सुनी सुनाई
क्या पता हज्जाम की हवाइयां उड़ीं या वह खुशी के कारण जोश में आ गया। मैं बाल कटवाने बैठा तो हज्जाम की कैंची मेरे बैठते ही सिर पर कचाकच सरपट दौड़ने लगी। इसी बीच उसने पूछ लिया, बाबू जी इस बार टिकटों का क्या हाल है। मैंने कहा, भाई तेरे विधानसभा क्षेत्र से तो जनानी को टिकट मिल रही है। उसने कहा, अच्छा… हूं। हूं करते ही उसने कैंची पटकी शैल्फ पर और मेरी खोपड़ी जकड़ ली। अब भी मैं कन्फ्यूज हूं कि उसकी हवाइयां उड़ी या खुशी का जोश भर गया, पर जीवन में पहली बार मेरा ऐसा ‘हैंड मसाज’ हुआ कि पूछें मत। वह मुझे पूछता रहा जनानी कौन है, कहां से है, कब से है। यानी मैंने उसके हर प्रश्न का उत्तर बड़ी सहजता से दिया और मालिश होती रही। कटिंग तो शायद हजाम भूल ही गया, आखिर बताना पड़ा कि जनाब मुझे दफ्तर जाना है और कटिंग निपटा दो। खैर इस वार्तालाप में एक चीज तो पता चल ही गई कि हजाम के अड्डे से बेहतर कोई जगह नहीं, जहां हररोज टिकट कटने और बंटते हैं। चुनावी मौसम में महिलाओं पर मेहरबान दिख रही पार्टियां अगर सही मायने में उनकी हितैषी हैं, तो बेशक टिकट बांटने चाहिएं, मगर ध्यान रहे उन्हें जिताकर भी सबकी जिम्मेदारी हो। खैर यह मेरा सुझाव है, बाकी सब हजाम जाने।
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