पड़ेगी। पांच वर्ष बीत गए, लेकिन न तो अस्पताल में डाक्टरों की संख्या बढ़ी और न ही अन्य सुविधाएं मरीजों को मिल पाईं। टेस्ट की भारी-भरकम फीस ने भी मरीजों को खूब लूटा है। थायराइड जैसे जरूरी टेस्ट अस्पताल में होते ही नहीं है। प्रदेश सरकार ने क्षेत्रीय अस्पताल को 80 बेड से बढ़ाकर 200 बेड कर दिया। सरकार ने बेड की संख्या तो बढ़ा दी, लेकिन डाक्टरों के पद बढ़ाना भूल गई। क्षेत्रीय अस्पताल में प्रतिदिन करीब दो हजार मरीज विभिन्न ओपीडी में उपचार के लिए आते हैं। हैरानी की बात है कि इन मरीजों का उपचार मात्र 21 डाक्टरों के सहारे हैं। यही डाक्टर रात्रि को भी अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं तथा वीआईपी ड्यूटी व कोर्ट एविडेंस पर भी इन्हीं डाक्टरों की ड्यूटी लगाई जाती है। आवश्यकता के अनुसार अस्पताल में 40 डाक्टरों का होना बेहद जरूरी है। सोलन की जनता पांच वर्षों से डाक्टरों की संख्या बढ़ाने की मांग करती रही है, लेकिन सरकार ने इस मांग की अनदेखा कर दिया है। अस्पताल के हालात ये हैं कि दो नेत्र रोग विशेषज्ञ होने के बावजूद आंखों के आपरेशन ही सुविधा ही नहीं है। यही हालत आर्थो विभाग का भी है। हड्डी रोग विशेषज्ञ तो हैं, लेकिन आर्थो ओटी खोलना स्वास्थ्य विभाग भूल गया है। ‘दिव्य हिमाचल’ द्वारा हक से कहो सरीज शुरू की गई है, जिसके माध्यम से जनता अपनी बात को स्वत्रंत रूप से रख सकती है।
अस्पताल में उपचार करवाना मुसीबत
सोलन की रहने वाली हेमलता का कहना है कि क्षेत्रीय अस्पताल में उपचार करवाना किसी मुसीबत से कम नहीं है। पहले पर्ची के लिए लाइन में खड़े होना पड़ता है और फिर ओपीडी के बाहर कई घंटे खडे़ होकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। कई घंटे लाइन में खड़े होने के बाद दवाइयां बाजार से ही खरीदनी पड़ रही हैं।
अस्पताल की हालत में सुधार नहीं
सपना का कहना है कि पांच वर्ष बीत गए, लेकिन अस्पताल की हालत में सुधार नहीं हो पाया। विभिन्न वार्डों में गंदगी इतनी अधिक है कि स्वस्थ व्यक्ति भी बीमारी की चपेट में आ सकता है। यहां तक की कई बार तो पीने का स्वच्छ पानी भी नहीं मिलता है। वाटर एटीएम तो लगा है, लेकिन वह काम ही नहीं करती है।
दवाइयां बाजार से खरीदनी पड़ती हैं
अंकित का कहना है कि क्षेत्रीय अस्पताल में उपचार करवाना अब सस्ता नहीं रहा है। अधिकतर दवाइयां बाजार से खरीदनी पड़ती हैं। यहां तक कि कई बार आपातकाल में भी दवाईयां नहीं मिल पाती हैं।
डाक्टरों की संख्या जल्दबढ़ानी चाहिए
रिखील शांडिल का कहना है कि बढ़ती मरीजों की संख्या को देखते हुए डाक्टरों की संख्या भी बढ़ानी जानी चाहिए। ओपीडी के बाहर मरीजों को कई घंटे खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। अस्पताल में कम से कम 40 डाक्टर होेने चाहिएं।
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