मंदिर के सिक्के
मंदिर आय से निकले सिक्के न फिसलें, इसलिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय के निर्देश सही परिप्रेक्ष्य में लिए जाएंगे। चढ़ावे की राशि में वित्तीय अनुशासन मुकर्रर करते हुए इसका 85 फीसदी भाग मंदिर कार्यों पर ही खर्च करने की शर्त लगाई है अन्यथा आयकर प्रावधानों के तहत उपलब्ध छूट नहीं मिलेगी। हिमाचल में मंदिर आमदनी का इस्तेमाल आज तक राजनीतिक लाभ देने के हिसाब से हुआ है और इसके कारण सरकारी नियंत्रण केवल खुशामद सरीखा हो गया। करीब आधा दर्जन प्रमुख मंदिरों की आय को जो व्यय निगल रहा है, उसकी चीरफाड़ करने की जरूरत है। सर्वप्रथम इसका उपयोग अनावश्यक कर्मचारियों की नियुक्ति में किया गया। दियोटसिद्ध मंदिर परिसर में आमदनी पर पलते समूह का हिसाब देखें, तो सारा खजाना कर्मचारियों में बंट रहा है या शिक्षण संस्थानों के खर्चे इस आय पर केंद्रित कर दिए गए हैं। कमोबेश हर बड़े मंदिर की आय का बंटवारा कुछ इस तरह हुआ है कि श्रद्धालु ही उपयुक्त सुविधाओं से वंचित रहे, वरना खर्च की कोई जवाबदेही दिखाई नहीं देती। मंदिरों की आय से होटल व कालेज तक बन गए, लेकिन परिसर अधोसंरचना व मूलभूत सुविधाओं में वांछित सुधार नहीं हुआ। मंदिर आय में निरंतर हो रही बढ़ोतरी का एक व्यावसायिक पक्ष है, जिसे प्रबंधकीय और प्रशासनिक चुनौतियों के रूप में देखना होगा। विडंबना यह है कि मंदिर अधिग्रहण के रूप में कला, भाषा एवं संस्कृति विभाग की भूमिका को बल मिला, लेकिन सीधा प्रशासनिक हस्तक्षेप राजस्व अधिकारियों के पल्ले बांध दिया गया। इतना ही नहीं, हर मंदिर के लिए अलग-अलग ट्रस्ट होने के कारण नियम, पद्धति, कार्यप्रणाली व प्रबंधन में दागों को मिटाने की व्यवस्था कायम हो चुकी है। ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर व्यवस्था, राजनीतिक शक्ति स्थल की तरह उपयोग में लाई जाने वाली प्रशासनिक विधा बन चुकी है। जयराम ठाकुर सरकार से अपेक्षा है कि मंदिरों को धार्मिक पर्यटन के रास्ते पर चलाते हुए, पूरी व्यवस्था को नया चेहरा दें। पहले यह कि तमाम राष्ट्रीकृत मंदिरों को चलाने के लिए एक केंद्रीय ट्रस्ट या मंदिर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण बनाते हुए यह सुनिश्चित किया जाए कि धार्मिक पर्यटन का विस्तार संभव है। दूसरे मंदिर व्यवस्था के लिए विशेष काडर के तहत कर्मचारी व अधिकारियों की पूर्णकालिक नियुक्तियां की जाएं और इन्हें राज्यस्तरीय सेवाओं के रूप में नियमों से जोड़ा जाए। तीसरे मंदिरों की आय का संचालन राज्यस्तरीय रूपरेखा व बजटीय प्रावधानों के तहत हो, ताकि निवेश के जरिए भविष्य की अधोसंरचना या यात्री सुविधाओं में बढ़ोतरी हो सके। देश के बड़े मंदिरों या वैष्णो देवी-शिरडी की वित्तीय व्यवस्था से सीखें, तो प्रमुख मंदिरों की कुल आय की मौजूदा स्थिति लगभग सौ करोड़ से बढ़कर पांच सौ से हजार करोड़ तक हो सकती है। तमाम मंदिरों के साथ घी, प्रसाद, धूप सामग्री तथा हिमाचली उपहारों की औद्योगिक इकाइयां जोड़ी जाएं तो रोजगार का पहलू और सशक्त होगा। उदाहरण के लिए दियोटसिद्ध में वितरित होने वाले प्रसाद यानी रोट बनाने की बड़ी इकाई स्थापित करके अगर सभी मंदिरों में केवल इसी का वितरण किया जाए, तो पर्यटन व रोजगार अपने लिए संभावना तराशेंगे। इसी तरह बालासुंदरी मंदिर के साथ मंदिर सामग्री, चामुंडा में धूप-अगरबत्ती या ज्वालाजी में विशेष पेड़ों और दुग्ध पदार्थों का उत्पादन हो तो ये तमाम वस्तुएं वर्तमान मंदिर व्यवस्था को चार चांद लगा सकती हैं। इसी तरह मंदिरों की पौराणिक गाथाओं तथा अन्य सामग्री, चित्र, कला वस्तुओं के उत्पादन केंद्र के रूप में कांगड़ा, चिंतपूर्णी व नयनादेवी मंदिर परिसरों को जोड़ा जा सकता है। मंदिरों के आसपास पड़ी बेकार भूमि पर पुष्प उत्पादन शुरू किया जा सकता है, तो इसी तरह हर मंदिर की व्यवस्था के साथ उस स्थल की धार्मिक नगर की व्याख्या में निवेश का रोडमैप बनाना होगा। यानी अगर हर मंदिर परिसर कला व गीत-संगीत का प्रश्रय स्थल बने, तो वहां कलावीथियों के मार्फत हिमाचली कला पक्ष व सभागारों के निर्माण के साथ लोक कलाकारों को स्थायी संरक्षण मिल पाएगा। इतना ही नहीं, मंदिरों का विस्तार एक शृंखला के रूप में होगा, तो समूचे हिमाचल में देवभूमि धरोहर में निखार आएगा। मंदिर आय के साथ भविष्य की अधोसंरचना के रूप में मंदिर रेल परियोजना तथा देव आश्रय के तहत बजट होटलों का निर्माण करके हम न केवल धार्मिक पर्यटन को नया रूप देंगे, बल्कि मंदिर हमारी आर्थिकी व रोजगार अवसरों में माकूल बढ़ोतरी करेंगे।
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