हत्याकांड को दंगा बताने की साजिश

By: Jan 13th, 2018 12:07 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

सिख समुदाय के सदस्यों को अमानवीय तरीके से मारा जाता रहा और उनको मारने वाले उन्मादी उस वीभत्स कांड पर नाचते रहे। बहुत ही होशियारी और एक सोची-समझी साजिश के तहत इस हत्याकांड को हिंदू-सिख दंगों का नाम दे दिया गया, जबकि इसे हिंदू-सिख दंगे कहना कपोल कल्पना से ज्यादा नहीं था। वास्तव में ये पंजाबी हिंदू-सिख आपस में लड़े हों या एक-दूसरे को मारा हो, ऐसा उदाहरण नहीं मिलता…

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिख समुदाय के खिलाफ एक अभियान चलाया गया और उस समुदाय के सदस्यों की अमानवीय तरीके से जघन्य हत्याएं की गईं। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इस हत्याकांड में तीन हजार के आसपास हत्याएं हुईं, लेकिन इनको हत्या कहना शायद उचित नहीं होगा। सिख समुदाय के सदस्यों को अमानवीय तरीके से मारा जाता रहा और उनको मारने वाले उन्मादी उस वीभस्त कांड पर नाचते रहे। बहुत ही होशियारी और एक सोची-समझी साजिश के तहत इस हत्याकांड को हिंदू-सिख दंगों का नाम दे दिया गया, जबकि इसे हिंदू-सिख दंगे कहना कपोल कल्पना से ज्यादा नहीं था। दंगा उसको कहते हैं, जिसमें दो अलग-अलग समुदाय आपस में लड़ते हैं और एक-दूसरे को मारते हैं। इस हत्याकांड में एक समुदाय पंजाबी समुदाय था, जिसमें कुछ लोग हिंदू थे और कुछ सिख। इनमें से अधिकांश के कुल गोत्र एक ही थे, चाहे वे हिंदू हों और चाहे सिख। ये पंजाबी हिंदू-सिख आपस में लड़े हों या एक-दूसरे को मारा हो, ऐसा उदाहरण नहीं मिलता। इसके बावजूद भयावह हत्याकांड में लगभग तीन हजार पंजाबी सिखों को किसने मारा और क्यों मारा?

जिन्होंने यह सारा षड्यंत्र रचा, उनका कहना है कि हिंदुओं ने इंदिरा गांधी की हत्या का बदला लेने के लिए सिखों को मारा क्योंकि इंदिरा गांधी की हत्या उसके सिख अंगरक्षकों ने की थी। जिन विशेषज्ञों ने इस हत्याकांड का गहराई से अध्ययन किया है, उनका कहना है कि पंजाबी सिखों को मारने और उनकी संपत्ति लूटने का पैटर्न ऐसा था, जो केवल छंटे हुए बदमाशों द्वारा ही अपनाया जा सकता है। दंगा क्षणिक गुस्से का परिणाम होता है और हत्याकांड एक गहरी साजिश का नतीजा होता है, जिसमें एक्सपर्ट अपराधियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। ऐसे हत्याकांड एक तरह के संगठित अपराध की किस्म होते हैं।

इस प्रकार के हत्याकांड को अंजाम देने के लिए दो हिस्सेदार होते हैं, एक वे जो षड्यंत्र और रणनीति तैयार करते हैं और दूसरे वे जो इसको क्रियान्वित करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि हत्याकांड के इस षड्यंत्र को कांग्रेस के कुछ नेताओं ने तैयार किया और इसको क्रियान्वित करने के लिए अपराधियों की भीड़ एकत्रित की। कांग्रेस द्वारा नियंत्रित प्रशासन ने भी इसमें अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हत्याकांड के समय उसने पुलिस को सक्रिय होने से रोका। जैसा जाहिर किया गया या फिर इस षड्यंत्र को क्रियान्वित करने वाले अपराधियों को समझाया गया होगा कि इसका मकसद इंदिरा गांधी की हत्या का बदला लेना है, ऐसा वास्तव में नहीं था। गहराई से पड़ताल की जाए, तो यह मामला पुलिस और सरकारी तंत्र के अमानवीय और लापरवाह रवैये से जुड़ा है। इस हत्याकांड का असली मकसद हिंदू-सिखों में अलगाव पैदा करना था, जिसकी कोशिश देश विरोधी शक्तियां पिछले लंबे अरसे से कर रही थीं। सरकार का काम किसी भी तरह इस हत्याकांड को रोकना था, लेकिन सरकार के ही मुखिया ने उस समय एक ऐसा बयान दिया था, जिससे पूरे मंसूबे को आसानी से समझा जा सकता है। राजीव गांधी जिन्होंने अपनी मां की मौत के बाद प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी और जो कांग्रेस के एक सदस्य भी थे, उनसे दंगों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा था, ‘जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तब पृथ्वी भी हिलती है।’ दिल्ली में हुए इस हत्याकांड में पंजाबी हिंदुओं ने, पंजाबी सिखों की इन अपराधियों से बचाने में सहायता की, इसे सभी निर्विवादित रूप से स्वीकार करते हैं। इस हत्याकांड के बाद न्यायिक प्रक्रिया शुरू हुई। कारण चाहे जो भी रहे हों, लेकिन दुर्भाग्य से उसमें अधिकांश अपराधियों को सजा नहीं मिल सकी। खासकर उन षड्यंत्रकारियों को, जिन्होंने शातिर अपराधियों को सुपारी देकर पंजाबी सिखों का नरसंहार करवा कर पंजाबी हिंदुओं और पंजाबी सिखों में वैमनस्य की खाई पैदा करने की कोशिश की।

इस प्रकार के षड्यंत्रकारियों में दिल्ली के कुछ जाने-पहचाने कांग्रेसी नेताओं के नाम बार-बार उछलते हैं। ये नाम ऐसे हैं, जिनकी इस नरसंहार में भूमिका को दिल्ली का बच्चा-बच्चा जानता है, लेकिन अभी तक इन षड्यंत्रकारियों को कानून के शिकंजे में कस कर उचित सजा नहीं मिल सकी। सजा की बात तो दूर, कांग्रेस पार्टी ने इनकी इस कारगुजारी को ध्यान में रखते हुए, इन्हें लोकसभा के टिकट दिए और केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री तक बनाया। जाहिर है कि कांग्रेस में भी कुछ लोग हिंदू और सिख में खाई पैदा करने के लिए व्यापक नरसंहार तक जा सकते हैं। लेकिन यह आने वाले समय में देश के लिए कितना घातक हो सकता है, इसका अंदाजा कांग्रेस ने नहीं लगाया। यदि लगाया भी तो अपने क्षुद्र राजनीतिक हितों के लिए उसे ताक पर रख दिया। इस हत्याकांड के बाद राजनीतिक दखल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस क्षेत्र में लोग मारे गए, वहां के संबंधित पुलिस थाने कहते हैं कि यहां कोई मौत ही नहीं हुई, न ही दंगा हुआ या संपत्ति लूटी गई, जबकि आरटीआई में इन थानों से निल रिपोर्ट की बात कही गई है। गोविंद नगर और नौबस्ता पुलिस थाने के क्षेत्र में जहां सबसे ज्यादा मौतें हुईं, वहां के थानों से कोई रिपोर्ट नहीं उपलब्ध कराई गई।

1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद देश भर में फैले सिख दंगों के पीडि़तों के लिए थोड़ी राहत की खबर है। अब उच्चतम न्यायालय ने, इस नरसंहार से संबंधित 186 केसों की जांच करने के लिए एक विशेष जांच समिति गठित की है। इन सभी केसों को पूर्व सरकार द्वारा गठित जांच समिति ने बंद कर दिया था। उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एक कमेटी ने ही गहरी जांच के बाद यह पाया था कि असल में सरकारी जांच समिति ने इन 186 केसों की जांच किए बिना ही इन्हें बंद कर दिया था। इससे दो बातें सिद्ध होती हैं कि इस नरसंहार की योजना तैयार करने वालों, नरसंहार को अंजाम देने वालों और अंत में इन दोनों को बचाने वालों का एक पूरा सुसंगठित रैकेट है, जो किसी न किसी रूप में अभी भी काम कर रहा है। इस रैकेट की पूरी जांच होनी चाहिए। आशा है उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित जांच समिति इस पूरे षड्यंत्र की तह तक जाएगी।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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