सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाई कोर्ट का फैसला

By: Dec 4th, 2017 12:10 am

चरस तस्करी मामले में हिमाचल के आरोपी को सुनाई थी 20 साल की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी

नई दिल्ली— एक आपराधिक केस में हिमाचल हाई कोर्ट ने अभियुक्त को 20 साल की सजा सुनाई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे रद्द कर दिया और आरोपी को बरी घोषित किया। कानून के इतिहास में यह अपनी तरह का अद्भुत मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार किसी पुलिस अधीक्षक को तीन महीने में ही जांच रपट सीधा अदालत भेजने के आदेश दिए हैं। मामला चरस तस्करी से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अमिताभ राव और जस्टिस एनवी रमन्ना की न्यायिक पीठ ने हिमाचल में चरस की तस्करी के संदर्भ में यह ऐतिहासिक फैसला दिया है। मामला 2009 का है। कुल्लू में रात के दौरान गश्त करते हुए पुलिस ने एक कार पकड़ी थी। उससे करीब 14 किलो 750 ग्राम चरस बरामद की गई। कार का ड्राइवर भाग गया, लेकिन कथित अभियुक्त खेकराम को पकड़ लिया गया। चरस की कीमत करीब दो-अढ़ाई करोड़ रुपए आंकी गई। मुकदमा कुल्लू की ट्रायल कोर्ट में चला, जिसने आरोपी को रिहा करने और केस खत्म करने का आदेश दिया। हिमाचल सरकार ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट की न्यायिक पीठ ने खेकराम को 20 साल की सजा सुनाई और दो लाख रुपए जुर्माना किया। हाई कोर्ट का यह फैसला 2016 का था। हिमाचल के एक वकील अजय मारवाह ने पूरे मामले को ‘फर्जी’ करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में उसे चुनौती दी। दिलचस्प है कि शीर्ष अदालत ने उसे स्वीकार भी कर लिया और दो जजों की खंडपीठ को दिया। इस मामले में वकील अजय ने रेखांकित किया कि हिमाचल में चरस की तस्करी का खेल किस तरह जारी है। उन्होंने पीठ को बताया कि अभियोजन पक्ष केस को स्थापित करने में नाकाम रहा है। पुलिस ने जिस डिजिटल कैमरे की फोटो दिखाई है, उसकी तारीख 2008 की दर्शाई गई है, जबकि मामला 2009 का है। पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर लिखी थी, तो खेकराम का नाम पूरे पते सहित कैसे आ गया। कार का ड्राइवर भाग गया था और पुलिस उसे पहचान नहीं पाई थी, तो एफआईआर में उसका भी नाम कैसे आया। सुप्रीम कोर्ट ने दलीलों और साक्ष्यों पर गंभीर सरोकार जताया। न्यायिक पीठ हैरान थी कि हिमाचल जैसे पहाड़ी और शांत राज्य में चरस तस्करी कैसे की जा रही है। जस्टिस द्वय ने यह द लील भी स्वीकार की कि चरस के केस में जिसे भी पकड़ा जाए, कमोवेश उसे जानकारी होनी चाहिए कि वह चरस की तस्करी में संलिप्त था।

फरवरी में देनी होगी रिपोर्ट

न्यायिक पीठ ने माना है कि जांच बहुत खोखली थी और उन्हीं आधारों पर हाई कोर्ट ने सजा सुना दी। इतिहास में पहली बार शीर्ष अदालत ने कुल्लू के पुलिस अधीक्षक को नोटिस भेजकर आदेश दिया है कि पूरे मामले की जांच रपट तीन महीने की अवधि में सीधा सुप्रीम कोर्ट को भेजी जाए। यह भी तय किया जाए कि किस स्तर पर ढील बरती गई और दोषी कौन-कौन हैं। पुलिस अधीक्षक को फरवरी, 2018 तक यह जांच रपट सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचानी है।


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