जीरो बजट खेती की सीख देगा पालमपुर

By: Jan 29th, 2018 12:01 am

पालमपुर— प्रदेष के किसानों को जीरो बजट खेती की ओर प्रोत्साहित करने की तैयारी की जा रही है। इसी कड़ी में प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में जीरो बजट प्राकृतिक खेती केंद्र की स्थापना की जा रही है। इस केंद्र का नींवपत्थर राज्यपाल आचार्य देवव्रत सोमवार को रखेंगे और इस दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और कृषि मंत्री राम लाल मार्कंडेय भी मौजूद रहेंगे। जीरो बजट प्राकृतिक खेती जैविक खेती से भिन्न है तथा ग्लोबल वार्मिंग और वायुमंडल में आने वाले बदलाव का मुकाबला करने एवं उसे रोकने में सक्षम है। गाय के गोबर एवं गोमूत्र से निर्मित घोल खेत में छिड़काव खाद का काम करता है और इससे भूमि की उर्वरकता का हृस भी नहीं होता है। इसके इस्तेमाल से एक ओर जहां गुणवत्तापूर्ण उपज होती है, वहीं दूसरी ओर उत्पादन लागत लगभग शून्य रहती है। गौर रहे कि राज्यपाल आचार्य देवव्रत भी कृषि की इस पद्धति के पक्षधर हैं और वैज्ञानिकों को इस पद्धति पर किसानों को प्रोत्साहित करने का संदेश लेकर बीते साल कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित एक बड़े सम्मेलन में गए थे। प्रदेश के किसानों तक इस विधि को पहुंचाने के लिए कृषि विवि जीरो बजट प्राकृतिक खेती केंद्र की स्थापना करने जा रहा है। इस केंद्र का नींव पत्थर राज्यपाल आचार्य देवव्रत सोमवार को रखेंगे। अब तक देश में करीब 40 लाख किसान इस विधि से जुड़ चुके हैं। हालांकि प्रदेश में अभी जीरो बजट प्राकृतिक खेती शुरुआती दौर में है।

यह है जीरो बजट-प्राकृतिक खेती

एक देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है, जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। फसलों की सिंचाई के लिए पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है ।


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