जेनेरिक दवाइयां

By: Dec 13th, 2017 12:06 am

किसी एक बीमारी के इलाज के लिए तमाम तरह की रिसर्च और स्टडी के बाद एक रसायन (साल्ट) तैयार किया जाता है, जिसे आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए दवा की शक्ल दे दी जाती है। इस साल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है। कोई इसे महंगे दामों में बेचती है तो कोई सस्ते, लेकिन इस साल्ट का जेनेरिक नाम साल्ट के कंपोजिशन और बीमारी का ध्यान रखते हुए एक विशेष समिति द्वारा निर्धारित किया जाता है। किसी भी साल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है। अधिकतर बड़े शहरों में एक्सक्लुसिव जेनेरिक मेडिकल स्टोर होते हैं, लेकिन इनका ठीक से प्रचार-प्रसार न होने के कारण इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पाता।

जेनेरिक दवाएं और भ्रम- 

जेनेरिक दवाएं बिना किसी पेटेंट के बनाई और सर्कुलेट की जाती हैं। हां, जेनेरिक दवा के फार्मूलेशन पर पेटेंट हो सकता है, लेकिन उसके मैटीरियल  पर पेटेंट नहीं किया जा सकता। इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से बनी जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती और न ही इनका असर कुछ कम होता है। जेनेरिक दवाओं की डोज, उनके साइड-इफेक्ट्स सभी कुछ ब्रांडेड दवाओं जैसे ही होते हैं। जैसे इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के लिए वियाग्रा बहुत पॉपुलर है लेकिन इसकी जेनेरिक दवा सिल्डेन्फिल नाम से मौजूद है, लेकिन लोग वियाग्रा लेना ही पसंद करते हैं क्योंकि यह बहुत पॉपुलर ब्रांड हो चुका है। इसकी खूब पब्लिसिटी इंटरनेशनल लेवल पर की गई है। वहीं, जेनेरिक दवाइयों के प्रचार के लिए कंपनियां पब्लिसिटी नहीं करती। जेनेरिक दवाएं बाजार में आने से पहले हर तरह के डिफिकल्ट क्वालिटी स्टैंर्ड से गुजरती हैं। इसी तरह ब्लड कैंसर के लिए ‘ग्लाईकेव’ ब्रांड की दवा की कीमत महीने भर में 1,14,400 रुपए होगी, जबकि दूसरे ब्रांड की ‘वीनेट’ दवा का महीने भर का खर्च 11,400 से भी कम आएगा।

क्यों सस्ती होती हैं जेनेरिक दवाएं-

जहां पेंटेट ब्रांडेड दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, वहीं जेनेरिक दवाओं की कीमत को निर्धारित करने के लिए सरकार का हस्तक्षेप होता है। जेनेरिक दवाओं की मनमानी कीमत निर्धारित नहीं की जा सकती। वर्ल्ड हैल्थ आर्र्गेनाइजेशन के मुताबिक, डाक्टर्स अगर मरीजों को  जेनेरिक दवाएं प्रिस्क्राइब करें, तो विकसित देशों में स्वास्थ्य खर्च 70 पर्सेंट कम हो सकता है।

इन बीमारियों की जेनेरिक दवा होती है सस्ती-

कुछ खास बीमारियां हैं जिसमें जेनेरिक दवाएं मौजूद होती हैं लेकिन उसी सॉल्ट की ब्रांडेड दवाएं महंगी आती हैं। ये बीमारियां हैं जैसे- हार्ट डिजीज, न्यूरोलॉजी, डायबिटीज, किडनी, यूरिन, बर्न प्रॉब्लम। इन बीमारियों की जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं की कीमतों में भी बहुत ज्यादा अंतर देखने को मिलता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App