राजनेताओं-अफसरों के घरों में लगते रहे बेशकीमती पत्थर!

By: Jan 16th, 2018 12:08 am

कोटी अवैध कटान प्रकरण के बाद अवैध खनन की भी उघड़ने लगी परतें

शिमला- शिमला के कोटी रेंज में 400 से भी ज्यादा अवैध पेड़ कटान का जो मामला सामने आया है। उसमें नए खुलासे हो रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि यहां का कीमती पत्थर कई अफसरों व राजनेताओं के घर में लगाया गया। अधिकारियों को इसकी शिकायतें पहुंचती रही, मगर इस क्षेत्र में यह कोई नया मामला नहीं है। कुसुम्पटी में अवैध कटान के मामले विधानसभा में भी गूंजते रहे हैं। मगर राजनीतिक तौर पर इन पर लीपापोती होती रही। हैरानी की बात यह है कि इस क्षेत्र में उस वन रक्षक को लगाया गया जो सेवानिवृत्ति के करीब था। जाहिर सी बात है कि यह किसी बड़ी मिलीभगत की तरफ ईशारा करता है।  वन मंत्री गोबिंद सिंह ठाकुर को यह शिकायत भी की गई है कि वन अफसरों को मौखिक तौर पर भी इसकी शिकायत की गई व लिखित तौर पर भी कुछ स्थानीय लोगों ने भेजा था, मगर इस क्षेत्र के दौरे करके इस अवैध धंधे को रोका नहीं गया।  यही नहीं ,उद्योग विभाग के खनन विंग पर भी सवाल उठ रहे हैं कि जब इतना बड़ा मामला शिमला के करीब सामने आ गया तो माइनिंग अधिकारी को इसकी सूचना तक क्यों नहीं लगी। आरोप लग रहे हैं कि अवैध पत्थर माइनिंग यहां अरसे से की जाती रही, यानी 2014 से भी पहले। अब इस क्षेत्र में माइनिंग की अनुमति के लिए आवेदन भेज दिया गया 2017 में। इससे पहले अवैध कटान किसके इशारे पर हुआ, इसके पीछे क्या चाल थी, यह पुलिस जांच में सामने आएगा। आरोप यही लग रहे हैं कि यह सरकारी व गैर सरकारी मिलीभगत का एक बड़ा मामला है। जिसे अगर नहीं भेदा गया तो फिर से ऐसे अवैध धंधों का दोहराव होता रहेगा।  उद्योग विभाग के अधिकारियों के मुताबिक बिना अनुमति के निजी जमीन पर भी खनन की अनुमति नहीं मिल सकती है। इस मामले में अब कुछ और बड़ी गिरफ्तारियां भी हो सकती है।

यह मामला बेहद गंभीर है। जांच के बाद कोई कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, बख्शा नहीं जाएगा। वन अधिकारियों की जवाबदेही भी तय होगी

गोबिंद सिंह ठाकुर;

वन मंत्री, हिमाचल प्रदेश 

माफिया के हौसले बुलंद

हिमाचल में चंबा के एहलमी, शिमला के तारादेवी के साथ-साथ मंडी में होशियार सिंह मामला और बिलासपुर में अवैध खैर कटान पूरे प्रदेश का ध्यान खींचते रहे हैं। विधानसभा में भी इन मामलों पर बार-बार वाक आउट होते रहे, मगर सबक फिर नहीं लिया। क्योंकि दोषियों पर कार्रवाई में लीपापोती होती है और माफिया के हौंसलें बुलंद हो जाते हैं।

जवाबदेह वन अफसर

कोटी रेंज शिमला से बड़ी दूर नहीं है। जाहिर तौर पर शिमला के वन अधिकारी इसके लिए उत्तरदायी हो सकते हैं कि आखिर उन्होंने समय पर कार्रवाई क्यों नहीं की। सवाल ये भी हैं कि इस बीट में तैनात वन रक्षक व रेंज अफसर ने कंजरवेटर व डीएफओ को इसकी जानकारी क्या नहीं दी। लेटलतीफी से अब सूचना क्यों दी गई।


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