तीर्थयात्रा से कम नहीं है नग्गर

By: Oct 10th, 2017 12:05 am

पतलीकूहल – 25 सालों के दौरान रौरिक एस्टेट नग्गर आत्मिक, शैक्षिक व सांस्कृतिक चुंबक में बदल गया है और विश्व भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। जहां महर्षि और मानव जाति के प्रबोधक रहते और सृजन करते थे, ऐसे स्थान पूजा और तीर्थयात्रा के केंद्र बन जाते हैं। क्योंकि ऐसे स्थान उन महर्षियों के विचारों की शक्ति से भरे हैं। ये उद्गार सोमवार को रशियन एंबेसी के सीनियर काउंसलर सरगेई कारमिलितो ने ट्रस्ट में आयोजित सेमिनार में कहे। इस अवसर पर भारतीय क्यूरेटर रमेश चंद्रा ने सेमिनार में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत व अभिनंद किया, जिसमें बिमल मेहता, अध्यक्ष फोटोग्राफर व कलाकार मंच दिल्ली, ल्युडमिला मेमजेलेवा मास्को, तमरा मेरगेस नग्गर, वैसिली कारचेव इंजीनियर ऊरूस्वाति संस्थान, डा. एग्लेजेंडर पेरवरजेब रश्यिन असिस्टेंट क्यूरेटर, डा. नंदना आचारजी एजीओज एंड कलाकार, अंशुल कुमार संगीत अध्यापक, रोजिना नेटकिना कम्युनिकेशन सिस्टम इंजीनियर इत्यादि इस सेमिनार में मौजूद रहे। रमेश चंद्रा ने कहा कि इस दौरान रूस भारत मैत्री, कला व सहयोग पर विस्तृत चर्चा की गई। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट की गतिविधियों को  किस तरह से आगे लाया जाए, इस पर सभी ने अपने-अपने विचार रखे। इस सेमिनार में  सरगेई कारमिलितो ने कहा कि रौरिक परिवार की रचनात्मक और आध्यात्मिक विरासत को सुरक्षित रखने और बढ़ाने के लिए हमें एकजुट होकर कार्य करना होगा।  सरगेई कारमिलितो ने कहा कि भारत और रूस के बीच परस्पर एकजुटता ही रौरिक के लिए सबसे बड़ा उपहार है। उन्होंने कहा कि 1942 में पंडित जवाहर लाल नेहरू व इंदिरा गांधी नग्गर आए थे। उन्होंने भी दोनों देशों की दोस्ती के लिए आशीर्वाद  दिया। सेमीनार के अंतिम सत्र में भारतीय क्यूरेटर रमेश चंद्रा ने इस सेमिनार पर विस्तृत रूप से ट्र्रस्ट पर किए गए मंथन के लिए सभी के सहयोग की प्रशंसा की। उन्होंने भारत-रूस की कला, मैत्री  व सहयोग के प्रतीक इस निकोलस रौरिक की कर्म स्थली की धरोहर को संजोए रखने के लिए कुल्लू प्रशासन व हिमाचल सरकार का आभार जताया।


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