अयोध्या मामले में कशमकश

By: Dec 4th, 2017 12:08 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि विवाद मसले में वास्तविक अड़चन मोहन भागवत का वह बयान है, जिसमें उन्होंने कहा है कि अयोध्या में केवल राम मंदिर बनेगा, इसके सिवाय कुछ नहीं। ऐसी स्थिति में जबकि मुसलमान कमोबेश इस बात के लिए तैयार हैं कि मस्जिद के साथ ही राम मंदिर बनाया जा सकता है, भागवत का यह विलाप बेबुनियाद व नाजायज है…

इस छह दिसंबर को बाबरी मस्जिद को गिराए हुए 25 वर्ष पूरे हो जाएंगे। वर्ष 1992 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अपने प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की मिलीभगत से जो किया, उसकी क्षतिपूर्ति करने की बजाय सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी उस स्थान, जहां कभी मस्जिद थी, पर मंदिर बनाने के लिए वचनबद्ध है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने वक्तव्य दिया है कि अयोध्या में केवल भव्य मंदिर बनेगा, बाकी कुछ नहीं। यह मुसलमानों तथा देश की विविधता का समर्थन करने वाले उदारवादी लोगों के साथ ज्यादती है। यह उन लोगों से भी धक्का है, जो इस बात से सहमत हैं कि मंदिर तथा मस्जिद आसपास हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में बाबरी मस्जिद विध्वंस अभी भी भारत की पंथनिरपेक्षता पर धब्बा बना हुआ है। यहां केवल मंदिर का निर्माण हरे जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा होगा।

बाबरी विध्वंस के बाद देश भर में हिंदू-मुसलमान दंगे हुए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने पत्रकारों को यह बताने के लिए कि क्या हुआ, एक बैठक का आयोजन किया था। विध्वंस से भड़की आग को बुझाने के लिए उन्होंने मीडिया से सहयोग मांगा था। उन्होंने स्वीकार किया कि मस्जिद को ढहाने के लिए कारसेवकों की प्रतिबद्धता के कारण सरकार कुछ कर पाने में लाचार थी। बाद में समाजवादी नेता मधु लिम्ये, जिनका अब देहांत हो चुका है, ने मुझे बताया था कि जो पूजा नरसिम्हा राव ने करवाई है, वह बाबरी विध्वंस को छिपाने का एक तरीका था। राव के एक सहयोगी ने जब उनके नजदीक जाकर यह खबर सुनाई कि बाबरी को ढहा दिया गया है, तब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं।

वास्तव में राव अगर चाहते तो वह विध्वंस से पहले ही आसानी से कार्रवाई कर सकते थे। राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा एक पखवाड़े पहले ही तैयार कर ली गई थी। इसे बस कैबिनेट की मंजूरी का इंतजार था। इस संबंध में हुई बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ने नहीं की थी। जब विध्वंस शुरू हुआ, तभी प्रधानमंत्री कार्यालय में निरंतर फोन बजने शुरू हो गए थे। अगर कांग्रेस राव के खिलाफ आरोपों को नकारती भी है, तो भी उसने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया कि जिस स्थान पर पहले मस्जिद थी, उस स्थान पर रातों-रात छोटा मंदिर कैसे बन गया? उस समय केंद्र का पूरा नियंत्रण स्थापित हो गया था, क्योंकि राज्य सरकार की बर्खास्तगी के बाद उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। बाबरी-राम जन्म भूमि विवाद राज्य की सीमा से बाहर पहुंच गया था और केंद्र हर दिन की प्रगति रिपोर्ट बना रहा था। न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह लिब्रहान आयोग की राव के व्यवहार पर चुप्पी उनकी तथा कांग्रेस पार्टी की मिलीभगत को छिपाने का प्रयास मात्र थी।

विध्वंस के एक दिन बाद जब मैंने इस कांड पर अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिक्रिया पूछी, तो उनका कहना था कि मंदिर को बनने दिया जाना चाहिए। मैं उनकी इस प्रतिक्रिया पर हैरान रह गया था, क्योंकि मैं सोच रहा था कि वह भाजपा में एकमात्र उदारवादी शक्ति हैं। वास्तव में लिब्रहान आयोग ने मस्जिद को ढहाने में एक सहयोगी के रूप में वाजपेयी को भी नामांकित किया था। वाजपेयी अन्य हिंदू नेताओं से अलग प्रतिक्रिया दे भी कैसे सकते थे, जबकि बाबरी विध्वंस के षड्यंत्र में वह भी एक पक्षकार थे। भाजपा के दो अन्य नेता लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी भी इस कांड में शामिल रहे। इस बात का पता तो छह दिसंबर, 1992 को ही लग चुका था। मेरे लिए हैरान करने वाला नाम वाजपेयी का ही था। जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तो उन्होंने अपने आप को काफी बदल लिया था। उन्होंने पड़ोसी देश पाकिस्तान को शांति का संदेश देने के लिए लाहौर गई बुद्धिजीवियों की बस का नेतृत्व किया था।

अभियोग का चलना हमारी राजनीतिक व्यवस्था को उघाड़ रहा था, क्योंकि ये तीनों शख्स देश के उच्चतम पदों पर विराजमान हुए। वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, आडवाणी गृह मंत्री बने और मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन मंत्री बने। ये तीनों इस कांड में एक-दूसरे के सहयोगी थे। इस तरह इन्होंने अपनी उस शपथ को तोड़ा जिसमें वचन लिया जाता है कि पदाधिकारी संविधान, जिसमें पंथनिरपेक्षता मूल सिद्धांत है, के अनुसार कार्य करते हुए देश की एकता के प्रति कटिबद्ध रहेगा। लिब्रहान आयोग ने कहा था कि ये लोग उन 68 लोगों में शामिल हैं जिन्होंने देश को सांप्रदायिकता की खतरनाक आग में धकेल दिया। यहीं बात खत्म नहीं हुई। इन तीनों नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश, कि यथास्थिति को छेड़ा नहीं जाएगा, के खिलाफ जाकर काम किया। अन्य शब्दों में कहें तो उन्होंने देश की न्यायपालिका व संविधान, जिसके प्रति उन्होंने पदभार संभालने से पहले शपथ ली थी, का उपहास उड़ाया। उन्होंने अंतरात्मा को किनारे लगाकर छह साल तक शासन किया। प्रश्न केवल वैधानिक नहीं है, बल्कि नैतिकता का भी सवाल है। वाजपेयी, आडवाणी और जोशी सत्तारूढ़ थे, तो ऐसी स्थिति में नियोजित विध्वंस का कैसे सामना किया जा सकता था?

अब आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर दावेदारों के बीच मध्यस्थता की कोशिश कर रहे हैं। आध्यात्मिक गुरु ने हाल में अयोध्या की यात्रा के दौरान कहा कि इस समस्या को अहम और आरोप-प्रत्यारोप को छोड़कर वार्ता व पारस्परिक सम्मान के साथ सुलझाया जा सकता है। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जिनसे आध्यात्मिक गुरु मिले भी थे, ने भी इस समस्या के समाधान के लिए हरसंभव सहायता उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया है। इन दोनों में यह मुलाकात ऐसे समय हुई है जब भाजपा ने अयोध्या से पुनर्विकास का वादा करके स्थानीय निकाय चुनाव के लिए प्रचार की शुरुआत की। हालांकि आरएसएस के ही सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद तथा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मसले पर रविशंकर की मध्यस्थता की पेशकश को ठुकरा दिया है। भाजपा नेतृत्व के भीतर भावनाएं यह हैं कि इस मसले पर फैसले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया जाना चाहिए, जो पांच दिसंबर को इस पर सुनवाई करेगी। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने कहा कि राम मंदिर का मसला सुप्रीम कोर्ट में है और मैं सोचता हूं कि कानूनी प्रक्रिया को पूरा होने देना चाहिए। अन्य विचार-विनिमय इसके बाद हो सकता है। इसी तरह विश्व हिंदू परिषद ने भी इस मसले पर रविशंकर के प्रयासों को लेकर चिंताएं जाहिर की हैं।

विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि रविशंकर इस तरह की पहल कर रहे हैं। वर्ष 2001 में भी उन्होंने ऐसे प्रयास किए थे। उस पर वही प्रतिक्रिया हुई थी, जो आज हो रही है। इस मसले में वास्तविक अड़चन मोहन भागवत का वह बयान है, जिसमें उन्होंने कहा है कि अयोध्या में केवल राम मंदिर बनेगा, इसके सिवाय कुछ नहीं। ऐसी स्थिति में जबकि मुसलमान कमोबेश इस बात के लिए तैयार हैं कि मस्जिद के साथ ही राम मंदिर बनाया जा सकता है, भागवत का यह विलाप बेबुनियाद व नाजायज है।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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