हवा में झूलते मंदिर का रहस्य

By: Dec 9th, 2017 12:07 am

आमतौर पर मंदिर या मठ या जो भी इमारतें होती हैं, वो धरातल से जुड़ी होती हैं।  एक मंदिर ऐसा भी है, जो 1500 सालों से हवा में झूल रहा है। इस मंदिर को देखना किसी स्वप्न से कम नहीं है। उत्तर चीन के शानसी प्रांत के ताथुंग शहर में स्थित यह मंदिर सीधी खड़ी पहाड़ी चट्टान पर बनाया गया है, जिसे दूर से देखने पर लगता है कि वह हवा में अटका हुआ है। इसलिए यह मंदिर हवा में खड़े मंदिर के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर है। इस मंदिर का निर्माण आज से 1500 साल पहले हुआ था। यह चीन में अब तक सुरक्षित एकमात्र बौद्ध, ताओ और कंफ्यूसियस त्रिधर्मों की मिश्रित शैली में निर्मित अनोखा मंदिर है।  इस मंदिर के निर्माण का काम वाकई अनोखा है। मंदिर सीधी खड़ी चट्टान की कमर पर अटका सा खड़ा है। उसके ऊपर चट्टान का बाहर की ओर बढ़ा निकला हुआ विशाल टुकड़ा एक छाते की भांति मंदिर को वर्षा और पानी से क्षति पहुंचाने से बचा देता है। जमीन से 50 मीटर ऊंची जगह पर खड़ा होने से मंदिर पहाड़ी घाटी में आने वाली बाढ़ से भी बच सकता है। मंदिर के चारों ओर घिरी पहाड़ी चोटियां उसे तेज धूप से भी बचा सकती हैं। कहा जाता है कि गर्मियों के दिनों में भी रोज महज तीन घंटों तक सूरज की किरणें मंदिर पर पड़ती हैं। इसी के कारण लकड़ी का यह मंदिर 1500 साल पुराना होने पर भी आज तक अच्छी तरह सुरक्षित रहा है। हवा में खड़े मंदिर के छोटे- बड़े 40 भवन व मंडप हैं, जिन्हें चट्टान पर गड़े हुए लकड़ी के सेतुओं से जोड़ा गया है। इस प्रकार हवा में निर्मित मंदिर में लकड़ी के रास्ते पर चलते हुए लोगों की सांस अटक जाती है। थोड़ी सी भी लापरवाही से जान तक जा सकती है। लोग समझते हैं कि मंदिर उस के नीचे टेकी दर्जन मोटी लकडि़यों पर टिका हुआ है, लेकिन असलियत दूसरी है कि उन लकडि़यों पर मंदिर का भार नहीं पड़ा है। मंदिर को मजबूत टेका जाने में चट्टान के अंदर गड़ी कड़ी गुणवत्ता वाली लकड़ी के धरनों का पूरा काम आता है। चौकोण धरनें गहरे-गहरे पत्थर के अंदर पैठा कर दी गई हैं।  मंदिर का तल्ला इसी प्रकार की मजबूत धरनों पर रखा गया है। मंदिर का मुख्य भवन त्रिदेव महल पहाड़ी चट्टान की विशेषता को ध्यान में रख कर बनाया गया है। महल के अग्रिम भाग में लकड़ी का मकान है और पीछे का भाग चट्टान के अंदर खोदी गई गुफा में है। देखने में त्रिदेव महल बहुत खुला और विशाल लगता है। मंदिर के दूसरे भवन व मंडप अपेक्षाकृत छोटा है और उन के भीतर विराजमान मूर्तियां भी छोटी दिखती है। मंदिर के भवन, महल और मंडप ऐसे निर्मित हुए हैं, उनके भीतर प्रवेश कर मानो किसी भूलभुलैया में आ गए हों। हवा में खड़ा मंदिर के पास चट्टान पर कोंगसु का अतुल्य काम चार चीनी शब्दों में खुदे नजर आता है, जो इस मंदिर की अनूठी वास्तु कला की सराहना करता है। कोंगसु आज से दो हजार से ज्यादा साल पहले प्राचीन चीन का एक सुप्रसिद्ध शिल्पी था। वह चीन के वास्तु निर्माण उद्योग का सर्वमान्य गुरु था।


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