जर्रा-जर्रा होती, जार-जार रोती राजनीति

By: Nov 4th, 2017 12:02 am

सुरेश कुमार

लेखक, योल, कांगड़ा से हैं

आज प्रत्याशी नामांकन भरते हैं, तो संपत्ति का हिसाब लगाना ही मुश्किल हो जाता है और कई बार प्रत्याशी झूठा शपथपत्र ही दे देते हैं और दशकों पहले की राजनीति में संपत्ति होती ही नहीं थी, तो शपथपत्र की जरूरत भी नहीं थी। हिमाचल निर्माता वाईएस परमार ने जीरो बैलेंस पर चुनाव लड़ा था...

क्या खूब कहा है, ‘ तब प्रेम और विश्वास पक्के थे, जब लोग सच्चे और मकान कच्चे थे’। यह कहावत राजनीति पर भी सटीक बैठती है। जब राजनीति में पैसा नहीं था, तो राजनीति कितनी साफ-सुथरी थी। कोई स्वार्थ नहीं, कोई भ्रष्टाचार नहीं और कोई दबाव नहीं। आज तो राजनीति है ही पैसे की। जिसके पास पैसा नहीं, वह राजनीति में आ ही नहीं सकता। हिमाचल की ही बात करें, तो जितने भी प्रत्याशियों ने नामांकन भरा है, इनमें एक भी ऐसा नहीं है, जो करोड़पति न हो। कांग्रेस पार्टी ने तो टिकट लेने के लिए फीस ही 25 हजार निर्धारित कर दी थी। यानी सब पैसे का खेल है। पहले राजनीति कितनी पाक-साफ हुआ करती थी। पहले किसी क्षेत्र विशेष से कोई इक्का- दुक्का नेता ही हुआ करते थे। आज तो हिमाचल का जर्रा-जर्रा राजनीति से सराबोर है। हिमाचल का मौजूदा माहौल ही देख लीजिए कि कैसे 68 विधानसभा क्षेत्रों से 350 लोग चुनाव में उतर आए। अभी इनके अलावा 147 बागियों को अपना नाम वापस लेने के लिए मना लिया गया। यानी अब सब जान चुके हैं कि पैसा कमाने का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका राजनीति के अलावा हो ही नहीं सकता। सफेद कुर्ता-पायजामा पहनकर कुछ भी काला कारनामा करते रहो, कुछ नहीं होता। अगर फंस भी गए तो क्या होगा, देश में दशकों तक एक ही मुकदमा चलता रहता है।

तारीख पर तारीख सुनते-सुनते उम्र निकल जाती है, कई जज बदल जाते हैं। बात हिमाचल की करें तो आज भी 19 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। ठीक से याद नहीं कि राजनीति कब शुरू हुई और कैसे शुरू हुई, पर इतना जरूर है कि हिमाचल के कुल्लू का मलाणा गांव विश्व के सबसे प्राचीनतम लोकतंत्र के लिए जाना जाता है। यानी इस गांव में राजनीति का बीज पड़ा होगा कि एक सरकार होगी और लोग अपने जनप्रतिनिधि चुनकर सरकार में भेजेंगे और वे जनप्रतिनिधि लोगों की बात सरकार तक पहुंचाएंगे। यानी हिमाचल के कुल्लू का मलाणा विश्व का पहला ऐसा क्षेत्र है, जहां से लोकतंत्र की लौ जगी और राजनीति का आगाज हुआ होगा। पर आज राजनीति का रूप बदल गया है, राग बदल गया है। आज नेता जनता की बात सदन में नहीं पहुंचाते सिर्फ वाकआउट करते हैं और सदन तभी चलता है, जब विधायकों ने अपने वेतन-भत्ते बढ़ाने होते हैं। बिना वेतन आयोग के ही सात सेकंड में टेबल थपथपाकर कई गुना वेतन बढ़ जाता है और मजदूर की दिहाड़ी में 10 रुपए बढ़ोतरी करने के बाद भाषणों में खुद की पीठ कई महीनों तक थपथपाते हैं ये नेता। कुछ दशकों पहले की राजनीति पर नजर डालें, तो लगता था कि राजनीति है और वह जनता के लिए है। आज प्रत्याशी नामांकन भरते हैं, तो संपत्ति का हिसाब लगाना ही मुश्किल हो जाता है और कई बार प्रत्याशी झूठा शपथपत्र ही दे देते हैं और दशकों पहले राजनीति में संपत्ति होती ही नहीं थी, तो शपथपत्र की जरूरत भी नहीं थी। हिमाचल निर्माता वाईएस परमार ने जीरो बैलेंस पर चुनाव लड़ा था।

एक दो बार समाचार पत्रों में ही देखा और पढ़ा कि एक पूर्व विधायक का बेटा अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए जूते गांठने का काम कर रहा है। जरा वर्तमान विधायकों के संदर्भ में गौर करें, तो वे इतनी संपत्ति के मालिक हैं कि उनकी सात पीढि़यां बैठकर खा सकती हैं। चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के खर्च की सीमा 28 लाख रखी है और हकीकत यह है कि 28 लाख तो टिकट मिलने तक ही खर्च हो गए होंगे। चुनावों की घोषणा होते ही पैसा पानी की तरह बहने लगा। प्रचार के लिए गाडि़यां, बैनर-पोस्टर, वर्करी करने वाली भीड़  मुफ्त में साथ नहीं चल रही है। पूरे दिन के थके-हारे वर्करों के लिए रात को पार्टी का इंतजाम भी तो होता है। यह जमीनी हकीकत है। चाहे चुनाव आयोग कितने ही पहरे लगा दे, पैसा तो बहेगा ही। क्या यह सब 28 लाख में हो जाएगा? चुनाव को पैसे की चाशनी के बिना नहीं लड़ा जा सकता। इस बार तो टिकटों की मारामारी ने कइयों को बागी बना दिया। पहले राजनीति में पार्टी सबसे ऊपर होती थी, पर अब अपने हित नहीं सधे तो पार्टी छोड़ दो या आजाद ही चुनाव के लिए तैयार हो जाओ। नेता अब एक्टिंग भी करने लगे हैं। कुछ हासिल न हो, तो भावुक हो जाओ। लोग सहानुभूति दिखाते हुए जुड़ते ेचले  जाएंगे।

वैसे राजनीति को रोते हुए पहले भी देखा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शपथ लेते हुए रोए, संसद में प्रवेश करते सीढि़यों पर माथा टेकते रोए। हम उसे सच मान बैठे और पता तो तब चला जब प्रधानमंत्री ने 15 लाख का कोट सिलवा लिया। हिमाचल में भी इस बार आंसुओं की राजनीति चली। आंसुओं ने आलाकमान को पिघला दिया और राजनीति चल निकली। आज राजनीति आरोप-प्रत्यारोप ही तो है। भाजपा कांग्रेस पर ऐसे आरोप लगा रही है, जैसे वह पहले हिमाचल की सत्ता पर काबिज नहीं रही और कांग्रेस ऐसे आरोप लगा रही है जैसे सारा विकास भाजपा ने ही रोक रखा है। भाजपा की सरकार बने या कांग्रेस की, विकास बैसाखियों पर ही चलेगा। समय और सांसों ने साथ दिया तो 2022 में चुनावों के दौरान फिर याद दिलाऊंगा कि देखो सब विजन धरे के धरे रह गए और प्रदेश पर कर्ज 35 हजार करोड़ से 50 हजार करोड़ हो गया। यह भविष्यवाणी नहीं अब तक के राजनीति के अनुभव हैं, क्यों कि आज राजनीति प्रदेश को बनाने के लिए नहीं, बल्कि खुद को बनाने की कवायद है। अब तक प्रदेश ने यही देखा है, यही सहा है।

ई-मेल : sureshakrosh@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App