फटे बादलों का सन्नाटा

By: Oct 25th, 2017 12:02 am

राजनीति का रूठा दिल भी संदेश व सबक दे सकता है और यही तकाजा है कि नामांकन की रसीद पर हाजिर है बदले का पैगाम। सलाखों में संदेश की दरगाह अगर देखनी है तो सोशल मीडिया के पैरोकारों के बीच अपने दिमाग के लिए जगह ढूंढें, वरना हादसों की राजनीति में शहादत के कई उदाहरण मिल जाएंगे। इस बार भी राजनीतिक बलिदान के खून से लथपथ जमीन पर चुनाव बोया जा रहा है, तो पार्टियों के इतिहास में अनुशासन व लोकतांत्रिक आचरण की पैदावार पर संदेह है। संदेह के गर्भ में कई विधानसभा क्षेत्र और विवादों के बीच विषयों का संकट। गौर करें कि जिस युवा को सरकार के आईटी सैल के मार्फत हर खबर थी, वही गोकुल बुटेल दर्द के दामन में अपने अनुभव की बैसाखियां समेट चुका है। यह बादलों के बीच का सन्नाटा है या सोशल मीडिया के मार्फत अद्भुत विलाप कि हर आंख के आंसू फूल बनने को मशक्कत कर रहे हैं। पालमपुर विधानसभा क्षेत्र से हिमांशु मिश्रा ने अपने फलक को निचोड़कर जो पाया, उसे शाबाशी दें या जिस तिलक को लगाकर प्रवीण शर्मा विद्रोही हो गए, उसे आत्मसम्मान कहें। मंडी से भाजपा के दूसरे प्रवीण शर्मा के जिगर का फौलादी अंदाज भी खूब कि हर बार पार्टी सूची में यह शख्स अपनी कुर्बानी पर सलामत रहता है। भाजपा के प्रयोग की कार्यशाला में रूठे दिलों पर सियासी अनुसंधान का जिक्र होगा, लेकिन कांगे्रसी काठ की हांडी का कमाल कि बार-बार चढ़ गई। कालिख के बिना तपती सियासत का एक नूर, चुनावी धूल फांक कर भी आत्मविश्वास से लबरेज, तो दूसरी ओर जिनके टिकट कटे वे आत्मग्लानि की पलकों के नीचे दबे। बेशक भाजपा ने हिमाचल को जो चुनावी पोशाक पहनाई, उसका घूंघट हटाना भूल गई और अब जबकि वांछित परिणाम का चेहरा संदिग्ध होने लगा, तो चारों ओर दर्पण में झांकने का कारण नजर आया। इस दर्पण के भीतर सत्याग्रह होगा, तो उस छवि का क्या कसूर जो पूरी भाजपा को नायक बना रही थी। दरअसल भाजपा के नायकत्व में हिमाचल का चुनाव अपना बुनियादी चरित्र काफी पहले से खोज रहा था और इसी के चलते पार्टी ने सरकार को कांटों पर चलना सिखा दिया। जाहिर तौर पर भाजपा का अब तक का अभियान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को खलनायक बनाने का प्रचार अर्जित कर चुका है, लेकिन पार्टी के टूटे दिल को अपनी सीमा के भीतर भी नायक दिखाई नहीं दे रहा। जो अंगुली पकड़ कर चले, वो हिमांशु मिश्रा पुराने चुनावी पोस्टरों की लेट्टी से सराबोर हो सकते हैं, लेकिन जहां टकराव है, वहां टूटने को दर्पण खड़ा है। मुश्किलें कांगे्रस के भीतर और भी गहरी हैं, क्योंकि यहां विरोध व विरोधी घोषित हैं। यहां टिकट आबंटन का मतलब ही विरोध की लपटों के साथ चलना रहा है। असमंजस के बाजार में खड़ा चुनाव खरीदे तो मुश्किल और बिके तो कठिनाई। बेशक भाजपा ने रूठों के सिर पर छतरी टांग दी, लेकिन यह मौसम विद्रोह की बारिश का है तो हर छींटा भी रंग में भंग डालने की कूव्वत रखता है। चुनाव के हर कोण में बारूद सी गंध है तो जहां छत टूटेगी, वहां कुनबा हारेगा। आक्रोश के लाल संगम पर बिखरे दावे झूल रहे हैं, तो जनता की अपेक्षाएं भी जातिगत, समुदाय और धर्म की परिभाषा में अपनत्व की डोर से बंध रही हैं। इसलिए हिमाचल के चुनावी गुस्से ने कुछ समुदायों के बीच खुद को खोजा है, तो इन संकेतों को पढ़े बिना परिणाम की परिणति असंभव है। विरोध का पक्ष या विपक्ष नहीं होता, इसलिए कहां ज्यादा चोट लगेगी, इसका हिसाब न भाजपा को मालूम, न कांगे्रस को पता।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App