‘जूठन’ पर उठे विवाद पर एचपीयू में समीक्षा
शिमला— राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत छठे सेमेस्टर में अंगे्रजी विषय में पढ़ाई जा रही ओम प्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित आत्मकथा ‘जूठन’ को लेकर उपजे जातिवाद के विवाद पर प्रदेश विश्वविद्यालय में भी समीक्षा शुरू हो गई है। विश्वविद्यालय में प्राध्यापकों द्वारा इस विषय को लेकर समीक्षा की जा रही है, जिसमें शिक्षकों ने एकमत होकर इस बात का समर्थन किया है कि जूठन को सिलेबस से नहीं हटाया जाना चाहिए। प्रदेश में वर्ष 2011 से ही जूठन को सिलेबस का हिस्सा बनाया गया है और तब से लेकर वर्ष 2017 तक इसे बिना किसी विवाद के कालेजों में पढ़ाया गया है। अब अचानक इस विषय को जातिवाद का नाम देकर भ्रातियां फैलाने का काम किया जा रहा है। एचपीयू की अधिष्ठाता अध्ययन प्रो. गिरिजा शर्मा का कहना है कि यह आत्मकथा जूठन किसी भी तरह के जातिवाद और इससे जुड़ी भ्रांतियां नहीं फैलाती है। इसके द्वारा समाज में फैली कुरीतियों और जातिवाद के भेद को मिटाकर भाइचारे का संदेश छात्रों को सिलेबस में पढ़ाकर दिया जा रहा है।
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