देश के 18 बहादुर बच्चों के साहस को सलाम

By: Jan 20th, 2018 12:06 am

इस बार 11 लड़के, सात लड़कियों को 26 को मिलेंगे वीरता पुरस्कार

इस साल के राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है। इस साल कुल 18 बच्चों को इस सम्मान के लिए चुना गया है। इसमें तीन बच्चों को मरणोपरांत ये अवार्ड दिया गया है। सम्मान पाने वाले बच्चों में सात लड़कियां हैं। सभी 18 बहादुर बच्चे 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होंगे और प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मिलने का मौका मिलेगा, खुद प्रधानमंत्री इन बच्चों को ये सम्मान देंगे…

समृद्धि शर्मा

गुजरात की इस 16 साल की बेटी ने घर में घुस आए बदमाश का बहादुरी से मुकाबला किया। इस दौरान बदमाश ने छूरा मार समृद्धि को घायल भी कर गिया। इसके बावजूद बहादुर बिटिया बदमाश को भगाने में कामयाब हो गई।

ललछंदमा (मरणोपरांत)

12वीं में पढ़ने वाले मिजोरम के इस लड़के ने नदी में डूब रहे अपनी दोस्त को बचाने की खातिर खुद की जान गंवा दी। ललछंदमा के पिता का कहना है कि उन्हें बेटे को खोने का दुख नहीं। उनके बेटे ने वही किया, जो परिवार ने उसे सिखाया था। अपने बच्चे को खोने के बावजूद उस पिता का सारे बच्चों के नाम यही संदेश है कि परिणामों की चिंता किए बिना अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करें।

नाजिया

आगरा की इस 16 साल की बिटिया ने अकेले दम पर जुआ और ड्रग माफिया को उखाड़ फेंका। नाजिया बताती हैं कि इस दौरान बदमाशों ने उनका पीछा किया, गाली-गलौज की गई, यहां तक कि किडनैप करने की धमकी भी दी गई। बदमाश उनके घर में भी घुसे, लेकिन नाजिया ने हार नहीं मानी। लगातार माफिया के खिलाफ सबूत जुटाती रहीं। एक दिन नाजिया ने यूपी के सीएम को ट्वीट किया। उसके बाद दशकों से चल रहा जुए और ड्रग्स का नेटवर्क ध्वस्त हुआ। नाजिया को भारत अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा।

नेत्रवती चव्हाण (मरणोपरांत)

कर्नाटक की 14 साल की इस बहादुर बिटिया ने अपनी जान गंवा दो लड़कों को डूबने से बचा लिया। पिछले साल मई में नेत्रवती एक तालाब के पास कपड़े धो रही थी। उसके सामने दो लड़के तालाब में गए और करीब 30 फुट की गहराई में डूबने लगे। बिना एक पल गंवाए नेत्रवती ने तालाब में छलांग लगा दी। पहले उसने खुद से बड़े लड़के मुथू (16 साल) को बचाया। नेत्रवती इसके बाद गणेश (10 साल) को बचाने फिर तालाब में उतरी। रेस्क्यू के क्रम में गणेश ने जोर से उसका गला पकड़ लिया। नेत्रवती खुद को नहीं बचा पाई।

लोकरकपाम राजेश्वरी  (मरणोपरांत)

मणिपुर की इस 14 साल की बहादुर बेटी भी इतिहास में दर्ज हो चुकी है। राजेश्वरी ने एक जीर्ण पुल से इम्फाल नदी में गिर रही मां और उसके बच्चे को बचाया था। इस बचाव प्रयास में राजेश्वरी खुद नदी की तेजधारा में समा गई।

करनबीर सिंह

अमृतसर के इस 16 साल के लड़के ने खुद घायल होने के बावजूद दुर्घटना की शिकार अपनी स्कूल बस से 15 बच्चों की जान बचाई। 20 सितंबर 2016 को करनबीर स्कूल से घर लौट रहे थे। अटारी के पास उनकी स्कूल बस संतुलन खोकर एक नाले में गिर गई। करनबीर के मुताबिक वह खिड़की के पास बैठे थे और उन्हें सिर पर चोट पहुंची। बस में तेजी से पानी भरता जा रहा था। करनबीर ने हौसला नहीं खोया और बहादुरी दिखाते हुए एक-एक कर 15 बच्चों को बचाकर बाहर निकाल लाए। हालांकि इस दुखद हादसे में अन्य सात बच्चों की मौत हो गई। करनबीर को उनकी बहादुरी के लिए संजय चोपड़ा अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा।

लक्ष्मी और पकंज

छत्तीसगढ़ के रायपुर की रहने वाली 16 साल की इस बहादुर बेटी ने खुद के  यौन शोषण के प्रयास को विफल किया। उत्तराखंड के टिहरी-गढ़वाल इलाके के 16 साल के इस लड़के ने तेंदुए से अपनी मां की जान बचाई।

इनको भी शाबाशी

राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार पाने वाले अन्य बच्चों में मनशा (13 साल), चिंगई वांग्सा, शेंगपॉन, योकनेई (सभी नगालैंड), जोनुंतुलंगा (16 साल, मिजोरम), एजाज अब्दुल रउफ (17 साल, महाराष्ट्र) और पंकज कुमार महंत (ओडिशा) शामिल हैं। इन बहादुर बच्चों की शिक्षा-दीक्षा का खर्च इंडियन काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर वहन करेगी।

ऐसा हौसला

मगरमच्छ आग तो कोई ट्रेन से जा भिड़ा 

इस बार के बहादुर बच्चों में ममता दलाई (6 साल) उम्र में भले ही सबसे छोटी हो, लेकिन उसके साहस और हौसले को आज देश सलाम कर रहा है। अपनी बड़ी बहन को बचाने के लिए छह साल की यह मासूम अकेले पांच फुट के मगरमच्छ से भिड़ गई। ममता को बापू गयाधनी अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। मेघालय के बेटश्वाजॉन (14 साल) को आग में घिरे छोटे भाई को बचाने और केरल के सेबस्टियन विंसेट (13 साल) को ट्रेन की चपेट में आने वाले दोस्त को बचाने के लिए इस अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा।


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