क्यों हैं जीवन में कष्ट

By: Oct 7th, 2017 12:07 am

क्यों हैं जीवन में कष्टलोग दो तरह के कष्टों को सहते हैं। आम तौर पर लोग सोचते हैं कि कष्ट या तो शारीरिक होते हैं या मानसिक। शारीरिक पीड़ा कई कारणों से हो सकती है, पर 90 प्रतिशत मानवीय कष्ट मानसिक होते हैं, जिसका कारण हमारे भीतर ही होता है। लोग हर रोज अपने लिए कष्ट पैदा करते हैं। वे गुस्सा, डर, नफरत, ईर्ष्या और असुरक्षा आदि से ग्रस्त हैं। यही दुनिया में अधिकतर लोगों के लिए पीड़ा का कारण है।

कष्ट की प्रक्रिया को समझना होगा

आखिर मानवता क्यों पीडि़त है? हमें इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए कष्ट की प्रक्रिया को देखना होगा। आज सुबह क्या आपने देखा कि सूरज अपनी पूरी आभा के साथ उदित हुआ, फूल खिले, कोई भी सितारा नहीं टूटा, सारे तारामंडल अपना काम सही तरह से कर रहे हैं? सब कुछ व्यवस्थित रूप में, अपने क्रमानुसार चल रहा है? यानी सारा ब्रह्मांड बहुत अच्छी तरह काम कर रहा है? पर कोई एक विचार दिमाग में आते ही आपको लगने लगता है कि आपका पूरा दिन बर्बाद हो गया।

विचार या भाव जीवन का अनुभव तय करने लगते हैं

कष्ट इसलिए हो रहा है क्योंकि अधिकतर लोग यह नजरिया ही खो बैठे हैं कि जीवन कहते किसे हैं? उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया, अस्तित्त्व संबंधी प्रक्रिया से कहीं बड़ी है। या अगर सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो आपने अपनी तुच्छ सृष्टि को उस ईश्वर की सृष्टि से भी महान मान लिया है। यही सारे कष्टों की बुनियादी जड़ है। हमने यहां जीवित रहने का अर्थ ही खो दिया है। आपके दिमाग में आया कोई विचार या कोई भाव आपके अनुभव को तय करने लगता है। सारी सृष्टि बहुत अच्छी तरह चल रही है, पर कोई एक भाव या विचार सब कुछ नष्ट कर सकता है। जबकि हो सकता है आपकी भावनाओं और विचारों का आपके जीवन की सीमित वास्तविकता से भी कोई लेना-देना न हो।

मन आपका है ही नहीं

जिसे आप ‘मेरा मन’ कहते हैं, दरअसल वह आपका है ही नहीं। आपका अपना कोई मन ही नहीं है। आप जिसे अपना मन कहते हैं, वह तो समाज का कूड़ेदान है। आपके मन में, कोई भी जो आपके पास से गुजरता है, कचरा डाल जाता है। आपके पास यह चुनने की सुविधा भी नहीं है कि आपको किसका कचरा लेना है और किसका लेने से मना करना है। अगर आप किसी व्यक्ति को पसंद नहीं करते तो आपको उस व्यक्ति से दूसरों की तुलना में कहीं अधिक कचरा मिलेगा।

अपने विचारों और भावों की अहमियत घटा दें

जब हम आध्यात्मिक प्रक्रिया की बात करते हैं, तो हम मनोवैज्ञानिक स्तर से अस्तित्त्वगत स्तर पर जाने की बात करते हैं। जीवन इस सृष्टि के बारे में है, जो कि यहां उपस्थित है। आपका ध्यान स्वाभाविक तौर पर उसी ओर जाता है, जिसे आप अहमियत देते हैं। इसका अस्तित्व से कोई लेना-देना नहीं है। कष्टों के निमार्ण की फैक्टरी आपके मन में है। अब समय आ गया है कि आप इस फैक्टरी को बंद कर दें।

-सद्गुरु जग्गी वासुदेव


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