24 साल बाद सीएम की रेस में मंडी
कर्म सिंह ठाकुर और पंडित सुखराम के बाद अब इस बार सबसे बड़ी उम्मीद
मंडी— प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस को बाहर करने और बडे़ बहुमत से सत्ता में आने के बाद भी भाजपा में मुख्यमंत्री के पद को लेकर पेंच फंसा हुआ है। इस पेंच के बीच भी छोटी काशी मंडी की उम्मीदें अभी कायम हैं। प्रदेश में अब तक कई बार कांग्रेस और कई बार भाजपा की सरकार बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले मंडी जिला को इस बार 24 वर्षों बाद फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलने की उम्मीदें बनी हैं। इससे पहले मंडी जिला को सीएम की कुर्सी मिलने का मौका 1967 में मिला था, लेकिन अपने ही लोगों द्वारा साथ न दिए जाने के कारण यह पूरा नहीं हो सका। वर्ष 1967 में मंडी से कर्म सिंह ठाकुर मुख्यमंत्री पद के बिलकुल करीब थे, लेकिन अंत समय में उन्हें मैदान छोड़ना पड़ा। अगर उस समय कर्म सिंह मुख्यमंत्री बन गए होते तो आज मंडी की राजनीति किसी नए शिखर पर होती। इसके बाद उसके बाद 1993 में पंडित सुखराम मंडी के सपने के काफी करीब पहुंचे थे, लेकिन अंत में उन्हें भी निराशा हाथ लगी और शिमला वाले बाजी मार गए। इसके बाद कौल सिंह का नाम भी इस रेस में आया, लेकिन उम्मीद बंधने से पहले ही छंट गई, जबकि 24 वर्षों बाद अब फिर से मंडी जिला को यह उम्मीद जगी है। हालांकि इस बार की उम्मीदें और समीकरण मंडी जिला के ज्यादा पक्ष में भी लग रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर फैसला हाइकमान के जाने से चेहरों पर मायूसी भी बढ़ आई है। गुरुवार तक जश्न मना रहे मंडी जिला के लोगों और भाजपा कार्यकर्ताओं को शुक्रवार को उम्मीदों के अनुसार परिणाम नहीं मिले हैं। इसके बाद जिला भर में लोगों जयराम ठाकुर की समर्थकों में मायूसी जरूर देखने को मिली है। पांचवीं बार विधायक बने भाजपा नेता जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने की अटकलों के बीच ही मंडी जिला से ही एक हजार से अधिक कार्यकर्ताओं ने कई दिनों से शिमला में डेरा डाला हुआ था, लेकिन शुक्रवार को बड़ी तादाद में यह लोग वापस लौट आए हैं। अब सबकी नजरें दिल्ली पर ही टिकी हुई हैं। दिल्ली से सीएम की कुर्सी अब किसकी किस्मत में आती है, यह शनिवार या रविवार को ही अब पता चल सकेगा।
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