गरीबी से मुक्ति के दावे

By: Nov 15th, 2017 12:05 am

(स्वास्तिक ठाकुर, पांगी, चंबा)

हाल ही में नीति आयोग ने 2022 तक भारत के गरीबी मुक्त होने का दावा किया है। यह अनुमान सच होगा या नहीं यह तो भविष्य ही तय करेगा, लेकिन इस अवसर पर गरीबी मिटाने के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयासों की पोल तो खोली ही जानी चाहिए। सबसे पहले तो भारत जैसे देश के लिए गरीबी कोई नई समस्या नहीं है। यूं कहें तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हमें आजादी के साथ गरीबी तोहफे में मिली। आजादी के बाद से भारत में पंचायत से लेकर प्रधानमंत्री तक का चुनाव गरीबी के मुद्दे पर लड़ा और जीता गया। जनता हर बार इस आशा के साथ सियासी दलों को वोट देती रही कि कोई न कोई प्रतिनिधि उनकी गरीबी मिटाएगा। लेकिन हर बार जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ ही हुआ। न जाने कितनी ही सरकारें आईं और गईं, लेकिन गरीबी टस से मस नहीं हो पाई। यहां तक गरीबी मिटाओ के अहम मुद्दे के साथ इंदिरा गांधी ने चुनाव लड़ा और वह जीतीं भी, लेकिन उनके शासनकाल में भी गरीब ही भूख से बिलखकर दम तोड़ते रहे। यह हमारे देश की विडंबना है कि जो भारत एक समय में सोने की चिडि़या कहलाता था, आज उसका हाल खस्ता है। अब तो लगता है कि सियासी पार्टियों के लिए गरीब व गरीबी केवल और केवल मनोरंजन करने का झुनझुना भर बनकर रह गए हैं। गरीबी जब तक भारत में रहेगी, तब तक भारत का विकासशील से विकसित बनने का सपना पूरा नहीं हो सकता है। भारत में आजादी के बाद से साल-दर-साल हमारे देश की जनसंख्या में इजाफा होता रहा है। जिस सीमित जनसंख्या को ध्यान में रखकर विकास योजनाएं बनाई गईं, हर बार जनसंख्या वृद्धि ने बाधा उत्पन्न की। देश की आबादी यूं ही बढ़ती रहेगी, तो गरीबी से मुक्ति के सारे दावे धराशायी होते रहेंगे। अतः गरीबी मिटाने के लिए पहले जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण जरूरी है।


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