लकीरों से बाहर सरकार-4

By: Jan 8th, 2018 12:10 am

विषमताओं की जिन लकीरों का नाम पर्वतीय प्रदेश का होना है, उनसे हटकर हिमाचल आज अगर खड़ा है, तो तमाम सरकारों ने कुछ मूल प्रश्नों का अर्थ खोजा और राज्य को प्रगतिशील मुकाम तक सक्रिय रखा। स्व. वाईएस परमार, शांता कुमार, वीरभद्र सिंह से प्रेम कुमार धूमल तक के सफर का साक्षी यह प्रदेश जिस होड़ में रहा, वहां पर्वत की तड़प का कोई न कोई हल या विकल्प खोजा गया। कौन यह मान सकता था कि एक दिन पंजाब के पर्वतीय इलाके हिमाचली कहलाएंगे और सारी नदियां, झरने व घाटियां एक हो जाएंगी। स्व. वाईएस परमार के उस दौर में हिमाचल ने अपनी भौगोलिक और सियासी शक्ति का प्रसार किया, तो यही कारवां पूर्ण राज्यत्व के द्वार तक पहुंचा। शांता कुमार ने प्रदेश की विद्युत और पर्यटन क्षमता को आत्मसंबल का रास्ता बनाया, तो प्रेम कुमार धूमल के प्रयास कार्बन क्रेडिट तक पहुंचे। वीरभद्र सिंह ने क्षेत्रवाद के जबड़ों से शिमला के कुछ कार्यालय स्थानांतरित किए तो यह सफर कांगड़ा में शीतकालीन प्रवास, तपोवन विधानसभा परिसर से होता हुआ दूसरी राजधानी की मिलकीयत तक आ पहुंचा है। ऐसे में वर्तमान सरकार के रिव्यू में अतीत के नजरिए की जो भी सियासी समीक्षा होगी, उसके मायने नए सिरे से समझे जाएंगे। इसलिए मंत्रिमंडल की हर बैठक में कौन सा फैसला पलटता है, इससे कहीं आगे निकलने का संदेश खासी अहमियत रखेगा। यह इसलिए क्योंकि प्रदेश में एक लकीर जो निरंतर बड़ी हो रही है, उसे बंदर कतई नहीं छोड़ रहा, उस पर क्रांतिकारी होना पड़ेगा। हिमाचल की त्रासदी भी यही है कि कृषि-बागबानी को हलाल कर चुका बंदर या आवारा पशु किसी भी नियंत्रण की चाबुक से बाहर है। ऐसे में एक व्यापक दृष्टि और सख्त फैसले का इंतजार रहेगा, ताकि किसान-बागबान के दुश्मन को सजा मिले। सरकार ने यूं तो गोवंश की आवारगी का समाधान एक साल में करने की प्रतिज्ञा ली है, लेकिन इसके साथ जनसहयोग की पूजा भी चाहिए। जनता गोमाता को आवारा बनाती रहेगी, तो पशुशालाओं का आश्रय भी कम पड़ जाएगा। यह सवाल पशु संवर्द्धन और किसान के निर्धन होते अस्तित्व से है। वन भूमि या गांव की चरागाह से जब कांटे मिलेंगे, तो किसान केवल गाय के दूध का मालिक तो बन सकता है, बारिस नहीं हो सकता। हम प्रयास कर सकते हैं कि मंदिरों की आमदनी से गोसदन कुछ ऐसे चलें कि श्रद्धालु विशेष पूजा के रूप में इनके लिए खाद्य सामग्री उपलब्ध कराएं और फिर व्यवस्था कुछ ऐसी हो कि ये स्थान मिनी डेयरी, जैविक खाद व इससे संबंधित उत्पादों की शो विंडो बन जाए। नगर निकाय व सामाजिक संस्थाएं सॉलिड वेस्ट प्रबंधन के साथ-साथ खाद्य पदार्थों के रूप में हर घर से उपलब्ध सामग्री को एकत्रित करके गो सदनों तक पहुंचाएं, तो जनभागीदारी बढ़ेगी, वरना यह अभियान सरकारी फाइल में चमकता रहेगा। हिमाचल की मंदिर व्यवस्था का आदर्श व नैतिक मॉडल बनाने के लिए एक केंद्रीय ट्रस्ट, प्राधिकरण या बोर्ड बनाना आवश्यक है, ताकि इसके अधीन एक स्थायी काडर के तहत योजनाएं-परियोजनाएं लागू की जा सकें। मंदिरों का व्यावसायिक विकास इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि इससे धार्मिक पर्यटन, नगर नियोजन, लघु उद्योग व माकूल अधोसंरचना के विकास के साथ-साथ लोक परंपराओं, कलाओं व गीत, संगीत और लोक नाट्य कलाओं का संरक्षण भी होगा। मंदिर आय, पर्यटन परियोजनाओं व सरकार की योजनाओं का संगम सुनिश्चित करना है, तो एक मंदिर रेल परियोजना का श्रीगणेश ठीक वैसे ही किया जा सकता है, जिस प्रकार कोंकण रेल परियोजना में केंद्र ने मदद दी। हमारा मानना है कि ऊना के अंब-अंदौरा से ऐसी परियोजना पहले ज्वालामुखी से जुड़ सकती है, फिर इसका विस्तार कांगड़ा, मंडी व बिलासपुर की तरफ होगा तो कई मंदिर व व्यावसायिक उद्योग परिसर भी जुड़ते जाएंगे। प्रदेश में कनेक्टिविटी के हिसाब से सड़कों व रेलवे के अलावा विमान सेवाओं पर भी प्रयास तेज करने होंगे। इस समय सैन्य आवश्यकताओं से कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार पर केंद्र सरकार को सारा खर्चा वहन करने का दबाव है और अगर इस परियोजना के साथ नए एयरपोर्ट की शृंखला चंबा, मंडी, हमीरपुर-बिलासपुर व सोलन में खड़ी की जाती है, तो हाई एंड टूरिज्म का विस्तार होगा। प्रदेश में पर्यटन के लिहाज से सड़क परिवहन में निजी भागीदारी को अंगीकार करते हुए सरकारी बसों का युक्तिकरण आवश्यक है। हिमाचल में पर्यटन के हिसाब से बस अड्डों का निर्माण अगर बीओटी के तहत होता है, तो इसे समयबद्ध पूरा किया जा सकेगा। बड़े बस अड्डों के साथ-साथ ग्रामीण स्तर पर बस स्टॉप का निर्धारण व निर्माण तथा चौक-चौराहों को व्यवस्थित करने से यातायात सुचारू ढंग से चलेगा। यातायात की शहरी आवश्यकताओं को देखते हुए फुटपाथ, ओवरहैड ब्रिज, झूला ब्रिज, रज्जु मार्ग व एलिवेटेड ट्रांसपोर्ट नेटवर्क पर गौर करना होगा। कम से कम हर शहर में बस स्टैंड के साथ या किसी केंद्रीय स्थल पर महापार्किंग का निर्माण करके इससे आगे विद्युत चालित टैक्सियों, गोल्फ कार्ट, ईको रिक्शा, एस्केलेटर, एलिवेटेड पाथ या ट्रांसपोर्ट से जोड़ने की दिशा में पहल चाहिए। शहरों में हुए बेतरतीब निर्माण को हटाने, सरकारी इमारतों को खिसकाने तथा तंग बाजारों को स्थानांतरित करने की व्यापक योजनाओं पर आगे बढ़ने के लिए हर शहर के लिए नागरिक सलाहकार परिषदें गठित की जा सकती हैं। उदाहरण के लिए शिमला की तर्ज पर हमीरपुर, धर्मशाला, मंडी, सोलन, जोगिंद्रनगर या पालमपुर जैसे अनेक शहरों के मुख्य बाजारों को वाहन वर्जित क्षेत्र में बदलने की आवश्यकता का समाधान केवल नागरिक सहयोग से ही संभव होगा।

-क्रमशः


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