सेक्स के लिए सहमति का सबूत नहीं है चुप्पी
नई दिल्ली — दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक गर्भवती महिला का बलात्कार करने के लिए एक व्यक्ति को मिली दस साल जेल की सजा बरकरार रखते हुए कहा कि पीडि़ता की चुप्पी को यौन संबंध बनाने के लिए सहमति देने के सबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल ने बलात्कार के दोषी व्यक्ति के बचाव पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया कि घटना के बारे में पीडि़ता की चुप्पी यौन संबंध बनाने के लिए उसकी सहमति का सबूत है। उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी के बचाव की इस दलील का कोई आधार नहीं है कि पीडि़ता ने उसके साथ यौन संबंध बनाने की सहमति दी थी, जो कि घटना के बारे में उसकी चुप्पी से साबित होता है। चुप्पी को यौन संबंध बनाने की सहमति के सबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता और पीडि़ता ने भी कहा था कि उसे आरोपी ने धमकी दी थी। अदालत ने कहा कि इसलिए सहमति के बिना यौन संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा। इसी के साथ उच्च न्यायालय ने एक आरोपी को दोषी करार देने और 10 साल जेल की सजा सुनाने के निचली अदालत के वर्ष 2015 के फैसले को बरकरार रखा।
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