हिंदुत्व पर 2019 के चुनाव !

By: Oct 25th, 2017 12:02 am

चित्रकूट का भी भगवान राम से संबंध है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वहां भी उसी तरह आरती की, जिस तरह अयोध्या में सरयू नदी के तट पर की थी। वह दीपावली का पर्व था। भगवान राम का मुद्दा दोनों जगह साझा था। मुख्यमंत्री योगी ने राम और विकास को साथ-साथ माना है। यह भी कहा है कि पांच दिसंबर से सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के विवादास्पद ढांचे की सुनवाई रोजाना के आधार पर करना तय किया है, लिहाजा सभी को अदालत के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि यदि दोनों पक्ष राजी होते हैं, तो प्रदेश सरकार अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में पूरी मदद करेगी। दरअसल योगी आदित्यनाथ के सामने विकास के दो मॉडल हैं। एक तो कल्याण सिंह वाला मॉडल। यदि योगी उसे अपनाते हैं, तो अंततः उनकी राजनीति नाकाम हो सकती है। दूसरा मॉडल गोरखनाथ मठ का है, जहां ‘सबका साथ, सबका विकास’ सही मायनों में चरितार्थ होता है। मठ में हिंदुओं के साथ मुसलमान भी हैं और वे भी गौमाता की सेवा करते रहे हैं। बहरहाल योगी आदित्यनाथ के अलावा प्रधानमंत्री मोदी हाल ही में केदारनाथ का तीर्थ करके लौटे हैं। बाबा भोलेनाथ के मंदिर में प्रधानमंत्री ने रुद्राभिषेक किया और करीब 25 मिनट तक पूजा भी की। प्रधानमंत्री मोदी ने केदारनाथ में भी यह जुमला दोहराया-‘मुझे बाबा ने बुलाया है। बाबा जानते हैं कि उनका बेटा ही केदारनाथ में पुनर्निर्माण का कार्य करा सकता है।’ प्रधानमंत्री ने वहां 700 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का ऐलान और शिलान्यास भी किए। प्रधानमंत्री अपने चुनाव क्षेत्र बनारस में भी जाते हैं, तो काशी विश्वनाथ, संकट मोचन आदि मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ जरूर करते हैं। बहरहाल तीसरा उदाहरण कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का है। वह अभी तक तिरुपति, जगन्नाथ, शिरडी, सोमनाथ और उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिरों में दर्शन और पूजा-अर्चना कर चुके हैं। राहुल ने गुजरात में द्वारकाधीश, 200 साल पुराने भाथी जी महाराज, चामुंडा देवी आदि के मंदिरों में जाकर दर्शन किए हैं। उत्तर प्रदेश चुनावों के दौरान किसान यात्रा की शुरुआत मंदिर में पूजा-पाठ से की थी और उसके दौरान 14 मंदिरों में गए। राहुल गांधी अपने अभी तक के जीवन में इतने मंदिरों, दरगाहों और गिरजाघरों में नहीं गए होंगे, जितना 2016 और 2017 में गए। बहरहाल सवाल किसी की धार्मिक आस्थाओं पर नहीं है। सवाल यह है कि हमारे राष्ट्रीय नेता धर्मस्थलों की इतनी परिक्रमा कर रहे हैं कि लगता है मानो 2019 के चुनाव हिंदुत्व के मुद्दे पर ही होंगे! प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी तो बुनियादी और सोच के स्तर पर ‘हिंदूवादी’ हैं। वे अपने निजी और नियमित जीवन में भी हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते रहे हैं, लिहाजा मंदिरों में जाना और बार-बार पूजा-पाठ करना अटपटा नहीं लगता, लेकिन राहुल गांधी को हिंदुत्व का नाटक करना पड़ रहा है। उन्हें न तो हिंदू देवी-देवताओं की आरतियां आती हैं, पूजा के मंत्र तो बहुत दूर की बात है। उन्हें ढपली बजानी पड़ती है या पांव थिरकाने पड़ते हैं, तो यह धार्मिक के बजाय सियासी मजबूरी ज्यादा है। दरअसल बीते काफी वक्त से कांग्रेस को हिंदू वोट बैंक की चिंता रही है। 2014 आम चुनाव के बाद एंथनी कमेटी ने अपनी रपट में कहा था कि पार्टी को मुस्लिमों के करीब ही दिखना नहीं चाहिए। उससे हिंदू विरोधी होने के संकेत जाते हैं और सांप्रदायिक संगठनों को चुनावी फायदा मिलता है। लेकिन सच यह भी है कि जवाहर लाल नेहरू की यह पार्टी धर्मनिरपेक्ष कहलाती रही है। उसने जब भी हिंदुत्व की ओर बढ़ने की कोशिश की है, तभी उसे नुकसान हुआ है। प्रधानमंत्री रहते राजीव गांधी ने राम मंदिर का ताला खुलवाया, शिलान्यास कराया, नतीजतन कांग्रेस हार गई और भाजपा ताकतवर होकर उभरी। उससे पहले इंदिरा-संजय गांधी ने अपने दौर में सरसंघचालक से मुलाकातें कीं, जनता ने उन समीकरणों को स्वीकार नहीं किया। विवादास्पद ढांचे के विध्वंस में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव की भी अदृश्य भूमिका थी, लिहाजा कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। अब क्या जरूरी है कि गुजरात में भाजपा से हिंदुत्व छीनने की कोशिश और मंशा में राहुल गांधी और कांग्रेस कामयाब हो पाएंगे? राहुल गांधी की कभी दलील होती थी कि मंदिरों में तो लड़कियों को छेड़ने जाते हैं। सोनिया गांधी की परोक्ष सत्ता के दौरान यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि राम का कोई अस्तित्व ही नहीं है। वह महज प्रतीक भर हैं। लेकिन हमारी आपत्ति उन आयोजनों और दिखावों को लेकर है, जो इन मंदिर-गमन के दौरान आयोजित किए जाते हैं। अनेक जनोपयोगी काम अधूरे पड़े हैं। आज हम वे आंकड़े नहीं दोहराते कि भूख से कितने लोग मर रहे हैं, कितने जानलेवा बीमारियों से ग्रस्त हैं, कुपोषण का स्तर क्या है, जीवन कितना सुखद है। लेकिन 2019 के चुनाव हिंदुत्व पर लड़े गए, तो वह भारत के लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्य होगा।


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