चुनावी पलकों पर विजन

By: Oct 31st, 2017 12:05 am

विजन के लाग लपेट में हिमाचल की राजनीतिक भाषा को बदलने की एक तगड़ी कोशिश भाजपा ने की है और अगर यह प्रदेश का स्थायी सेतु बने तो मुकद्दर बदल सकता है। विजन के कई भाग व खाके हैं और जिनमें मोहन-सम्मोहन के साथ-साथ यथार्थ के प्रतिबिंब भी हैं। इसे हम सियासी समीक्षा में कुछ ताजगी भरने का प्रयास मान सकते हैं, जबकि केंद्रीय योगदान के अक्स में अभिभूत भाजपा का नया अवतार खोज सकते हैं। विजन के जिस आकार पर भाजपा अपनी संभावनाओं का तरकश देख रही है, वहां कांग्रेस को भी अपना चुनावी चित्रण सुधारने की गुंजाइश बढ़ जाती है। जाहिर है भाजपा ने कांग्रेस के विकास रोड मैप से आगे निकलने के लिए विजन चुना, तो सभी वर्गों की सहमति का बंदोबस्त हो रहा है। यानी चार धाम यात्रा का बुजुर्गों को मुफ्त इंतजाम करने की सौगंध खाकर भाजपा अपने धार्मिक आचरण का हिमाचल में विस्तार कर रही है। वरिष्ठ नागरिक सुविधा केंद्र या गोसेवा सदन के मार्फत जो संकल्प लिए गए हैं, उनसे सामाजिक उन्नयन की तस्वीर सामने आती है। हालांकि महिला सशक्तिकरण की व्याख्या में कोटखाई की टीस उभरती है, तो कानून-व्यवस्था की प्रतिज्ञा में हेल्पलाइन सामने आती है। भाजपा ने युवाओं के बहुआयामी पक्ष को छूने के प्रयास में छात्रावास, शैक्षणिक गुणवत्ता के साथ-साथ खेलों के प्रति संवेदना दिखाई है। खेल अकादमी व मिनी खेल स्टेडियम जैसे वादे हालांकि नए नहीं, फिर भी सैन्य सेवा प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना के साथ प्रथम परम वीर चक्र विजेता स्व. सोमनाथ शर्मा का नाम जोड़कर विजन की छलांग लगाई है। विजन के आकर्षण में स्थानांतरण नीति का उद्गार नया नहीं, फिर भी यह हिमाचल का राजनीतिक चमत्कार होगा कि कोई पार्टी अपनी सरकार के लिए लक्ष्मण रेखा खींच दे। वास्तव में यह एक अभिलषित कदम होगा, हालांकि अब तक की तमाम सरकारें सिर्फ सिफारिशों की जयमाला ही पहनती रही हैं। युवाओं को रूसा की अनुशासित डगर से बेदखल करने का पूरा इंतजाम है, तो यह छात्र आंदोलनों को भाजपा से जोड़ने की एक लोकप्रिय परिपाटी सरीखा फैसला है।

प्रदेश को निवेश की राह पर आगे बढ़ाने के लिए पीपीपी मोड का जयकारा और विदेशी योगदान के सहारे इच्छाशक्ति का परिचय देने की कोशिश भी हुई है। हिमाचल के खर्चीले स्वभाव से ओतप्रोत सरकारों के वित्तीय नियंत्रण पर विजन की सख्ती और राजनीतिक लचीलेपन की मजबूरी पर कैसे संतुलन बनेगा, यह वक्त ही बताएगा। कई नीतियों की तरफ इशारे को समझें, तो भाजपा परिवर्तन का शंखनाद करते हुए दिखाई दे रही है, लेकिन गांव-शहर के बंदर कैसे भाग जाएंगे, इस पर कोई खास आश्वासन नजर नहीं आता। भाजपा के कई उम्मीदवार नए जिलों के गठन पर मुखर हैं, लेकिन विजन की शर्तों में यह विषय अनुत्तरित है। जिस केंद्रीय विश्वविद्यालय का शिलान्यास प्रधानमंत्री नहीं कर पाए, उस पर विजन की आंखें बंद हैं। जिस जमीनी आधार पर कई तरह के संस्थान पैदा हो रहे हैं, उस भू-अधिग्रहण पर वन भूमि की अड़चन कैसे मिटाएंगे, स्पष्ट नहीं है। शहरी विकास में नीतिगत दिशा तय नहीं और न ही संभावित नगर निगमों या प्राधिकरणों का जिक्र हुआ। यह दीगर है कि वर्षों से क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षा व न्याय की जरूरत के हिसाब से फिर धर्मशाला में हाई कोर्ट बैंच का समर्थन हुआ, लेकिन प्रदेश की दूसरी राजधानी के औचित्य या संभावना के तर्क खामोश रहे हैं। चयनित स्कूलों में प्रतिस्पर्धी प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी का दूरगामी प्रभाव समझा गया, लेकिन असफल सरकारी स्कूलों की तालिका में दुरुस्ती का जिक्र नहीं हुआ। भाजपा का विजन प्रदेश की आत्मनिर्भरता को टटोलता हुआ पुनः प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंचा जरूर, लेकिन केंद्र से एक परिपूर्ण जल संसाधन नीति के अभाव में जब तक इसे कच्चे माल का दर्जा नहीं मिलता, काफी कुछ अनकहा सा है। हिमाचली बोलियों के संरक्षण से भाषा विज्ञान विभाग का सफर अगर शुरू होता है, तो निश्चित रूप से राज्य की एक भाषा की गरिमा पैदा हो सकती है। हिमाचल को पर्यटन प्रदेश बनाने का संकल्प हालांकि सामने नहीं आया, फिर भी देवभूमि दर्शन तथा मुख्य मार्गों पर पच्चीस किलोमीटर के दायरे में वे-साइड अमेनिटी सेंटर विकास योजना से पूरा परिदृश्य बदलेगा। दिल्ली हाट की तर्ज पर पर्यटन विकास को नई तहजीब मिलेगी, लेकिन सिने पर्यटन, रज्जु मार्गों, झीलों, मनोरंजन पार्कों तथा फिल्म सिटी जैसी परियोजनाओं पर सन्नाटा पसरा है। विजन दस्तावेज का चुनावी हस्तक्षेप एक सीमा तक प्रभावी होगा, जबकि इसे यथार्थ में बदलने के लिए भाजपा के तमाम उम्मीदवारों की छवि और इच्छाशक्ति को भी इसके अनुरूप होना पड़ेगा।


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