प्रदेश के असल मुद्दों से भटकी राजनीति

By: Oct 28th, 2017 12:02 am

विजय शर्मा

लेखक, हिम्मर, हमीरपुर से हैं

राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप लगाने में भी पीछे नहीं हैं, लेकिन प्रदेश की जनता की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है।  प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि काम-धंधों और उद्योगों को किस प्रकार की रियायत दी जाएगी तथा बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद पर कैसे लगाम लगेगी…

हिमाचल प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियां-भाजपा और कांग्रेस चुनावी समर में कूद चुकी हैं। दोनों ही पार्टियों के घोषणा पत्र आने अभी बाकी हैं, लेकिन चुनावी महासमर में असली मुद्दे गौण होते दिखाई दे रहे हैं, जबकि व्यक्तिगत टीका-टिप्पणियां और परिवारवाद हावी हो रहे हैं। कांग्रेस अपने पुराने महारथी वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में मिशन रिपीट के तहत फतह का दावा कर रही है, तो भाजपा में इस बात की चर्चा हो रही है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी प्रेम कुमार धूमल संभालेंगे या जेपी नड्डा को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया जाएगा। विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कर्ज में आकंठ डूबी सरकार, खस्ताहाल सड़कें, अपराध एवं ड्रग माफिया की बढ़ती जकड़, सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा, उद्योग नीति, सरकारी भूमि के अवैध कब्जों के नियमितीकरण सहित कई स्थानीय मुद्दे हैं, जिन पर प्रदेश की जनता पार्टियों से समाधान चाहती है। राज्य में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार अहम मुद्दे हैं, लेकिन भाजपा इसे मुद्दा नहीं बनी पा रही है। कांग्रेस विकास का ढिंढोरा पीट रही है और मुख्यमंत्री का रूप में वीरभद्र सिंह की हैसियत के दम पर मैदान में है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस चुप है और वीरभद्र सिंह कई मौकों पर कह चुके हैं कि उन पर जितने भी मुकदमे चल रहे हैं, वे राजनीतिक बदले की भावना से दर्ज किए गए हैं। प्रदेश की जनता के लिए महंगाई भी एक बड़ा मुद्दा है और इसके लिए लोग केंद्र की नीतियों को दोषी मानते हैं।

हर बार चुनावों से पहले दोनों ही बड़ी पार्टियां बेरोजगारी दूर करने और युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के वादे करती हैं, लेकिन सत्ता मिलने का बाद किसी भी सरकार ने प्राथमिकता के आधार पर बेरोजगारी की बढ़ती समस्या के समाधान के लिए ठोस प्रयास नहीं किए। यही कारण है कि एक छोटे से प्रदेश के नौ लाख से ज्यादा युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा पिछले पांच साल से वीरभद्र सिंह को घेरती आई है। पिछले विधानसभा चुनावों से पूर्व भी वीरभद्र सिंह पर इस्पात कंपनी की डायरी के खुलासों के आधार पर मुश्किलें बढ़ गई थीं, लेकिन जनता ने उन आरोपों को नकार कर सत्ता उन्हें सौंप दी थी। इस बार स्थिति उल्टी है। तब वीरभद्र सिंह विपक्ष में थे और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन इस बार उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों और सत्ता विरोधी लहर से टकराना होगा। भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति के मामले वह दिल्ली जाकर लड़ ही रहे हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने उनकी कुछ संपत्ति भी जब्त कर ली है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के पास उनके अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसलिए चुनाव की डोर पूरी तरह उनके हवाले कर दी है और चुनाव के वीरभद्र सिंह पर केंद्रित बना दिया है। हिमाचल भाजपा केंद्र की एनडीए सरकार द्वारा प्रदेश को उपलब्ध कराई गई केंद्रीय सहायता, रेलवे लाइनों के विस्तार तथा प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार, बढ़ती बेरोजगारी, सरकारी फिजूलखर्ची और माफिया राज को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रही है।

प्रदेश से बेरोजगारी की समाप्ति का उनके पास क्या उपाय है, बढ़ते अपराध और ड्रग्स तथा महंगाई रोकने का उसका क्या रोडमैप है, इस पर पार्टी और नेता चुप हैं। सभी बड़े नेता पार्टी के विजन डाक्यूमेंट का इंतजार कर रहे हैं, जिसे विशेषज्ञों की समिति बनाएगी और जनता को परोस देगी। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार वीरभद्र सिंह विकास का दावा करते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और प्रदेश पर बढ़ते कर्ज पर चुप्पी साध लेते हैं, तो विपक्ष के नेता प्रेम कुमार धूमल भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और कर्ज में डूबी सरकार के लिए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को दोषी मानते हुए प्रहार करते हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस सरकार ने विकास के नाम पर स्कूल और कालेज तो खोल दिए, लेकिन प्राइमरी और मिडल स्कूलों पर ताले लटका दिए हैं।  राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप लगाने में भी पीछे नहीं हैं। राजनीति भले इस गंदे खेल को खेलती रहे, लेकिन प्रदेश की जनता की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। जनता जानना चाहती है कि राजनीतिक पार्टियां उनके मुद्दों का समाधान किस प्रकार कर सकती हैं। प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि काम-धंधों और उद्योगों को किस प्रकार की रियायत दी जाएगी तथा बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद पर कैसे लगाम लगेगी या फिर पार्टियां और नेता जिस ढर्रे पर चल रहे हैं, उसी पर चलते रहेंगे? प्रदेश की जनता को सरकारी आंकड़ों से कोई सरोकार नहीं है, जिसमें यह दावा किया जाता है कि प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय इतनी बढ़ गई। प्रदेश की जनता और अभिभावकों की आज सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या उनके पढ़े-लिखे बच्चों को रोजगार मिलेगा या नहीं? सरकारी स्कूलों, कालेजों में स्तरीय शिक्षा  मिल पाएगी या नहीं, लोगों को अपने आसपास के अस्पतालों में उचित चिकित्सा सेवा मिल पाएगी या नहीं? इसके विपरीत आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में उलझा कर वोट हासिल करना ही राजनीतिक दलों का एकमात्र लक्ष्य नजर आ रहा है। दोनों प्रमुख दलों को चाहिए कि वे फिजूल में ऊर्जा खपाने के बजाय प्रदेश के असल मुद्दों पर गंभीरता दिखाएं।


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