बिलासपुर सदर में पहले आजाद अब कांग्रेस-भाजपा कर रहीं राज
बिलासपुर – वर्ष 1948 से लेकर 1954 तक केंद्र शासित राज्य (सी-स्टेट) के रूप में अलग पहचान कायम करने वाले बिलासपुर का राजनीतिक इतिहास गजब रहा है। राजाओं के समय से ही बिलासपुर राजनीति का केंद्र बिंदू रहा और आजाद प्रत्याशी के तौर पर राजा आनंद चंद ने रिकार्ड जीत दर्ज कर इतिहास रचा था। सदर बिलासपुर से तीन बार के विधायक और दो मर्तबा मंत्री रहे जगत प्रकाश नड्डा आज केंद्र में नेता हैं। ऐसे में उनके लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है। जानकारी के अनुसार वर्ष 1954 के बाद बिलासपुर हिमाचल प्रदेश में शामिल हुआ और प्रदेश का पांचवां जिला बना। पहली बार 1955 में विधानसभा का चुनाव आयोजित किया गया। उस समय पांच सीटें होती थीं, जिनमें घुमारवीं, अजमेरपुर, कोटकहलूर, गेहड़वीं व बिलासपुर सदर। उस दौरान चुनाव में राजा समर्थक सभी पांचों उम्मीदवार विजयी हुए थे। इसके बाद 1957 के चुनाव में सदर से आजाद प्रत्याशी के तौर पर संतराम संत, गेहड़वीं से संतूराम, गेहड़वीं-दो हरगोबिंद सिंह, घुमारवीं से नरोत्तम दत्त शास्त्री व अजमेरपुर सरदारू राम जीत गए थे। उसके बाद 1962 के चुनाव में सदर से स्वतंत्र पार्टी से पंडित दीनानाथ पहली बार विधानसभा पहुंचे। वर्ष 1967 में कांग्रेस से दौलतराम सांख्यान, 1972 में कांग्रेस से किशोरी लाल टाडू विजयी रहे थे, जबकि 1977 के चुनाव में आजाद प्रत्याशी के तौर पर लड़े राजा आनंद चंद विजयी हुए और 1982 के चुनाव में भाजपा से सदाराम ठाकुर पहली बार विधानसभा पहुंचे। 1985 के चुनाव में डा. बाबूराम गौतम कांग्रेस पार्टी से विजयी होकर विधानसभा पहुंचे, जबकि 1990 भाजपा से सदाराम ठाकुर जीते थे। इसके बाद वर्ष 1993 के चुनाव में पहली बार जेपी नड्डा जीतकर विधानसभा गए और दूसरी बार फिर 1998 के चुनाव में भी जीत का परचम लहराया। उस दौरान नड्डा स्वास्थ्य मंत्री रहे, जबकि 2003 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी तिलकराज शर्मा से हार गए, लेकिन 2007 के चुनाव में फिर संजीवनी मिली और जेपी नड्डा भाजपा सरकार के कार्यकाल में वन मंत्री बने। उसके बाद 2012 के चुनाव में श्री नड्डा के केंद्रीय राजनीति में चले जाने के बाद सदर से सुरेश चंदेल को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया, मगर वह कांग्रेस प्रत्याशी बंबर ठाकुर से हार गए। इस झटके के चलते अब 2017 में हो रहे विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नए चेहरे पर दांव खेला है और पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष रहे सुभाष ठाकुर को मैदान में उतारा है, जिनका मुकाबला दूसरी बार विधानसभा पहुंचने के लिए बेताब बंबर ठाकुर से है। खास बात यह है कि जेपी नड्डा केंद्रीय मंत्री हैं और हिमाचल में चुनाव के स्टार प्रचारक, जिसके चलते सदर की सीट उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी है। हालांकि नड्डा बीच बीच में बिलासपुर आकर माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी धर्मपत्नी डा. मल्लिका नड्डा महिला शक्ति के साथ सुभाष ठाकुर की जीत सुनिश्चित बनाने के लिए फील्ड में जुटी हुई हैं।
अब तक ये बने विधायक
वर्ष पार्टी विजेता
1955 आजाद पं. दीनानाथ शर्मा
1957 आजाद संतराम संत
1962 स्वतंत्र पार्टी पं. दीनानाथ शर्मा
1967 कांग्रेस दौलतराम सांख्यान
1972 कांग्रेस किशोरी लाल टाडू
1977 आजाद राजा आनंद चंद
1982 भाजपा सदाराम ठाकुर
1985 कांग्रेस बाबूराम गौतम
1990 भाजपा सदाराम ठाकुर
1993 भाजपा जेपी नड्डा
1998 भाजपा जेपी नड्डा
2003 कांग्रेस तिलकराज शर्मा
2007 भाजपा जेपी नड्डा
2012 कांग्रेस बंबर ठाकुर
इंग्लैंड से बुलाए थे आनंद चंद
1977 में हुए विधानसभा चुनाव में निर्दलीय तौर पर कहलूर रियासत के 45वें एवं अंतिम शासक राजा आनंद चंद जीते थे। इस चुनाव में कांग्रेस की तरफ से कोई कैंडीडेट नहीं था। हालांकि चुनाव के लिए जनता पार्टी व कांग्रेस ने राजा आनंदचंद को इंग्लैंड से चुनाव लड़ने के लिए बुलाया भी, लेकिन बाद में टिकट नहीं दिया और इससे खफा हुए राजा आनंद चंद आजाद खड़े होकर जीत गए थे।
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