पांवटा में नहीं लगा पाया कोई नेता हैट्रिक

By: Oct 13th, 2017 12:05 am

 पांवटा साहिब     —  जिला सिरमौर की पांवटा दून विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास खंगाले तो यहां पर किसी भी पार्टी का नेता जीत की हैट्रिक नहीं लगा पाया। तीन नेता ऐसे हैं जिन्होने लगातार दो बार जीत दर्ज की लेकिन तीसरी बार जनता ने उन्हे नकार दिया। इनमे सर्वप्रथम 1982 और 1985 मे हिमाचल निर्माता डा. वाईएस परमार के पुत्र कुश परमार ने जीत दर्ज की।  उसके बाद 1993 और 1997 मे स्व. सरदार रतन सिंह ने दो बार पांवटा का प्रतिनिधित्व किया। तीसरे विधायक भाजपा के सुखराम चौधरी रहे जिन्होंने 2002 और 2007 मे लगातार जीत दर्ज की। पांवटा के इतिहास पर नजर डाले तो यहां पर ज्यादातर कांग्रेस का रात रहा। 1967 मे कांग्रेस के तपेंद्र सिंह विधायक बने। उसके बाद 1972 मे कांग्रेस के ही हितेंद्र सिंह को पांवटा की जनता ने प्रतिनिधित्व दिया। 1977 की आंधी मे पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार मिल्ख राज विधायक बने। उसके बाद कांग्रेस ने डा. परमार के पुत्र कुश परमार पर दाव खेला। और वह दो बार लगातार विधायक बने। 1990 मे जनता ने उन्हें भी नकार दिया और पहली बार भाजपा के प्रत्याशी फतेह सिंह मेहरालू ने जीत दर्ज कर भाजपा का पांवटा मे भाजपा का खाता खोला। उसके बाद सिख समुदाय से संबंध रखने वाले पांवटा के कद्दावर व जन हितैषी नेता स्व. सरदार रतन सिंह ने 1993 और 1997 का विधानसभा चुनाव जीता। 2002 मे भाजपा ने फिर वापसी की और बाहती समुदाय से ताल्लुख रखने वाले सुखराम चौधरी ने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की। उसके बाद 2007 मे वह फिर से जीते और प्रदेश की भाजपा सरकार मे सीपीएस बने। बीते 2012 के विधानसभा चुनाव मे पांवटा की जनता ने भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को नकारकर निर्दलीय उम्मीदवार किरनेश जंग को जीत दिलवाई। बहरहाल पांवटा साहिब मे कोई भी पार्टी जहां जीत की हैट्रिक नहीं लगा पाई है वहीं 1993 के बाद यह इतिहास भी रहा है कि एक विधायक लगातार दो बार चुनाव जीतकर विधानसभा मे गया है।


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