रामसिंह की धुन में गुंथे राष्ट्रभक्ति के तराने

By: Jan 26th, 2018 12:05 am

राजेंद्र राजन

लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं

बहुत कम लोग जानते हैं कि कैप्टन रामसिंह ने राष्ट्रगान ‘जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता’ की मूल धुन तैयार की थी। जिस राष्ट्र गान ने समूचे राष्ट्र को एक माला में पिरोया, उसके जन्मदाता कैप्टन राम सिंह हैं। खनियारा में जन्मे कैप्टन राम सिंह सेवानिवृत्ति के बाद लखनऊ बस गए…

करीब 19 साल पहले का मंजर मेरी आंखों के समक्ष आज भी तरोताजा है। उन दिनों मेरी तैनाती धर्मशाला में थी और राष्ट्र गान धुन के जनक कैप्टन राम सिंह धर्मशाला आए थे। यह उनकी इस शहर में अंतिम यात्रा थी। उन्हें शिमला और कुछ अन्य स्थानों पर अनेक संस्थाओं व सरकार ने सम्मानित किया था और अपने अंतिम पड़ाव पर धर्मशाला में कुछ दिन के लिए वह धर्मशाला के सर्किट हाउस में ठहरे थे। यह कहानी है कैप्टन रामसिंह ठाकुर की, जिन्होंने लगभग 60 वर्ष पूर्व अपनी धुनों व गीतों से समूचे राष्ट्र को अंग्रेजों के विरुद्ध लोहा लेने के लिए अभिप्रेरित किया। ‘कदम से कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा, ये जिंदगी है कौम की, इसे कौम पर लुटाए जा’ गीत की रचना रामसिंह थापा ने तब की थी, जब वह सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज में बैंड मास्टर थे।

बहुत कम लोग जानते हैं कि कैप्टन रामसिंह ने राष्ट्रगान ‘जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता’ की मूल धुन तैयार की थी। लेकिन आजादी से पहले जिस गीत के लिए रामसिंह ने धुन तैयार की थी, उसे रवींद्र नाथ टैगोर ने मूलरूप से बंगला में लिखा था। इसका मुखड़ा था, ‘शुभ सुख चैन की बरखा बरसे भारत भाग्य है जागा’ वास्तव में यह गीत आजाद हिंद फौज का कौमी तराना था। स्वाधीनता के उपरांत इस लंबे गीत की शब्द रचना में परिवर्तन किया गया, परंतु धुन ज्यों की त्यों रही। आज जिस राष्ट्र गान से समूचे राष्ट्र को एक माला में पिरोया, उसके जन्मदाता कैप्टन राम सिंह हैं। हिमाचल में धर्मशाला के समीप खनियारा गांव में जन्मे कैप्टन राम सिंह सेवानिवृत्ति के बाद लखनऊ बस गए। भेंट के दौरान मुझसे बोले, पुरानी यादें और वतन की मिट्टी मुझे यहां खींच लाते हैं। दुःखद यह है कि आज मेरे पुश्तैनी मकान पर दूसरे लोग कब्जा जमाए बैठे हैं। मैं धर्मशाला में सेकंड फर्स्ट गोरखा पलटन में भर्ती हुआ था। बैंड पर धुनें बजाने का शौक था। जब 1941 में जापान ने अमरीका के विरुद्ध लड़ाई घोषित की तो हमारी पलटन मलाया पहुंची। लड़ाई में पकड़े गए। 15 फरवरी, 1942 को सिंगापुर फाल हुआ, तो आजाद हिंद की लहर उठी। मैं भी जापानियों की कैद से मुक्त होने के बाद आईएनए में शामिल हो गया।’

कौमी तराना ‘जन गण मन’ की धुन बनाने की प्रेरणा मुझे सुभाष चंद्र बोस ने दी। उन्होंने कहा था कि यह धुन इतनी सुंदर और इतनी जोरदार बननी चाहिए कि लोग जब इसे गाएं तो जोश में आ जाएं, उनके दिलों में, रग-रग में इस धुन का हर शब्द समा जाए। हम लोग बिरादरी कैंप में इस धुन पर ताल के साथ परेड करते रहे। मुझे आज भी याद है नेताजी ने इस गीत के विषय में मुझसे कहा था, ‘रामसिंह सिंगापुर की कैथे बिल्डिंग में जिस दिन हमारी आरजी हुकूमत बनेगी, उस दिन ‘शुभ सुख चैन की बरखा बरसे’ गीत बजेगा। इतना जोश हो कि कैथे बिल्डिंग के दो टुकड़े हो जाएं और आकाश नजर आने लगे। आकाश से देवी-देवता फूल बरसाएं और वे फूल सीधे तिरंगा झंडे पर आ गिरें और ‘जय हो, जय हो’ की जयघोष भारत तक पहुंचनी चाहिए। और यही हुआ। जब सिंगापुर में 31 अक्तूबर, 1943 को आजाद हिंद फौज की हुकूमत बनी, तो मेरी बैंड पार्टी ने यही गीत बजाया। कैथे बिल्डिंग गूंज उठी।

 एक दफा कैप्टन राम सिंह को महात्मा गांधी के स्वागत में कौमी तराना बजाने का अवसर मिला, ‘हम लोग दिल्ली में काबुल लाइन कैंटोनमेंट में बंदी थे। सायं सात बजे हमें तैयार होने का हुक्म हुआ। हमारी बैरक के सामने दो-तीन कारें रुकीं। पहली कार पर आर्मी जनरल का झंडा लगा हुआ था। बापू जी जनरल की कार से उतरे। उनके साथ सरदार पटेल भी थे। हम सभी कतार में खड़े थे। बापू जी ने कहा, ‘अंग्रेज सरकार की कृपा है कि उसने आप लोगों से मिलने का मौका दिया।’ फिर बापू जी ने प्रत्येक जवान के नाम व ग्राम का पता पूछा। हमें बेहद खुशी हुई। फिर आईएनए के जनरल भौंसले ने सरदार पटेल से कहा कि हमारे बापू जी को जवान कौमी तराना गाकर सुनाना चाहते हैं। बापू जी ने अंग्रेज आर्मी जनरल से आज्ञा ली, तो वह तुरंत राजी हो गए। राष्ट्र गान सुनकर बापू जी प्रसन्न हुए। हमने ‘महात्मा गांधी की जय, ‘भारत माता की जय’, ‘नेताजी की जय’ नारों से बापू जी का स्वागत किया। ‘मुझे याद है। 1953 तक मिलिट्री ब्रास बैंड बन चुका था। इसी में से 35 आदमियों की स्ट्रांग आर्केस्ट्रा बनी। इस बैंड की चर्चा सारे भारत में हुई। पहली बार अमौसी ऐरोड्रम पर हम पंडित जवाहरलाल नेहरू के आगमन पर उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर देने गए। गार्ड ऑफ ऑनर को निरीक्षण के बाद जब पंडित जी मंच की तरफ लौटने लगे तो पद्मजा नायडू ने कहा, ‘मिस्टर नेहरू आप रामसिंह से बिना मिले ही आ गए।’ पंडित जी कहने लगे, ‘कौन रामसिंह’ हमारे कैप्टन रामसिंह आईएनए बैंड मास्टर।’ यह सुनते ही पंडित जी ने मुझे गले लगा लिया। राष्ट्र के प्रति अभूतपूर्व योगदान देने के बावजूद रामसिंह को अजीविका के लिए 1947 में आजादी के बाद दर-दर भटकना पड़ा। बंबई में पंकज मलिक न्यू थियेटर ने उन्हें सहायक संगीत निदेशक के रूप में काम करने का आग्रह किया था, परंतु अपने आर्केस्ट्रा गु्रप को उन्होंने नहीं छोड़ा। किसी तरह उन्हें उत्तर प्रदेश में पीएसी में नौकरी मिल गई। अंततः वह लखनऊ में ही बस गए और वहीं के होकर रह गए। 15 अगस्त, 1914 को धर्मशाला के समीप खनियारा में जन्मे कैप्टन राम सिंह ठाकुर का निधन 87 वर्ष की आयु में 15 अप्रैल, 2002 को लखनऊ में हुआ।


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